Ravi ki duniya

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Saturday, May 25, 2024

व्यंग्य: मुझे नहीं जानते ?

 


 

    (दिल्ली के छुटभैया नेता से उनका नाम पूछना गजब हो गया)       

 

                आप मेरा नाम नहीं जानते ?   आप मेरा नाम नहीं जानते ? आप वाकई मुझे नहीं जानते ?  कमाल है ! आप अपने आप को पत्रकार कहते हैं ? अब मैं क्या कहूं ? मैं 55 बरस से पत्रकारिता में हूं और आप मेरा नाम पूछ रहे हैं,  मैं इंदिरा गांधी के साथ नाश्ता करता था. मैं नरसिंहराव के ज़माने में डिप्टी प्राइम मिनिस्टर कहलाता था. आप मेरा नाम नहीं जानते ? मैं जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी का स्कॉलर रहा हूं. दुनिया के तमाम देशों में मेरे पढ़ाये लोग राजदूत और प्राइम मिनिस्टर लगे हुए हैं और आप मेरा नाम नहीं जानते ?  कैसे पत्रकार हैं आप ? मैं तो कहूंगा आप पत्रकार हैं ही नहीं.  

 

              आपको पता है देश-विदेश के कितने अखबारों में मेरे एडीटोरियल छपते हैं ? आपको ये भी नहीं पता...तो आपको पता क्या है ?...आप अपने आपको पत्रकार कहते हैं ?. मैं पिछले 50 सालों से अफगानिस्तान, ईराक़ जा रहा हूं. आपको पता है ? आप अपने आपको पत्रकार कहते हैं ? आप पत्रकार हैं ही नहीं।

 

                    आपको शायद पता नहीं न जाने कितने प्राइम मिनिस्टर मुझ से लगातार सलाह लेते रहे हैं। वो कभी अपना हाथ दिखाते हैं, कभी कुंडली। वो जानना चाहते हैं कि वो कब टूर पर निकलें। वास्तु हो या फेंग शुई सब विषयों पर मुझ से कंसल्ट करते हैं और एक आप हैं कमाल है आप मेरा नाम नहीं जानते।

 

                 आप को मालूम नहीं होगा न जाने कितनी एम्बेसी में मेरा नियमित आना जाना है। कभी राजदूत कभी राष्ट्राध्यक्ष मेरी सलाह लेते हैं। दिल्ली का ऐसा कोई स्टेट बेंकट नहीं जिसमें मेरे शिरकत नहीं होती। ये समझो दिल्ली में कोई सरकारी, अर्ध सरकारी, अंतराष्ट्रीय भोज ऐसा नहीं जिसमें मुझे न बुलाया जाता हो और एक आप हैं जो मुझ से ये पूछ रहे हैं मेरा नाम क्या है। आपके इस अज्ञान पर मुझे बहुत अफसोस होता है। मुझे आपसे शिकायत नहीं।  मुझे शिकायत उनसे है जिन्होने आपको पत्रकार बनाया है। कौन हैं ये लोग ? कहाँ से आते हैं ऐसे लोग जो मुझे नहीं जानते।

           

                कोई बड़ा नेता, मंत्री और प्रधान मंत्री का जब भी एयरपोर्ट से आना-जाना होता है आप सदैव मुझे उनकी अगवानी में पाएंगे या उन्हें टाटा बाय बाय करता पाएंगे। यदि आपने मुझे स्पॉट नहीं किया है तो क्या ये मेरे गलती है। ये आपका अज्ञान है। यू हेव नो आई फॉर डिटेल। ये भला पत्रकारों के लक्षण हैं। कतई नहीं। बरखुरदार ऐसी बेखबरी से ज्यादा दूर तक नहीं जा पाओगे।

 

            आप शायद धर्म के विरुद्ध भी हैं। नहीं तो इफ्तार पार्टी हो या कोई भंडारा मेरा बिना शुरू भी नहीं होता। सब जगह मैं ही मेहमान-ए-खुसूसी होता हूँ। पोस्टरों पर मेरा नाम फोटो चस्पा रहता है। कोई धरना हो आप मुझे वहाँ बैठा पाएंगे। विषय कोई भी हो मेरे सहभागिता भरपूर होती है। और अगर मैं धरने पर नहीं बैठा दिख रहा हूँ  तो यकीन जानो मैं नींबू पानी या ग्लूकोज पिलाते हुए उनका धरना उठवाता हूँ। पिछले दस साल में ऐसा कोई धरना नहीं जिसमें मेरा फोटो या तो दरी पर बैठे हुए या नींबू पानी पिलाते हुए न हो और एक आप हैं जो मुझ से पूछ रहे हैं कि बता तेरा नाम क्या है। आप पत्रकार नहीं हैं आप पत्रकार के नाम पर कलंक हैं।

Monday, May 20, 2024

व्यंग्य: यशस्वी विश्व-चेला

                 जी हाँ आपने ठीक पढ़ा है ये नाचीज़ का ही ताररूफ़ है। मैं देख रहा हूँ इतने बरस की उम्र के बाद भी यशस्वी तो  बन नहीं पाये फिर विश्व गुरु तो क्या ही बन पाते। अतः अपने राम ने चुपचाप ये वाली उपाधि जिसका कोई दावेदार नज़र नहीं आ रहा था हौले से अपने लिए ले ली। ये मेरे लिए ऐसे ही है जैसे कोई घर बैठ बिठाये आपको पी एच डी या डी लिट की उपाधि दे दे। मेरे तो इन दिनों चाल ही बदल गई है। सच भी है। प्यादे से फर्जी भयो टेढ़ो टेढ़ो जाये। हमारे ऑफिस मेँ एक बार यूनियन के लोगों ने शिकायत करी कि अमुक अफसर उनसे मुनासिब नम्रता के साथ पेश नहीं आते हैं। न कोई दुआ न सलाम। जब वो अफसर तलब किए गए और उन्हें माजरा बताया गया तो वे तपाक से बोले “सर ! मैं तो अपने बच्चों को भी सर कह कर संबोधित करता हूँ” अब यूनियन वाले परेशान कि ये इज्ज़त हुई कि बेइज्जती। बहरहाल ! लोग बाग जब अन्य व्यर्थ की मगर बड़े बड़ी पदवी उपाधियों को लूटने खसोटने और पी आर एजेंसी से अपने लिए होर्डिंग बनवाने मेँ मसरूफ़ थे अपुन ने ये उपाधि पकड़ ली। वो गाना है ना ‘…ग़म राह मेँ पड़े थे वही साथ हो लिए। इस लाइन मेँ कंपटीशन भी नहीं के बराबर है। न कोई यशस्वी है और न ही कोई विश्व स्तर का चेला।  

 

              विश्वस्तर का चेला बनना कोई खाला जी का घर नहीं। आग का दरिया है और वाकई डूब के जाना है। पहले तो नेपलियन की तरह आपकी डिक्शनरी मेँ भी न तो इम्पोसिबल वर्ड होना चाहिए और न ही ना बल्कि आपकी गर्दन और ज़ुबान को हाँ मेँ ही हिलने-हिलाने की ट्रेनिंग देनी होती है। डिजिटल इंडिया है बोले तो प्रोग्रामिंग करनी होगी। अब आपकी मेहनत और लगन पर है ये आप पंद्रह दिन मेँ कर पाते हैं या दो महीने मेँ। ये एक तरह की अप्रेंटिसशिप है। आपको नेचुरल तरीके से खींसे निपोरना आना चाहिए। हर बात मेँ या कहिए बात- बात मेँ। सदैव एक दैवीय मुस्कान आपके होंटों पर तैरती रहनी चाहिए। आपका स्थूल कद कितना ही लंबा क्यूँ न हो आदत दाल लीजिये झुक कर चलने की। और हाथ जोड़ कर किसी से मिलते वक़्त और भी झुक जाने की। आपने सुना नहीं जो वृक्ष फलों से लड़े रहते हैं वे सदैव झुके रहते हैं। कोई काम हो आपके मुंह से सिर्फ निकलना चाहिए “हो जाएगा या डन बशर्ते जिस गुरु को आप ये कह रहे हैं उसे इंगलिश आती हो। फिर जी जान से लग जाइए। ये आपकी रेपुटेशन के लिए ज़रूरी है। ऐसे ही धीरे धीरे आपकी कीर्ति दिन दूनी रात चौगुनी दसों दिशाओं मेँ गूंजने लगेगी। मेरे बात गांठ बांध लीजिये आजकल आप गुरु की बात करते हो कायदे के चेले मिलना दुश्वार हो गया है। जॉब मार्किट मेँ जल्द ही एड आने लगेंगे। बहुत कंपीटीटिव फील्ड होने वाला है ये।

 

     इस लाइन मेँ आपके कान बोले तो श्रवण शक्ति बहुत तेज़ होनी चाहिए। वह भी सलेक्टिव। कब क्या सुनना है कब कान आँख बंद रखने हैं आना चाहिए। आप गुरु की लीला नहीं समझते हैं तो क्यों नाहक अपना नन्हा सा दिमाग इसमें खपा रहे हैं। आपने पुरानी हिन्दी फिल्मों के बॉस के अड्डे पर बॉस के चेलों मेँ सर्वाधिक नजदीक जो बंदा होता था वो अक्सर गूंगा-बहरा होता था। बस आपको भी वैसा ही होना है। गूंगे चेलों की बहुत डिमांड होने वाली है ताकि वो करना भी चाहें तो इधर की बात उधर न कर सकें।

 

              चेले के लिए कोई काम छोटा नहीं होता, कोई काम बड़ा नहीं होता। हर एक काम इबादत की तरह पाक जज़्बे के साथ और पूरी अक़ीदत के साथ करना होता है। आपका झोला सदैव तैयार रहना चाहिए न जाने कब गुरु के साथ शॉर्ट नोटिस पर कहीं निकलना पड़ जाये। आपको सोचना नहीं है। सोचने का गुरुत्तर काम गुरु का है आपको तो बस डू ऑर डाई याद रखना है। फिर ये नहीं देखना कि आप हिमालय की कन्दराओं मेँ जा रहे हैं या कैलासा।