Ravi ki duniya

Ravi ki duniya

Wednesday, May 19, 2010

टूटे दिल के इन्द्रधनुष



जान ही लेनी थी तो यूँ ही कह देते 
मुस्कराने की  ज़रुरत क्या थी  .
वफ़ा करते हैं पर ज़फ़ा से वाकिफ हैं 
शब-ऐ-जुदाई बारहा  समझाने की ज़रुरत क्या थी 
फ़िराक दिल मेरा मेहमाननवाज़ है बहुत 
ग़म-ऐ-जाना दबे पाँव जाने की  ज़रुरत क्या थी
कमज़र्फ हैं वक़्त नहीं लेता नशा आने में 
नज़रें मिला कर आजमाने की ज़रुरत क्या थी 
यादें.ज़ख्म.आंसू अब उम्र भर का साथ है 
दानिश्वरों से दिल लगाने की ज़रुरत क्या थी 
लोग हाथों में संग उठाये फिरते हैं 
हुज़ूर इतना नाम कमाने की ज़रुरत क्या थी  













No comments:

Post a Comment