Ravi ki duniya

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Wednesday, June 19, 2024

फादर्स डे पर विशेष मेरे हीरो मेरे पिता

 

           अभी हाल ही में फादर डे ज़ोर शोर से मनाया गया। यह एक विदेशी अवधारणा है, जहां फादर लोग अक्सर ओल्ड एज़ होम में रहते हैं या फिर एक शाश्वत नैराश्य में जीते हैं और सरकारी डोल/बेनीफिट पर जी रहे होते हैं। हमारे यहाँ प्रत्येक दिन फादर लोगों का डे होता है। जगह जगह अमुक वल्द /पुत्र श्री अमुक लिखा जाता रहा है। पिता का नाम अपने नाम के आगे लगाया ही जाता है। जब तक मुमकिन होता है फादर लोग आपको भूलने नहीं देते या तो अपने ‘झापड़’ कौशल से अथवा टोका-टोकी से। डांटना/पिटाई करना फादर लोग का जन्म सिद्ध अधिकार होता है। वो फादर ही क्या जो अपने बच्चों से भुनभुनाए नहीं। हर पल यह सिद्ध करने में लगे रहते हैं कि बच्चू मैं तुम्हारा बाप हूँ बोले तो तुमसे ज्यादा जानता हूँ, अतः तुमसे कहीं अधिक बेहतर हूँ। जब एक बेटे ने शादी के समय अपने पिता से कहा “पिताजी मैं अपनी शादी में दहेज नहीं लूँगा” पिता ने कहा “नालायक ! तू दहेज मना करने वाला कौन होता है? तू जब अपने बेटे की शादी करे तब मत लेना” 


            हम पाँच भाई बहन हैं। जब पिताजी एक को डांटते या उस पर अपने थप्पड़ स्किल आज़माते तो बाकी चार स्वतः ही अपने अपने बस्ते खोल कर ऐसे पढ़ने बैठ जाते जैसे आदिकाल से वे तो पढ़ाई में ही लगे थे।  पर सीरियसली आज के दौर मैं किस बाप में ये दम है कि अपने पाँच पाँच बच्चों को ग्रेजुएशन तक पढ़ा सके। यहाँ एक-दो बच्चों को पढ़ाने में ही मकान गिरवीं रख, बेंक का लोन लेना पड़ जाता है। पिता लोग अपने विचार बहुत उच्च रखते थे। मेरी पीढ़ी की संतान के निकटस्थ 'रोल मॉडल' पिता ही होते थे। तब “यार पापा !” नहीं चलता था। ऐसा भूल से भी कहने पर पिटने का आमंत्रण देने के समान होता था। हम सब बच्चे कितनी भी दूर स्कूल पैदल चले जाते थे। स्कूल के नल का या वहाँ रखे हुए घड़े का पानी पीते थे। कभी तबियत उन्नीस भी नहीं होती थी। भाई लोग एक दूसरे के कपड़े पहनने में कोई गुरेज नहीं करते थे। बल्कि आपकी पेंट कमीज पर आपके छोटे भाईयों का नैसर्गिक अधिकार होता था। कमीज की कॉलर फट जाने पर कमीज रिटायर नहीं की जाती थी बल्कि माताएँ कॉलर उलट पलट में एक्सपर्ट होती थीं। इस प्रकार की कमीज पहनने में हमारा मुंह नहीं फूल जाता था और न ही कुछ अजीब लगता था। खूब मिठाई फल खाते थे। हाँ तब ये चॉकलेट टॉफी तो तब ही मिलते थे जब कोई निकट का रिश्तेदार या परिवार के मित्र आते। यूं ज़्यादातर वो भी केले अमरूद संतरे ही लाते थे। 


                    अब की तरह हाय-हॅलो नहीं चलता था। हम भले चिट्ठी-पत्री में सही, पूजनीय/आदरणीय और चरण स्पर्श/प्रणाम से इतर कुछ नहीं। हो भी क्यों ना अपने सीमित साधन और बेहद कम और अनियमित आय के बावजूद हम सब लोग प्रिंस सा जीवन जीते थे। आज जहां देखो वहाँ असंतोष ही असंतोष है। क्या बेटा क्या बाप। 


              मिस यू मम्मी-बाबू !



Monday, June 17, 2024

व्यंग्य : आइसक्रीम में उंगली

 

    खबर आई है कि आइस क्रीम में इंसानी उंगली मिली है। भला हो ग्राहक का वह डॉक्टर था सो फौरन पहचान भी गया। आम आदमी तो उसे कोई नया फ्लेवर समझता और सोचता आइसक्रीम वाले अब कंपटीशन के चलते बड़े बड़े नट्स-ड्राई फ्रूट्स डालते ही हैं यह थोड़ा बड़ी मेवा होगी। हिन्दुस्तानी नहीं तो विदेशी होगी। हो सकता है वह इस बात से खुश भी हो जाता। और उनका यह ‘फिंगर फ्लेवर’ चल निकलता। जैसे 'फिश फिंगर' चल ही रही है। जैसे 'फिंगर फ्राई' चल पड़ी है। कोई माल चल निकले और ग्राहक को पसंद आ जाये तो फिर वो कीमत नहीं देखता।

 

 

          आइस क्रीम वाले फिर इसकी देखा-देखी और नए-नए अद्भुत फ्लेवर निकालते। बाकी जितने अब तक के फ्लेवर हैं वो मुंह छुपाए फिरते। उन्हें कोई नहीं पूछता। उनकी मार्किट वैसे ही डाउन हो जाती जैसे आजकल बटर स्कॉच, ब्लू करंट, स्ट्राबेरी, कसाटा और टूटी-फ्रूटी के आगे वैनिला, ऑरेंज को कोई नहीं पूछता। लोग इसे खूब पाॅपुलर करते। नए-नए फ्लेवर इंसानी अंग अनुसार चल पड़ते। फिंगर-स्कॉच, लिप- बेरी, ईयर-करंट, स्वीट-टूथ, टंग-ट्विस्टर, सोचो देखते-देखते इन नॉन-वेज आइस क्रीम के फ्लेवर्स का कितना क्रेज़ हो जाएगा। नो वेज, नो वीगन प्लीज़। ऑनली नाॅन-वैज।

 

 

इससे आइस क्रीम जगत में बड़ी क्रांति आ जाएगी। नए नए कंपटीशन खड़े हो जाएँगे। लीवर-लाइट, किडनी-कुल्फी, हार्ट्स-कंटेन्ट। मानव अंगों की तस्करी करने वालों को इतने ऑर्डर मिलने लग पड़ेंगे कि उन्हे ओवर टाइम करना पड़ेगा। चिंता की बात ये है कि इतने अंग मिलेंगे कैसे। आइस क्रीम बहुत महंगी होगी कारण कि इतने सारे डोनर कहाँ-कैसे मिलेंगे ? फिर क्लेण्डस्टाइन तरीके से मानव तस्करी को बल मिलेगा। औने पौने दाम पर उँगलियाँ बिकने लगेंगी। कुछ लोग सोया-चाॅप की तरह नकली फिंगर के कारोबार में लग जाएंगे जिससे एम.एस.एम.ई. उद्योग को बढ़ावा मिलेगा और बेरोजगारी की समस्या के हल में मदद मिलेगी। दस दस उँगलियाँ आप लटकाए लटकाये घूम रहे हैं क्या फायदा इनका। शादी ब्याह में अलग रौनक़ रहती। हमारे बंबई वाले मामा जी की शादी में चार चार आइस क्रीम फ्लेवर थे सारे के सारे बॉडी पार्ट्स वाले। केक पेस्ट्री ही नहीं हमारे यहाँ आइसक्रीम बहुत पोपुलर हो चली है। हर मौके बेमौके आइसक्रीम का जलवा रहता है। क्या इंडिया गेट, क्या मरीन ड्राइव, आप तो ये सोचो कितनी बड़ी मार्किट अनटेप रही है अब तक। बड़े बड़े आविष्कार ऐसे बड़े बड़े शहरों में छोटे छोटे एक्सीडेंट से ही प्रकाश में आते हैं। आगे इतिहास में लिखा जाएगा इसका आविष्कार फलां कंपनी ने संवत 2024 ईस्वी में भारत में किया गया था। 

आइस क्रीम वाले पार्लर अलग क्लेम करेंगे हमारे यहाँ शुद्ध मानव अंगों का उपयोग किया जाता है। नकली साबित करने वाले को एक वर्ष तक मुफ्त आइसक्रीम दी जाएगी।