Ravi ki duniya

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Saturday, May 15, 2010

एहसास

71.
आज फिर दिल में तन्हाई को

बुलंद करने का ख्याल आया

इश्क़ को जिस्मानी कैद से

रिहा करने का ख्याल आया

ना कोई खुशी सी खुशी है
न किसी ग़म का ग़म
फिर क्यूँ बेखबर मुझे

बारहा तेरा ख्याल आया

72.

कभी सोचा भी न था हम तुम

इतने नज़दीक रह कर भी दूर हो जायेंगे

समाज की दीवारों पर लग जायेंगे रिवाजों के काँटे

और हम तुम इतने मजबूर हो जायेंगे

कुछ दबी ज़ुबान में कहते हैं

कुछ आँखों आँखों में कहते हैं

पता न था हम तुम इतने मशहूर हो जायेंगे

73.

मेरा दर्द मुझे जीने नहीं देगा

तेरी याद मुझे मरने नहीं देगी

ज़माना बड़ा ज़ालिम है ए दोस्त !

आज अगर हम नहीं मिले

तो कल ये दुनियाँ हमें मिलने नहीं देगी

74.
जिनको तेरी नज़र के इशारे मिल गए

जहाँ में उन्हीं को बस जीने के सहारे मिल गए

जिसके साथ तुम दो कदम चल दीं

ज़मीं पर उसके निशां बन गए

हुईं जिन पर तुम मेहरबान
खुदा की कसम वो बुत भी इंसा बन गए

75

बड़ी पुरपेच रही उनसे मिलके ज़िंदगी

कहा था रस्ता बड़ा सीधा है, दोस्त ने मेरे !
इक लम्हे को गले मिल, उम्र भर का ग़म

हुनर ये नया सीखा है दोस्त ने मेरे !

चलो चलके अपना गरेबाँ तैयार कर लो

खंजर एक नया खरीदा है दोस्त ने मेरे !

76.

तेरी वादाखिलाफी में है लज़्ज़त ऐसी

बार-बार धोखा खाने को दिल हुआ जाए है

मैं उम्र भर जिसे अपना समझा किया

कमबख्त वो मेरा दिल

इक मुलाक़ात में तेरा हुआ जाए है

ये मुहब्बतों के सौदे भी ग़ज़ब घाटे के सौदे हैं

तुम नफे की पूछो हो

हमें तो शुरू दिन से नुकसान हुआ जाए है

77.

चाँद पे तेज़ाब फेंक भाग गया कोई कल रात

इतने तारों की भीड़ में कहाँ उसे खोजें
अंधेरे का फायदा उठा भाग गया कोई कल रात
कहाँ कहाँ ढूंढेंगे सुबूत आप

जिस चौराहे पर हुआ था बलात्कार

वहाँ मंदिर बना गया कोई कल रात
78.

बिताये जो तुम्हारे साथ सुखद दो पल

उम्र भर की धरोहर बन गए

दिल के मरुस्थली खंडहर

फिर से जगमगाते शहर बन गए

खुदा जाने तुम न आते तो क्या होता

तुम्हारे आने से आवारा उमंगों के घर बन गए

79.
मुहब्बत पे फख्र न कर ए दोस्त

एक मुकाम पे आके मुहब्बत लुट जाती है

सूरत पर न यूँ इतरा ए दोस्त

एक अर्से के बाद सूरत मिट जाती है

दर्द दर्द न यूँ चिल्ला ए दोस्त

दर्द को दोहराने से दर्द की कीमत घट जाती है

80.
मैं जिसे देख ताउम्र मुतास्सर रहा

वो बहते पानी पर बनी तस्वीर निकली

लोग जिनकी नाजो अदा के दीवाने थे

बेवफाई ही उस बुत की तासीर निकली

हम जिनके तसव्वर में घूमा किए रवां रवां

सबसे हँस कर मिलना उस सितमगर की आदत निकली




काव्य संग्रह 'एहसास' से

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