जब हम अपने बेटे के लिये लड़की देखने गए तो हमें बताया गया कि उनकी "बेटी जिम की शौकीन है" हमने सोचा आजकल सब फिजिकल फिटनेस को लेकर सचेत हैं, हमारी होने वाली बहू भी अगर फिटनेस के प्रति रुचि रखती है, ये तो अच्छी बात है। हमने रिश्ते के लिये हाँ कर दी सोचा इस बहाने हमारे साहबजादे के पिज़ा/मोमोज और लेट नाइट्स पर कुछ लगाम लगेगी। दिन बीतते क्या टाइम लगता है। शादी हो गई।
एक तो होता है जिम का शौकीन होना। दूसरा होता है बिला नागा दिन में दो बार जिम जाना, तीसरा होता है जिम में ट्रेनर होना चौथा और फाइनल सोपान होता है जिम घर में ले आना। बस तो हमारी बहू ये सभी थी, बोले तो 'फोर-इन-वन'। वह अपने साथ डम्बल, ट्रैड मिल, बैंच प्रैस, अज़ब-गजब गेजेट्स लाई। अपने कमरे को उसने जिम बना लिया। कहीं से कुछ लटक रहा था, कहीं से कुछ और। तरह तरह के वज़न वाली गोल-गोल डिस्क थीं। कहीं साइकिल, कहीं पैडल वाली मशीन,कहीं लाल-नीली बड़ी बड़ी बाॅल, तो कहीं मैट। वो जब उसका मूड करता तब जिम में बिज़ी हो जाती। कभी स्क्वैट, कभी अपर बॉडी, कभी लोअर कभी कार्डियो। वो ऐसे ऐसे नाम लेती जो हमने कभी सुने ही नहीं थे।
उसने आते ही मेरी और पत्नी की क्लास ली। "आप लोग तो अपनी फिटनेस का बिल्कुल ख्याल नहीं रखते। ऐसे कैसे चलेगा ? आप का बी.एम.आर. डांवाडोल है। आपको पता भी है ऑस्ट्रोपोरसिस हो जाएगा। आपने लास्ट टेस्ट कब कराया था ? आप कैल्शियम सप्लीमेंट लेते हैं या नहीं ?
हम दोनों के लिए अगले सप्ताह ही ट्रैक सूट आ गए। महंगे वाले वाकिंग शूज आ गए। प्रोटीन सप्लीमेंट के डिब्बे के डिब्बे आ गए। हमारा एक एक्सरसाइज़ का टाइम-टेबल बहू ने बना दिया। सुबह-सुबह मुझ से तो उठा भी नहीं जाता। मगर वह पहले दिन ही इतने जोर से चिल्लाई कि मुझे लगा कोई आग-वाग लग गई है या घर में चोर घुस आया है। हम दोनों सकपका कर भागते-लुढ़कते नज़र आए। अगले दिन से ये हो गया कि मैं तो ट्रैक सूट पहन कर ही सोने लगा। इधर बेटे-बहू के कमरे से सुबह-सुबह खट-पट की आवाज आती इधर हम दोनों बदहवास से घर से निकल भागते। फिर भले कोई सी दिशा हो। कई बार तो हड़बड़ी में ऐसा हुआ कि पत्नी जी एक दिशा में तो मैं एकदम अपोजिट दिशा में चला जाता। स्पोर्ट्स शूज को पहन कर तो नहीं सो सकते थे मगर टाइम बचाने के लिए एकदम 'रेडी टू वियर' कंडीशन में रखते थे। बैड के नीचे, फीते खोल कर ताकि सुबह फीते खोलने-बंद करने में टाइम खोटी न हो।
कुछ-कुछ दिनों में बहू हमारा बी.पी. लेती। हम दोनों को 'स्मार्ट वाच' के नाम पर एक जासूसी रिस्ट वाच पहना दी गई थी। वो देखती आज हम कितने कदम चले। पाँच हज़ार से कम कदम होते तो वो ऐसे आँखें तरेर कर देखती कि हम हकलाने लगते।
जैसे तैसे ये एक्सरसाइज़ से तो निपटने के तौर-तरीके हम दोनों ने खोज लिए। पत्नी जी अपनी महिला समिति में चली जातीं, मैं अपने दोस्त-यारों के साथ गप लड़ाता। बहू के सौजन्य से अब तो मुझे ऐसे ऐसे टर्म याद हो गए थे कि मेरे यार-दोस्त मेरे नाॅलिज़ की दाद देने लग पड़े थे। उन्हें क्या पता था कि हमारी घर में क्या हालत है। ये सब हम अपनी खुशी से थोड़े कर रहे हैं।
अब हमारी वेदना का, यातना का दूसरा पहलू शुरू हुआ। उसने हमारा 'डाइट-चार्ट' बना दिया। अब बना दिया तो बना दिया उसे डाइनिंग टेबल के साथ ही दीवाल पर चिपका भी दिया। वो चार्ट पढ़ने से मुझे तो चक्कर ही आने लग गए। आँखों के आगे अंधेरा छाने लगा। जीवन की निस्सारता यकायक समझ आने लग पड़ी। अब ये भी कोई ज़िंदगी है कि आप सलाद खाएँगे, फीका दलिया खाएँगे और स्प्राउट खाएँगे। लंच में सूप पीएंगे। आधी रोटी खाएँगे मिक्स्ड ग्रेन की, सलाद, टमाटर खाएँगे। एक कटोरी दाल पीएंगे। डिनर में तो और भी बुरी हालत थी। शायद तिहाड़ के क़ैदियों को बेहतर खाना मिलता होगा। कभी टिंडे, कभी लौकी, वही सूखी रोटी, बोले तो नो घी और मक्खन। चाय फीकी। नो अंडा। नो मिठाई, नमक कम। नो मैदा। नो पकौड़े। वो कभी कहती "नो कार्ब्स फॉर यू" कभी कहती "नो फैट फॉर यू"। मैं सूखी रोटी खा-खा कर सूखता जा रहा था और वो कहती "वंडरफुल ! आपका वेट कोन्स्टेंट है"। वज़न तोलने की दो मशीन वो ले आई थी। एक अपने कमरे में और एक हमारे कमरे में रखवा दी गई थी। वो मशीन मुझे लगता जैसे मुझे मुंह चिढ़ा रही है। सिर्फ चाय ही नहीं मेरी ज़िंदगी ही फीकी-फीकी हो गई है।
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