Ravi ki duniya

Ravi ki duniya

Wednesday, July 13, 2011

व्यंग्य मुझे पानी औरों को जाम

वो दिन गए जब लोग पानी पिलाने को पुण्य का कार्य समझते थे. जगह-जगह लोग-बाग अपनी सामर्थ्य अनुसार कुएं खुदवाते थे, प्याऊ लगवाते थे. तब पानी बेचा नहीं जाता था. प्यासों को पानी पिलाना धर्म का कार्य माना जाता था. आजकल के पेज थ्री वाले सोशल वर्कर नहीं बल्कि लोग वाकई धर्म सेवा, समाज सेवा करते थे, वो भी फोटो छपवाना तो दूर अपना नाम सामने आए बिना. बहुत हुआ तो अपने दिवंगत माता-पिता अथवा दादा-दादी के नाम की प्याऊ होती थी.
समय बदला और तेजी से बदला. यहाँ तक कि पानी के मटके-सुराही की जगह मशीनें आ गयीं. दिल्ली में दो पैसे का ग्लास पानी बिकता था. आज वह बढ़ते –बढ़ते एक रुपये प्रति ग्लास से अधिक हो गया है. बोतल बंद पानी तो 12 रुपये से 120 रुपये प्रति बोतल धड़ल्ले से बिक रहा है. पानी का धंधा ज़ोर-शोर से फलने-फूलने लगा है. सब अपने पानी को सीधा हिमालय से निकला ही बता रहे हैं. पानी के बिकने के साथ ही देशी-विदेशी कंपनियां अपना अपना पानी उतार के बाज़ार में उतार आए हैं. पहले घड़ा-सुराही दो ही आइटम थे, आज सैकड़ों चीज़ें इससे जुड़ गयीं हैं. प्लांट, फ़िल्टर, कैन्डल, कार्बन, टैंकर, एक्टर, ट्रक, प्लास्टिक बोतल, जार, नकली पानी, नकली सील (ढक्कन), खतरनाक

केमीकल्स, हानिकारक प्लास्टिक, गैस्ट्रो, लेप्टो, कैंसर और न जाने क्या क्या. पानी का खाकर पेयजल का बिजनस बहुत ही फलता-फूलता बिजनस है. इसमें असीम संभावनाएं हैं. धर्म का धर्म, लाभ का लाभ, इसे कहते हैं शुभ-लाभ. लेकिन इन सबसे नेताजी कतई प्रभावित नहीं हुए बल्कि ‘पेयजल’ सुन कर वह शहर ही छोड़ कर मुंबई रवाना हो गए. पहले भी लोग घर छोड़ कर भागते थे तो मुंबई आकर ही दम लेते थे. आज भी वही परंपरा कायम है.कहाँ गए वो लोग जो गंगा मैया की शपथ लेते थे. वह सबसे बड़ी महान और पवित्रतम शपथ मानी जाती थी. आज हालत यह है कि नेताजी को पता चला कि उन्हें पेयजल मंत्रालय मिल रहा है तो उन्होने शपथ लेने से ही इंकार कर दिया और सबको प्यासा ही छोड़ गए

तो साहब ये फर्क है कल और आज में. कल तक पेयजल उपलब्ध कराना धर्म-कर्म था आज पेयजल मंत्रालय ‘फालतू’ मान नेताजी रूठ गए और पार्टी सेवा का निर्जला व्रत ले बैठे हैं. उन्हें याद ही नहीं जो रहीम ने कहा था :

रहिमन पानी राखिये...पानी बिन सब सून...

पार्टी ने नेताजी को ‘उबारा’नहीं बल्कि नेताजी का पानी उतारने में पार्टी ने जरा भी देर नहीं लगायी. और ताबड़तोड़ त्यागपत्र स्वीकार कर नेता जी का रहा-सहा पानी भी उतार दिया.नेताजी अरब सागर के किनारे मुंबई में अपने कोप भवन में आँसू बहाते रहे
वाटर... .वाटर एवरीवेयर...नौट ए ड्रॉप टू ड्रिंक
ऐसा सुनते हैं कि तीसरा विश्वयुद्ध पानी के लिए होगा लेकिन हमारे नेता तो अभी से पानी को ले के लड़ने लग पड़े हैं. प्रैक्टिस मेक्स ए मेन परफेक्ट. मेरी चिंता दूसरी है. अब पेयजल मंत्रालय का क्या होगा ? अब पेयजल का क्या होगा ? इस सब से ऊपर अब नेताजी का क्या होगा ?

“प्यासे आए, प्यासे तेरे दर से यार चले
तेre शहर में हमारी गुजर मुमकिन नहीं
जाने कब तक सितमगरतेरा ये बाज़ार चले.........”

7 comments:

  1. pani ke bare me bahut hi acha kikha ha

    ReplyDelete
  2. Brilliant..a real life situation so well blend with the realities....

    ReplyDelete
  3. Bahut badiya likha hai sirjee..

    ReplyDelete
  4. आपका बहुत बहुत धन्यवाद आपको लेख पसंद आया

    ReplyDelete
  5. ravi ji
    sachchayee ye hai aaj dubara padhne ke baad mujhe bahut achchha laga aur is lekh ki asli gatha samajh me ayee arth purn vyang
    madhu MM
    http:kavyachitra.blogspot.com

    ReplyDelete
  6. बहुत बहुत धन्यवाद, मुझे खुशी हुई की आपको पसंद आया
    रवीन्द्र कुमार

    ReplyDelete
  7. बहुत सही लिखा आपने| आपके इस पोस्ट को मैं अपने फेसबुक वाल पे साझा कर रहा हूँ...www.facebook.com/chandankrpgcilpage

    ReplyDelete