चतुर्भुज जब बीस साल नौकरी करके अफसर
बने तब तक 45 से ऊपर हो चले थे। उसे किसी ने बताया कि अब उसको ‘ऑफिसर
लाइक क्वालिटी’ डवलप करनी पड़ेगी। चतुर्भुज हंसा उसने इन बीस साल में न जाने
कितने अफसर निकाल दिये उस में ये सब क्वालिटी स्वत: ही आ गईं हैं। अलग से डवलप
करने की क्या ज़रूरत आन पड़ी। उसे सब पता है। उल्टे वो ही इस मामले में ट्यूशन देने
में समर्थ है। चतुर्भुज ने सुन रखा था कि अफसर लोग एक तो कोई न कोई स्पोर्ट्स करते हैं
दूसरे कोई हॉबी भी रखते होते हैं। चतुर्भुज का पहलवानी बदन जो उसने मथुरा के
मिष्ठान खा-खा कर पुष्ट किया हुआ था उम्र के इस पड़ाव तक आते-आते थुल-थुल तोंदूमल
सा हो गया था। अतः स्पोर्ट्स तो खत्म हुआ। चतुर्भुज का प्रेम अलबत्ता ठाठें मार
रहा था। तिस पर जानलेवा ये कविता करने का शौक। उसकी दोनों तरफ को लटकी हुई लंबी
मूंछे उसे पुरानी फिल्मों के डकैत का साथी सा बना देती थीं वह इसे ही पर्सनलिटी की
अपनी यू.एस.पी. समझता था।
वह प्रेम में पगी कवितायें लिखने लगा। मथुरावासी होने के कारण वह राधा-कृष्ण के प्रेम
से वाकिफ था। अब ऐसी प्रेम कविता लिखने का क्या उपयोग यदि वे अपने गंतव्य अर्थात
पात्र तक न पहुंचे। वह अपनी प्रेम
कवितायें पेज दर पेज लिख अपनी ब्रांच की भद्र महिलाओं की फाइलों में डालने लगा।
जैसे आजकल समाचार पत्रों के साथ आपको कितने ही ‘सेल’ के और
नए रेस्टोरेन्ट के पेमफ्लेट / हेंड बिल मिलते हैं। अपने कॉलेज के दिनों में वह
किताबों में रख कर प्रेम पत्र न दे पाया था अतः वो सब कसर फाइलों में प्रणय निवेदन
भरी कवितायें लिख पूरी करने लगा। वह दिन भर में दस से बीस कवितायें लिखने लगा था।
एक-एक कविता फाइल में खोंस देता। कोई महिला कविता फाड़ देती, कोई
रख लेती कोई उसी को वापिस कर देती। जब कोई जवाब या प्रतिक्रिया न होती तो वो घुमाफिरा
कर पूछ लेता “वो फाइल देखी ? आपने वो नोट पढ़ा ? और फिर
“मेरी एक कविता नहीं मिल रही है, कहीं धोखे से तुम्हारी फाइल में तो नहीं चली गई ? इस
तरह के रूटीन में चतुर्भुज को कहीं-कहीं प्रणय का प्रत्युत्तर भी मिल जाता। इसके
दो हानिकारक प्रभाव हुए। एक, वह अपने आप को बांका / सफल प्लेबॉय समझने लग पड़ा, दूसरे, उसे
अपनी कविताओं के बारे में मुगालता हो गया कि वह आला दर्जे का प्रेम कवि बन गया है।
एक ब्रांच से दूसरी ब्रांच जब उसका
ट्रांसफर होता तो वह नयी ऊर्जा से भर जाता। इस उपक्रम में उसने अपनी ब्रांच की
कितनी ही महिलाओं को मथुरा की रबड़ी, पेड़े, दूध-दही, जलेबी खिलाए। चतुर्भुज का यह दृढ़ विश्वास था कि प्रेम और मिठाई का अटूट रिश्ता
है:
गुड़ नाल इश्क़ मिठा...
चतुर्भुज की आयु के साथ उसकी प्रेम की
इंटेसिटी बढ़ती जाती और उसी रफ्तार से
कवितायें लिखने की स्पीड भी। अब वह एक दिन में बीसियों कवितायें लिख डालता। लिखना
क्या था उसक लगभग-लगभग टेम्पलेट उस के पास तैयार था। जुल्फ नागिन, आँखें
मद भरे प्याले, बदन फूलों की डाली, सांसें जैसे खुशबू
गुलाब की। बंबई ट्रांसफर होने पर उसमें
बंबई की बारिश से प्रेरित हो ‘न झटको जुल्फ से पानी’ टाइप लाइनें और
जुड़ गईं थीं।
फिर चतुर्भुज ने देखा
कि एक महिला या तो नीरस है या हिन्दी नहीं जानती। वह साफ मुकर जाती है कि फाइल में कोई कविता मिली
जबकि चतुर्भुज को अच्छी तरह याद है कि उसकी फ़ाइल में दसियों कवितायें वह खोंस चुका
है। प्रेम निवेदन की ऐसी अवहेलना ? ऐसा अवज्ञा? और एक दिन चतुर्भुज ने बिना फाइल सीधे-सीधे
कविता उसे थमा दी। यह ऐसे ही था जैसे कोई बिना पानी-सोडा नीट ग्लास भर दे और कहे बॉटम्स-अप।
महिला ने वह कविता ली और लिखित में चतुर्भुज की शिकायत चेयरमेन से कर दी, सबूत
के तौर पर कविता नत्थी कर दी। चतुर्भुज जी तलब किए गए। वे बोले “सर ये मेरी हॉबी
है ! हो सकता है कोई कविता फ़ाइल में इधर-उधर हो गई हो या फाइल में चली गई हो। अब
किसी कविता में किसी भी भद्र महिला का नाम तो लिखा नहीं यह मेरे छवि धूमिल करने का
प्रयास है”। यह सुन भद्र महिला आग-बबूला
हो गई और उसने फाइल से निकलीं सब कवितायें चेयरमेन को दे दीं “क्या ये सभी गलती से
मेरी फाइल में आ गईं ?”
चतुर्भुज ने दांव
चला “यह हो न हो मुझे फँसाने का षडयंत्र है यह कोई बड़ी साजिश है”। चेयरमेन ने पूछा
“क्यों ? इसमें इस महिला का क्या फायदा ?”
चतुर्भुज ने आव देखा न ताव चेयरमेन को लिख कर दे दिया “मेरा मनोबल टूट कर बिखर गया
है (पहले मनोबल के स्थान पर दिल लिखा करते थे) इस आरोप में अगर तनिक भी सच्चाई हुई तो मेरे इस पत्र को मेरी सेवा निवृत्ति का
आवेदन समझा जाये। ऐसी ब्रांच में काम करने का क्या फायदा जहां सम्मान और इंसाफ न
हो”। ये खत दे वे अपने घर चले गए। और नए नुक्ते और पेच सोचने लगे।
हफ्ता भी न हुआ था कि
ऑफिस से चिट्ठी आ गई। चतुर्भुज ने विजयी भाव से लिफाफा खोला कि बुलावा आया होगा “...आप पाक साफ हैं आकर ड्यूटी
जॉइन करें”। मगर यह क्या लिखा था “आपकी स्वेच्छिक सेवा निवृत्ति स्वीकार कर ली गई
है इस पत्र के मिलने के एक माह के अंदर अपने सभी फंड्ज आदि लेखा विभाग से ले लें।
चतुर्भुज को काटो तो खून नहीं। उनके पवित्र प्रेम का यह हश्र। दरअसल ब्रांच
में बहुत सी महिलाओं ने फाइल से एकत्रित की हुई सब कवितायें चेयरमेन को सौंप दी
थीं और अपने बयानों से केस को और पुख्ता कर दिया था। चतुर्भुज को यह पक्का विश्वास
था कि उसका यह बलिदान अक्खा बंबई में नहीं तो ब्रांच में सदैव अमर रहेगा। और
दुनियाँ जान जाएगी कि जहां बाकी महिलाएं रबड़ी, पेड़े जलेबी खातीं
थीं यह तो नौकरी ही खा गई।
सोनम गुप्ता वाकई बेवफा है
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