Ravi ki duniya

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Friday, December 7, 2018

व्यंग्य: मैं 2019 का चुनाव नहीं लड़ूंगा



            मैंने बहुत सोचा-विचारा है, और मेरे इस तथाकथित चिंतन के बाद मैंने यह निष्कर्ष निकाला है कि मैं अगला चुनाव नहीं लड़ूंगा. यूँ कहने को मैंने आज तक एम.पी., एम.एल.ए क्या अपनी रेज़ीडेंट वैलफेयर सोसायटी की कार्यकारिणी का चुनाव तक नहीं लड़ा है. दरसल उसके दो कारण हैं एक तो मैं अहिंसावादी जीव हूं अत: इस लड़ने-भिड़ने से उतना ही दूर ही रहता हूं जितना एक सरकारी बाबू ऑफिस के काम से रहता है. दूसरा मुझे इस बात का अंदेशा ही नहीं बल्कि पूर्ण विश्वास है कि मैं चुनाव हार जाऊंगा. घर में अपनी खुद की बीवी तक तो बात मानती नहीं है. मतदाताओं का सामना किस मुंह से करूंगा. मेरी जमानत जब्त होना तय है.

दूसरी बात ये है कि मैं मतदाताओं से क्या नया वादा करूंगा जो हमारे नेता लोग पहले नहीं कर चुके. मैं दिन-रात देखता हूं बेचारे नेताओं को दिन में कितनी बार पल्टी मारनी पड़ती है. धर्मेंद्र जी वाली स्टाइल में “मैंने ऐसा तो नही कहा था”. नेताओं की मानें तो हम सब बस अब स्वर्ग में जीने की प्रेक्टिस कर लें, कारण 2019 में नेता लोग हमारे वास्ते स्वर्ग यहीं भारत में ला रहे हैं. दिल्ली वालों को छोड कर...वे सब तो प्रदूषण के चलते डाइरेक्ट स्वर्ग में जायेंगे. थोडे दिन की ही बात और है.

अब आप से क्या छुपाना सच बात तो ये है मैंने अपने विश्वासपात्रों को इस काम में लगा रखा है जो जल्द ही देशव्यापी आंदोलन छेड़ेंगे उन्हें ये स्क्रिप्ट भी लिख कर दी है न केवल लिख कर दी है बल्कि कई कई बार रटा भी दी है:  “..नहीं नहीं आपको चुनाव लड़ना पड़ेगा, इस देश का क्या होगा ?. समाज का क्या होगा ?. आप ऐसे हमें मझदार में नहीं छोड़ सकते. प्लीज प्लीज कुछ तो हम पर रहम करो आप चुनाव नहीं लड़ोगे ?. ये कैसा बेतुका जानलेवा फैसला है. इसे सुनने से पहले, हमारे कान क्यों न फूट गये, ये दिन देखने से पहले हमारी आँखें क्यों न फूट गयीं. ये धरती क्यों न फट गयी....हम इसमें समा क्यों न गये. हे देवा रे देवा ..इस दो दिन की ज़िंदगी में ये दिन भी देखना था कि गरीबों का मसीहा, दीन दुनियां के दुख से दुखियारा ये कहेगा कि अब वह चुनाव नहीं लड़ेगा...नहींई..ई.. कह दो कि ये झूठ है. ये एक भद्दा मज़ाक है.”


मगर देख रहा हूं कि सारी की सारी स्क्रिप्ट इन नालायकों को लिख कर देने के बावज़ूद 48 घंटे होने को आये कोई बयान नहीं आया है न कोई प्रेस कॉन्फरेंस हुई है. सारे के सारे न जाने कहां जा कर मर गये हैं. कहीं विरोधी दल उन्हे न बहला फुसलाकर ले गया हो. इसी बात का खटका लगा है. 

सोचता हूं मैं खुद ही कह दूं  कि जनता की पुकार पर और अपने निर्वाचन क्षेत्र के गरीब-गुरबा की मदद को ये हाथ जो बड़े हैं उनको अब मैं वापस नहीं खींच सकता. अंडरवर्ड की तरह ही है ये पॉलिटिक्स का खेल भी. वन वे है. आप घुस तो सकते हैं निकल नहीं सकते. आप इतने ग़ैर जिम्मेवार कैसे हो सकते हैं. मेरे से इनका दुख नही देखा जायेगा. इन्हें मेरी ज़रूरत है. मैं इनके आंसूओं को देख कर अनदेखा नही कर सकता. मैं इनकी खातिर चुनाव लड़ूंगा और ज़रूर लड़ूंगा. हाई कमांड टिकट नहीं भी देगा तो निर्दलीय लड़ूंगा. आप मुझे मेरी प्यारी जनता से दूर नहीं रख सकते. आप मुझे देश सेवा से विमुख नहीं कर सकते मुझे चुनाव लड़ने से कोई नहीं रोक सकता. मेरी प्यारी जनता मैं आ रहा हूं.... अब आपकी लाज मेरे हाथ है. सॉरी..सॉरी मेरी लाज आपके हाथ है बल्कि हाथ भी कहां आपकी उंगली में है...या कहना चाहिये कि तर्जनी के नाखून में छुपी है..प्लीज आपको मेरी कसम मैं आपकी उंगली में नीली स्याही, आँखों में इंगलिश बॉट्ली का लाल डोरा, और जेब में गुलाबी नोट देखना चाहता हूं.


जय जनता जनार्दन

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