“भूत पिशाच निकट न आवे महावीर जब नाम सुनावे” पर देख रहा हूं कि भूत पिशाच निकट तो नहीं आ रहे पर वो सब अपने-अपने खेमे में ही महावीर को ले आने का दम भर रहे हैं. लेटेस्ट बताते हैं कि हनुमान गुसाई, गुसाईं-फुसाईं कुछ नहीं थे बल्कि दलित थे. अधिकारिक घोषणा की जा चुकी है. कास्ट सार्टिफिकेट बन गया है, चुनाव आ रहे हैं,
यहां तक तो ग़नीमत थी, बुक्कल नवाब फरमा रहे हैं कि हनुमान मुस्लिम थे. अपनी बात की सपोर्ट में उन्होने तर्क भी दिये हैं कि ऐसे नाम सलमान, रहमान रमज़ान, फरमान इस्लाम में ही रखे जाते हैं. सही भी है. नामकरण से तो यही लगता है. पहले एक जोक चला करता था उम्मीद न थी कि वो इतनी जल्द सच भी हो जायेगा. आपने सुन लिया होगा कि सिख भी कह रहे हैं कि हनुमान सिख थे, कारण कि इतना बल-शौर्य और कहीं देखा है आपने ? आपने देखा है किसी और क़ौम में ? उन्होने भी तर्क दिया है कि ऐसे नाम हमारे में ही होते हैं जैसे चंदर भान, गुरदास मान,
अमेरिका वाले कहां पीछे रहने वाले थे मौका देख कर उन्होने भी दावा ठोक दिया है क्या पता इसी बहाने श्रीलंका वगैरा में घुसने का सुभीता हो जाये. अमेरिका वाले कह रहे हैं कि न केवल ऐसे नाम बल्कि ऐसे गुण वाले लोग केवल उनके यहां ही होते हैं जैसे सुपरमैन, स्पाइडरमैन, बैटमैन आदि. उनका कहना है कि हनुमान नाम इसी श्रंखला में है और ‘मान’ जो है सो मैन का ही भारतीयकरण है अथवा बिगड़ा रूप है. तो भाईयो बहनों ! हनुमान जी गाँव-खेड़ा की सीमा लांघकर शहर, सूबे की सीमाओं का बॉर्डर कूदते-फ़ाँदते इंटरनेशनल हो गयेले हैं. (हनुमान जी तो वैसे भी हाई जम्प, लॉन्ग जम्प के चैम्पियन हैं) जो काम पिछले 70 साल में नहीं हो पाया वो हो गया है.
अब ईसाई लोग की बारी है अपना क्लेम डालने की.
उधर कम्युनिस्टों ने अपनी पॉलिट ब्यूरो में प्रस्ताव पास कर लिया है कि हनुमान जी कार्ड-होल्डर क्म्युनिस्ट थे. यक़ीन नहीं तो उनका लिबास देख लो. पूरी ज़िंदगी फकत एक लंगोटी में काट दी. और कोई नहीं दिल से एक कम्युनिस्ट कॉमरेड ही ऐसा कर सकता है.
कश्मीरी कह रहे हैं कि हनुमान जी कश्मीरी थे, जब पंडितों पर घाटी में ज़ुल्म बड़े थे उस दौर में वो माइग्रेट कर गये थे. उनको तभी तो सभी जड़ी-बूटियों का पता था. जब श्री राम ने संजीवनी लेने भेजा तो हनुमान जी को ही क्यों भेजा ? इसलिये कि ये बंदा जानता है कौन सी जड़ी-बूटी कहां मिलेगी, इसकी वाक़फियत भी है वहां तो कोई पंगा नहीं होगा नहीं तो बॉर्डर पर बहुतमच-मच रहती है. जड़ी-बूटी की खेती करने वाले कहीं नकली माल पकड़ा न दें ? आपको क्या पता नहीं है असली केसर और शिलाजीत के नाम पर कितना चूना लगाते हैं वो.
पारसी कह रहे हैं कि वे खालिस पारसी थे. हम लोग भी शादी ब्याह नहीं करते हैं अलमस्त रहते हैं वैसे ही ‘आपरो बावा हनुमान’
नॉर्थ ईस्ट वाले उन्हें अपना बता रहे हैं वे कह रहे हैं कि अंग्रेजी में लोग-बाग हनुमान जी को मंकी गॉड बताते हैं हमें भी लोग चिंकी-चिंकी कहते हैं, ‘इट इज ए केस ऑफ प्लास्टिक सर्जरी गॉन रॉंग’
चीन वाले आप सोचते हैं पीछे रहने वाले थे. वे हम सबसे तेज़ हैं. उनका कहना है कि हनुमान जी चीन अधिकृत तिब्बत के रहने वाले थे. उनका असली नाम हन-यू-मॉन था, जो हिंदुस्तान वालों ने हिंदी-चीनी भाई-भाई की आड़ में हनुमान कर लिया. वैसे भी हिंदुस्तान में नाम बिगाड़ने की प्रथा सी ही है. अच्छे भले कृष्ण को किसन, किसना कुछ भी कर लेते हैं
इसी बीच ब्रेकिंग न्यूज आई है कि जाट भाई-लोग कह रहे हैं कि तन्नै बेरा भी सै वे हमारे थे, वे जाट थे. तन्नै डाउट हुआ तो हुआ क्यों कर मन्नै भी बता ताऊ ? अरे लय्यो मेरा लट्ठ कितै सै ? वही खिलंदड़पना, वही खाटी हास्य, वही दूसरों के फटे में कूदने की आदत और कहीं देखने-सुनने में आई है तन्नै बावड़ी बूच ?
पिक्चर अभी बाकी है दोस्त. एक प्रमुख खिलाड़ी ने कह ही तो दिया कि हनुमान जी एक स्पोर्ट्स मैन थे. बस ! फाइनल डिसीजन. वही अदम्य साहस, वही बहादुरी, वही चैलेंज स्वीकारने को लपक पड़ने की तत्परता. खैरियत ये है कि खिलाड़ी ने यह नहीं बताया कि हनुमान जी क्रिकेटर थे, नहीं तो बाकी खिलाड़ियों ने भी मैदान में कूद पड़ना था, वाह जी वाह ये क्रिकेट वालों ने तो धांधली ही मचा रखी है. जहां देखो वहां मैच फिक्स करते डोलते हैं. हनुमान जी दरअसल हॉकी के खिलाड़ी थे, हॉकी की दुर्दशा से दुखी होकर उन्होने न केवल हॉकी से बल्कि सांसारिक ड्रिब्लिंग से ही सन्यास ले लिया था. मगर जब वक़्त आया तो ड्रिबल करते करते श्रीलंका तक आनन-फानन में जा पहुंचे थे. खो-खो और मल्ल खम्भ वाले उन्हें अपना बता रहे हैं. इस सब रेल-पेल में आप पहलवानी को मत भूल जाना जो आज भी अखाड़े में उनकी तस्वीर लगाते हैं और अपने खेल की शुरूआत ही हनुमान जी को नमन करने से करते हैं.
प्रश्न ये है कि यदि हनुमान जी हिंदु थे तो उनकी जाति, उपजाति, गोत्र क्या था ? यदि वे मुस्लिम थे तो शिया थे या सुन्नी? वोहरा थे या इस्माइली / खोजा ? वे गुर्जर थे या मीणा ? फिर ये कि वे चौकीदार मीणा थे या ज़मींदार मीणा ? अभी तो मेरे भारत महान में असंख्य वर्ग/वर्ण/जाति/उपजाति/गोत्र हैं. सारांश ये है कि यार वोट हमें गिरवा दो चाहे हनुमान को किसी धम/जाति का सार्टीफिकेट हमसे ले जाओ. अपुन का तो एक हीच धर्म है-- कुर्सी
यहां तक तो ग़नीमत थी, बुक्कल नवाब फरमा रहे हैं कि हनुमान मुस्लिम थे. अपनी बात की सपोर्ट में उन्होने तर्क भी दिये हैं कि ऐसे नाम सलमान, रहमान रमज़ान, फरमान इस्लाम में ही रखे जाते हैं. सही भी है. नामकरण से तो यही लगता है. पहले एक जोक चला करता था उम्मीद न थी कि वो इतनी जल्द सच भी हो जायेगा. आपने सुन लिया होगा कि सिख भी कह रहे हैं कि हनुमान सिख थे, कारण कि इतना बल-शौर्य और कहीं देखा है आपने ? आपने देखा है किसी और क़ौम में ? उन्होने भी तर्क दिया है कि ऐसे नाम हमारे में ही होते हैं जैसे चंदर भान, गुरदास मान,
अमेरिका वाले कहां पीछे रहने वाले थे मौका देख कर उन्होने भी दावा ठोक दिया है क्या पता इसी बहाने श्रीलंका वगैरा में घुसने का सुभीता हो जाये. अमेरिका वाले कह रहे हैं कि न केवल ऐसे नाम बल्कि ऐसे गुण वाले लोग केवल उनके यहां ही होते हैं जैसे सुपरमैन, स्पाइडरमैन, बैटमैन आदि. उनका कहना है कि हनुमान नाम इसी श्रंखला में है और ‘मान’ जो है सो मैन का ही भारतीयकरण है अथवा बिगड़ा रूप है. तो भाईयो बहनों ! हनुमान जी गाँव-खेड़ा की सीमा लांघकर शहर, सूबे की सीमाओं का बॉर्डर कूदते-फ़ाँदते इंटरनेशनल हो गयेले हैं. (हनुमान जी तो वैसे भी हाई जम्प, लॉन्ग जम्प के चैम्पियन हैं) जो काम पिछले 70 साल में नहीं हो पाया वो हो गया है.
अब ईसाई लोग की बारी है अपना क्लेम डालने की.
उधर कम्युनिस्टों ने अपनी पॉलिट ब्यूरो में प्रस्ताव पास कर लिया है कि हनुमान जी कार्ड-होल्डर क्म्युनिस्ट थे. यक़ीन नहीं तो उनका लिबास देख लो. पूरी ज़िंदगी फकत एक लंगोटी में काट दी. और कोई नहीं दिल से एक कम्युनिस्ट कॉमरेड ही ऐसा कर सकता है.
कश्मीरी कह रहे हैं कि हनुमान जी कश्मीरी थे, जब पंडितों पर घाटी में ज़ुल्म बड़े थे उस दौर में वो माइग्रेट कर गये थे. उनको तभी तो सभी जड़ी-बूटियों का पता था. जब श्री राम ने संजीवनी लेने भेजा तो हनुमान जी को ही क्यों भेजा ? इसलिये कि ये बंदा जानता है कौन सी जड़ी-बूटी कहां मिलेगी, इसकी वाक़फियत भी है वहां तो कोई पंगा नहीं होगा नहीं तो बॉर्डर पर बहुतमच-मच रहती है. जड़ी-बूटी की खेती करने वाले कहीं नकली माल पकड़ा न दें ? आपको क्या पता नहीं है असली केसर और शिलाजीत के नाम पर कितना चूना लगाते हैं वो.
पारसी कह रहे हैं कि वे खालिस पारसी थे. हम लोग भी शादी ब्याह नहीं करते हैं अलमस्त रहते हैं वैसे ही ‘आपरो बावा हनुमान’
नॉर्थ ईस्ट वाले उन्हें अपना बता रहे हैं वे कह रहे हैं कि अंग्रेजी में लोग-बाग हनुमान जी को मंकी गॉड बताते हैं हमें भी लोग चिंकी-चिंकी कहते हैं, ‘इट इज ए केस ऑफ प्लास्टिक सर्जरी गॉन रॉंग’
चीन वाले आप सोचते हैं पीछे रहने वाले थे. वे हम सबसे तेज़ हैं. उनका कहना है कि हनुमान जी चीन अधिकृत तिब्बत के रहने वाले थे. उनका असली नाम हन-यू-मॉन था, जो हिंदुस्तान वालों ने हिंदी-चीनी भाई-भाई की आड़ में हनुमान कर लिया. वैसे भी हिंदुस्तान में नाम बिगाड़ने की प्रथा सी ही है. अच्छे भले कृष्ण को किसन, किसना कुछ भी कर लेते हैं
इसी बीच ब्रेकिंग न्यूज आई है कि जाट भाई-लोग कह रहे हैं कि तन्नै बेरा भी सै वे हमारे थे, वे जाट थे. तन्नै डाउट हुआ तो हुआ क्यों कर मन्नै भी बता ताऊ ? अरे लय्यो मेरा लट्ठ कितै सै ? वही खिलंदड़पना, वही खाटी हास्य, वही दूसरों के फटे में कूदने की आदत और कहीं देखने-सुनने में आई है तन्नै बावड़ी बूच ?
पिक्चर अभी बाकी है दोस्त. एक प्रमुख खिलाड़ी ने कह ही तो दिया कि हनुमान जी एक स्पोर्ट्स मैन थे. बस ! फाइनल डिसीजन. वही अदम्य साहस, वही बहादुरी, वही चैलेंज स्वीकारने को लपक पड़ने की तत्परता. खैरियत ये है कि खिलाड़ी ने यह नहीं बताया कि हनुमान जी क्रिकेटर थे, नहीं तो बाकी खिलाड़ियों ने भी मैदान में कूद पड़ना था, वाह जी वाह ये क्रिकेट वालों ने तो धांधली ही मचा रखी है. जहां देखो वहां मैच फिक्स करते डोलते हैं. हनुमान जी दरअसल हॉकी के खिलाड़ी थे, हॉकी की दुर्दशा से दुखी होकर उन्होने न केवल हॉकी से बल्कि सांसारिक ड्रिब्लिंग से ही सन्यास ले लिया था. मगर जब वक़्त आया तो ड्रिबल करते करते श्रीलंका तक आनन-फानन में जा पहुंचे थे. खो-खो और मल्ल खम्भ वाले उन्हें अपना बता रहे हैं. इस सब रेल-पेल में आप पहलवानी को मत भूल जाना जो आज भी अखाड़े में उनकी तस्वीर लगाते हैं और अपने खेल की शुरूआत ही हनुमान जी को नमन करने से करते हैं.
प्रश्न ये है कि यदि हनुमान जी हिंदु थे तो उनकी जाति, उपजाति, गोत्र क्या था ? यदि वे मुस्लिम थे तो शिया थे या सुन्नी? वोहरा थे या इस्माइली / खोजा ? वे गुर्जर थे या मीणा ? फिर ये कि वे चौकीदार मीणा थे या ज़मींदार मीणा ? अभी तो मेरे भारत महान में असंख्य वर्ग/वर्ण/जाति/उपजाति/गोत्र हैं. सारांश ये है कि यार वोट हमें गिरवा दो चाहे हनुमान को किसी धम/जाति का सार्टीफिकेट हमसे ले जाओ. अपुन का तो एक हीच धर्म है-- कुर्सी