जी हाँ आपने ठीक पढ़ा है ये नाचीज़ का ही ताररूफ़ है। मैं देख रहा हूँ इतने बरस की उम्र के बाद भी यशस्वी तो बन नहीं पाये फिर विश्व गुरु तो क्या ही बन पाते। अतः अपने राम ने चुपचाप ये वाली उपाधि जिसका कोई दावेदार नज़र नहीं आ रहा था हौले से अपने लिए ले ली। ये मेरे लिए ऐसे ही है जैसे कोई घर बैठ बिठाये आपको पी एच डी या डी लिट की उपाधि दे दे। मेरे तो इन दिनों चाल ही बदल गई है। सच भी है। प्यादे से फर्जी भयो टेढ़ो टेढ़ो जाये। हमारे ऑफिस मेँ एक बार यूनियन के लोगों ने शिकायत करी कि अमुक अफसर उनसे मुनासिब नम्रता के साथ पेश नहीं आते हैं। न कोई दुआ न सलाम। जब वो अफसर तलब किए गए और उन्हें माजरा बताया गया तो वे तपाक से बोले “सर ! मैं तो अपने बच्चों को भी सर कह कर संबोधित करता हूँ” अब यूनियन वाले परेशान कि ये इज्ज़त हुई कि बेइज्जती। बहरहाल ! लोग बाग जब अन्य व्यर्थ की मगर बड़े बड़ी पदवी उपाधियों को लूटने खसोटने और पी आर एजेंसी से अपने लिए होर्डिंग बनवाने मेँ मसरूफ़ थे अपुन ने ये उपाधि पकड़ ली। वो गाना है ना ‘…ग़म राह मेँ पड़े थे वही साथ हो लिए’। इस लाइन मेँ कंपटीशन भी नहीं के बराबर है। न कोई यशस्वी है और न ही कोई विश्व स्तर का चेला।
विश्वस्तर का चेला बनना कोई खाला जी
का घर नहीं। आग का दरिया है और वाकई डूब के जाना है। पहले तो नेपलियन की तरह आपकी डिक्शनरी
मेँ भी न तो इम्पोसिबल वर्ड होना चाहिए और न ही ‘ना’ बल्कि आपकी गर्दन और ज़ुबान को हाँ मेँ
ही हिलने-हिलाने की ट्रेनिंग देनी होती है। डिजिटल इंडिया है बोले तो प्रोग्रामिंग
करनी होगी। अब आपकी मेहनत और लगन पर है ये आप पंद्रह दिन मेँ कर पाते हैं या दो महीने
मेँ। ये एक तरह की अप्रेंटिसशिप है। आपको नेचुरल तरीके से खींसे निपोरना आना चाहिए।
हर बात मेँ या कहिए बात- बात मेँ। सदैव एक दैवीय मुस्कान आपके होंटों पर तैरती रहनी
चाहिए। आपका स्थूल कद कितना ही लंबा क्यूँ न हो आदत दाल लीजिये झुक कर चलने की। और
हाथ जोड़ कर किसी से मिलते वक़्त और भी झुक जाने की। आपने सुना नहीं जो वृक्ष फलों से
लड़े रहते हैं वे सदैव झुके रहते हैं। कोई काम हो आपके मुंह से सिर्फ निकलना चाहिए “हो
जाएगा’ या ‘डन’ बशर्ते
जिस ‘गुरु’ को आप ये कह रहे हैं उसे इंगलिश
आती हो। फिर जी जान से लग जाइए। ये आपकी रेपुटेशन के लिए ज़रूरी है। ऐसे ही धीरे धीरे
आपकी कीर्ति दिन दूनी रात चौगुनी दसों दिशाओं मेँ गूंजने लगेगी। मेरे बात गांठ बांध
लीजिये आजकल आप गुरु की बात करते हो कायदे के चेले मिलना दुश्वार हो गया है। जॉब मार्किट
मेँ जल्द ही एड आने लगेंगे। बहुत कंपीटीटिव फील्ड होने वाला है ये।
इस लाइन मेँ आपके कान बोले तो श्रवण शक्ति बहुत
तेज़ होनी चाहिए। वह भी सलेक्टिव। कब क्या सुनना है कब कान आँख बंद रखने हैं आना चाहिए।
आप गुरु की लीला नहीं समझते हैं तो क्यों नाहक अपना नन्हा सा दिमाग इसमें खपा रहे हैं।
आपने पुरानी हिन्दी फिल्मों के बॉस के अड्डे पर बॉस के चेलों मेँ सर्वाधिक नजदीक जो
बंदा होता था वो अक्सर गूंगा-बहरा होता था। बस आपको भी वैसा ही होना है। गूंगे चेलों
की बहुत डिमांड होने वाली है ताकि वो करना भी चाहें तो इधर की बात उधर न कर सकें।
चेले के लिए कोई काम छोटा नहीं होता, कोई काम बड़ा नहीं होता। हर एक काम इबादत की तरह पाक जज़्बे के साथ और पूरी अक़ीदत के साथ करना होता है। आपका झोला सदैव तैयार रहना चाहिए न जाने कब गुरु के साथ शॉर्ट नोटिस पर कहीं निकलना पड़ जाये। आपको सोचना नहीं है। सोचने का गुरुत्तर काम गुरु का है आपको तो बस ‘डू ऑर डाई’ याद रखना है। फिर ये नहीं देखना कि आप हिमालय की कन्दराओं मेँ जा रहे हैं या कैलासा।
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