Ravi ki duniya

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Monday, October 24, 2011

कांटा लगा ....



कांटा लगा.. कांटा लगा... करके एक गाना बहुत देख-सुना जाता रहा है. देखा ज्यादा गया सुना कम. इस में एक भारतीय नाबालिग सी बाला बार बार कांटा लगा..कांटा लगा चिल्ला रही है. मटक रही है और सिसकारियां भर रही है. इस से दो बातें निकल के आती हैं. एक, मैंने कभी किसी कांटे लगे इंसान को ऐसे नाचते-गाते, मटकते और सिसकारियां भरते नहीं देखा है. या तो अगला रो रहा होता है या फिर डॉक्टर के पास ले जाया जा रहा होता है. दूसरे, लड़की गा रही है कांटा लगा. कांटे अक्सर पांव में लगते हैं. मजे की बात यह है कि पूरे गाने में सिवाय पांव के उस्ने अप्ने लगभग सभी अंग दिखा दिये हैं. हैं भई ! ये ससुरा कांटा लगा आखिर लगा कहाँ है ? और अगर पैर में नहीं लगा है तो जहाँ लगा है वहां ये पहुंचा कैसे ? शोध का मुद्दा है. या फिर कहें कि अगले री-मिक्स का मसाला है. ये री-मिक्स का ज़माना है. पिछ्ले दिनों पदमश्री नीरज की एक कैसट मार्किट में पूछी तो सेल्समैन ने पलट कर पूछा “ नया री-मिक्स है क्या ?” अब वो दिन दूर नहीं कि पुराने वे सभी जिन पर कभी जनाब नौशाद और साहिर को नाज़ रहा हो, उनके री-मिक्स मार्किट में उतरेंगे. गीतों की ऐसी भद्द पिटेगी कि नौशाद और साहिर क़ब्र में करवटें बदलेंगे. लता दीदी त्रस्त हैं कि उनके सीधे-सादे गाने की क्या गत बना दी है. “ओम जय जगदीस हरे” से लेकर “अल्ला तेरो नाम..ईश्वर तेरो नाम..” सभी गानों,भजनों कव्वालियों के रीमिक्स हमारा बॉलीवुड दे सकता है. कौन कहता है कि बॉलीवुड में मौलिक प्रतिभा और रचनात्मकता की कमी है. हां तो बात कांटे की हो रही थी. नायिका के पांव में आखिर कांटा लगता ही क्यों है. क्या बात है वो चप्पल नहीं पहनती या फिर चप्पल इतनी नाज़ुक है कि कांटा चप्पल चीर के पांव में आन घुसता है और उसे नाचने गाने पर विवश कर देता है. 








ये नायिका को क्या पडी है जो नंगे पांव ही दौडे‌ जाती है. अगलों ने भी ना जाने कितने गाने पांव पर ही लिख मारे हैं. “पांव छू लेने दो ..” से लेकर ‘सैय्यां पडू‌ पैय्यां...” तक गाडी आन पहुंची है. आगे आप समझदार हैं. कल्पना कर सकते हैं. यूं आगे आगे आपकी कल्पना के लिये अगलों ने कुछ छोड‌ना नहीं है. सब कुछ उघाड़ देना है.






सुश्री एश्वर्य राय के पांव में जब हेयर लाइन फ्रेक्चर हुआ था तो लाखों चाहने वाले अपने अपने हेयर नोंच रहे थे और एश्वर्य राय को अपनी अपनी राय देना चाहते थे. चूंकि मिस राय उनकी ताल से ताल नहीं मिला रही थीं चुनांचे वे एश्वर्य के लिये ईश्वर से दुआ कर रहे थे कि वो जल्दी से जल्दी ठीक हो कर डोला रे डोला पर नाचने लगें. जल्द ही जेम्स बॉन्ड भी बच्चू अपनी सारी जासूसी भूल कर ऐश्वर्य के इर्द गिर्द पेडो के आगे पीछे अगली फिल्म में दौड़्ता नज़र आयेगा. 







पांव का हमारे देश में महत्वपूर्ण स्थान है. नायिका के नख-शिख वर्णन से लेकर पांव गलत पडे‌ नहीं कि भारी हुए नहीं. सर पर पांव रख कर भागना. अब आप ही बताइये जब पांव सर पर ही रख लेंगे तो भागेंगे काय से ? जाके पांव ना फटी बिवाई ... पूत के पांव आदि ना जाने क्या क्या.क्या.पांव पूजे जाते हैं. पांव बिछुए, मेहंदी महावर से रचाये-सजाये जाते हैं. पांव के महत्व को स्वीकारते हुए ही बाटा ने ये जिम्मेवारी अपने सर पर ली थी कि पूरे विश्व को चप्पल- जूते हम ही पहनायेंगे. बाटा को टाटा कह्ने की पूरी तैयारी के साथ अब बहुत सी कम्पनियां भी इस मैदान में आ कूदी हैं. करोडो‌ अरबो‌ का व्यवसाय है ये. पर कांटा है कि फिर भी लग जाता है और नायिका को नाचने पर विवश कर देता है.ये कांटा है...पैसा है...या फिर मश्हूर होने की अनबुझ प्यास है.पह्ले कहते थे कि ये कुछ नहीं जनरेशन गैप है या पिछ्ली पीढी का रोना है. मुझे तो लगता है कि हम लोग एलबम टू एलबम बूढे होते जा रहे हैं और बच्चे एलबम टू एलबम एडल्ट.

5 comments:

  1. आपको पसंद आया,आभारी हूं

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  2. रविन्द्र जी अभिवादन बहुत सुन्दर लेख कई विषय मुद्दे आप ने इसमें पिरोया आनंद आ गया विचार करने को प्रेरित करता हुआ
    आभार
    भ्रमर ५

    बच्चू रोते रहो रोना. हम तो सार्स मुक्त हो गये. दहेज प्रथा, जातिवाद, बे-रोज़गारी, बाल-मज़दूरी इन सब से तो बाद में भी निपट लेंगे. फर्स्ट थिंग फर्स्ट. सार्स को ऐसी पटखनी दी कि सार्स सीमा छोड़ के ये जा वो जा.

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  3. रविन्द्र जी सार्थक लेख व्यंग्य का पुट लिए हुए सच है ..थोड़ी सी सफलता कहीं मिली की बल्लियों उछालना शुरू बाकी सब गया भाड़ में ..
    भ्रमर ५

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  4. मुझे खुशी है कि व्यंग्य आपको पसंद आया. धन्यवाद

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