एक जमाना था जब आज़ाद हिन्द फौज के महानायक, वीर सेनानी नेताजी सुभाष चन्द बोस ने हुंकार भरी थी “ तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा”. अभी आधी सदी भी न गुजरी थी कि हमारे नेता कह रहे हैं मैं तो खून का एक कतरा भी नहीं दूंगा. क्या कर लोगे. मामला अदालत तक जा पहुँचा. अदालत ने फटकार अलग लगायी. जनता का इतना खून पीया है एक आध बूँद दे दोगे तो क्या हो जायेगा. सो भैया जी ! डी.एन.ए. तो होगा ही. एक बात और है डी.एन.ए तो जब होगा, तब होगा उसकी रिपोर्ट जब आएगी, तब आएगी पर पूरे देश को तो रिपोर्ट पहले से ही पता है. ये आपकी ही कारस्तानी है. ये बरखुरदार आपके ही नूरे नज़र, लख्ते जिगर हैं. एक बात बताइये जब ये बात उठी थी तब ही आपने क्यों नहीं भलमनसाहत से इसे मान लिया. आपके पास विकल्प थे. या तो आप ‘मान’ लेते या पार्टी को कुछ ले दे के ‘मौन’ करा देते.
देखिये आपने बेचारे को गोद लेने से भी इंकार कर दिया. अब आपको भी कहाँ गुमान था कि आपके जीते जी साइंस इतनी तरक्की कर लेगी कि ये डी.एन.ए. टेस्ट ढूँढ निकालेंगे. वैसे तो आपने सी.डी. केस में कह ही दिया है कि ये साज़िश है और ये मैं हूँ ही नहीं. अब आप कुछ भी भी कहते रहिए पूरा देश आपकी रिपोर्ट को पहले ही ‘पॉज़िटिव’ मान चुका है. देश को ताज्जुब तब भी नहीं होगा अगर ये डी.एन.ए. आपका नहीं निकलेगा, देश आपको बरी नहीं कर देगा. बल्कि इसे आपकी ‘जुगाड़’ बताएगा.
दरअसल आप जितनी कोर्ट-कचहरी करते रहेंगे और खून देने में आना-कानी करते रहेंगे उतना ही देश का यकीन पुख्ता होता चला जायेगा कि हो न हो आप ही उसके ‘नाजायज़’ पिता हैं (अमिताभ बच्चन की फिल्म त्रिशूल याद करें) मुहब्बत की है तो निभानी चाहिए थी जी. आप मुहब्बत को चुनावी वादे की तरह भूल नहीं सकते. वो दिन याद करो.. वो तारों की छैया...वो मौसम सुहाना.... तो सर जी अपने पुरुषार्थ को जगाइए और उठ खड़े होईये, अपना लीजिये, आखिर आपका ही बच्चा है. दुनियाँ को दिखा दीजिये कि आप नारायण ही नहीं, नर भी हैं.
बहुत खूब...
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