जब भी ससुराल जाता हूं
मुसलसल एक खौफ में रहता हूं
हरदम ‘साले’ घेरे रखते हैं
जीभ हूं दांतों के बीच में रहता हूं
एक सास थी ठूंस ठूंस कर खिलाती थी
साले हैं ! शर्बत भी पेग की तरह नापते हैं
खुद की बीवी ! बीवी नहीं रहती
जितने दिन ससुराल में रहता हूँ
ससुराल सास से होती है साले-सालियों
से नहीं
बाग फूल से होता है पार्ट टाइम मालियों से
नहीं
उनकी ना में ना, हाँ में हाँ भरता हूँ
‘आदर्श दामाद कैसे बनें’ किताब की सीरिज लिख सकता हूँ
हवा हुए दिन, सब
मरजीना सा रक्स करते थे
हम भी कभी कस्बे के अलीबाबा थे
अब तो सरेंडर किए 'गैंग ऑफ फाॅर्टी' सा रहता हूँ
ससुराल मेरी, मैं
ससुराल का
फिर भी कैसा दामाद ? किसका दामाद ?
न जाने कब निकाल बाहर करें
लुटियन ज़ोन में हारे हुए एम.पी. सा रहता हूँ
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