अमरनाथ उर्फ आशा देवी की अमर बनने की आशाओं पर उस वक़्त तुषारापात हो गया जब अदालत ने उन्हें मर्द घोषित कर दिया और उनसे महापौर का पद छीन लिया जो उन्होनें हिजड़ा बन कर हासिल किया था. पॉलिटिक्स में पुरुषत्व का महत्व है और पुरुषों का अधिपत्य है. यह नामर्दों का काम नहीं. खासकर उन मर्दों का तो बिल्कुल ही नहीं जो पॉलिटिक्स के लिये नामर्द तक कहलाने को तैयार हों, ये माना लोग देश सेवा के लिये बडे से बड़ा त्याग करने को तत्पर रहते हैं. मगर 1857 से लेकर आज तक ऐसा कोई उदाहरण देखने में नहीं आया जबकि किसी ने अपनी मर्दानगी ही त्याग दी हो.
वैसे देखने में यह आया है कि अक्सर अच्छे खासे मर्द पॉलिटिक्स में जाने के बाद नामर्द बन जाते हैं. मगर वो अलग किस्सा है. कभी टिकट के लिये रोना, कभी पार्टी फंड के लिये रोन, कभी पार्टी प्रेसिडेंट के आगे घुटने टेकन, कभी सी.बी.आई. के आगे रोना, गिड़गिडाना. अच्छे भले घर से मर्द निकले थे बेचारे नपुंसक बन के रह जाते हैं.
यह अदालत का ऐथासिक फैसला है. कारण कि हिज़डे खुश थे चलो अब उनकी भी भारत की राजनीति और सत्ता के गलियारों में सुनवाई हुई. अब ‘जैनुइन’ नपुंसक भी चुने जायेंगे. मगर देखते हैं कि इस क्षेत्र में भी घुसपैठ हो गई और मिलावट आ गई. समाज का कोई हलका बचा नहीं है जिसमें मिलावट न हो गई हो. अब आप ही बताइये ऐसे में हिजड़े कहां जायें. बच्चों के पैदा होने पर आपने पह्ले ही बंदिशें लगा दी हैं. हिजड़े बेचारे कभी राज़ा महाराज़ाओं के हरम के पहरेदार थे अब ट्रैफिक सिगनलों पर भीख मांगते फिरते हैं. मगर उसमें भी सुनते हैं बेरोज़गार लड़के हिजड़े बन उनके बीच आ घुसते हैं.
लव के लिये कुछ भी करेगा. वैसे ही पॉवर के लिये कुछ भी करेगा. आप बोलेगा हिजड़ा ? हम बोलेगा “ जी हज़ूर” आप पूछेंगे नपुंसक ? हमारा उत्तर “ बिलकुल ज़नाब ! हम तो खानदानी नपुंसक हैं, हमारा बाप भी नपुंसक था”
जब मध्य प्रदेश में पहला हिजड़ा एम.एल.ए बना था तो एक सुरसुरी सी छा गई थी देश के राजनैतिक क्षितिज़ पर. कमला सभी विरोधियों की मर्दानगी को रौंदती हुई जीती थी. पार्टी बॉसस के मुंह खुले के खुले रह गये. ये क्या हुआ ? अब हम क्या करेंगे ? मर्द लोग नामर्दों से हार गये. जनता ने अपना फैसला सुना दिया था. एक किन्नर ने बाकी सबको किनारे लगा दिया था.
अब न्यायालय ने आशा देवी को मर्द बता कर उसकी नामर्दी पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया है. नामर्द बनना कोई हंसी ठठ्ठा नही है. ये हर एक के बस की बात नहीं. ये इश्क़ नहीं आसां. आशा देवी अब अपील में जायेंगे या जायेंगी और अपने आप को ‘नामर्द’ घोषित कराने के भरसक प्रयास करेंगी या करेंगे. ठाकुर यह नामर्दी मुझे दे दे ...दे दे .. आखिर महापौरी का सवाल है. नही तो फिर और क्या रह जायेगा. वही ताली पीट पीट कर जचगी में नाचना गाना.
एक बार फिर नेताओं ने साबित कर दिया कि नामर्दों की उनकी दुनियां में मर्दों का कोई काम नहीं. वे नकली नामर्दों को ढूंढ ही निकालेंगे और फिर उनसे पूछेंगे “ मेरे अंगने में तुम्हारा क्या काम है..?”
वैसे देखने में यह आया है कि अक्सर अच्छे खासे मर्द पॉलिटिक्स में जाने के बाद नामर्द बन जाते हैं. मगर वो अलग किस्सा है. कभी टिकट के लिये रोना, कभी पार्टी फंड के लिये रोन, कभी पार्टी प्रेसिडेंट के आगे घुटने टेकन, कभी सी.बी.आई. के आगे रोना, गिड़गिडाना. अच्छे भले घर से मर्द निकले थे बेचारे नपुंसक बन के रह जाते हैं.
यह अदालत का ऐथासिक फैसला है. कारण कि हिज़डे खुश थे चलो अब उनकी भी भारत की राजनीति और सत्ता के गलियारों में सुनवाई हुई. अब ‘जैनुइन’ नपुंसक भी चुने जायेंगे. मगर देखते हैं कि इस क्षेत्र में भी घुसपैठ हो गई और मिलावट आ गई. समाज का कोई हलका बचा नहीं है जिसमें मिलावट न हो गई हो. अब आप ही बताइये ऐसे में हिजड़े कहां जायें. बच्चों के पैदा होने पर आपने पह्ले ही बंदिशें लगा दी हैं. हिजड़े बेचारे कभी राज़ा महाराज़ाओं के हरम के पहरेदार थे अब ट्रैफिक सिगनलों पर भीख मांगते फिरते हैं. मगर उसमें भी सुनते हैं बेरोज़गार लड़के हिजड़े बन उनके बीच आ घुसते हैं.
लव के लिये कुछ भी करेगा. वैसे ही पॉवर के लिये कुछ भी करेगा. आप बोलेगा हिजड़ा ? हम बोलेगा “ जी हज़ूर” आप पूछेंगे नपुंसक ? हमारा उत्तर “ बिलकुल ज़नाब ! हम तो खानदानी नपुंसक हैं, हमारा बाप भी नपुंसक था”
जब मध्य प्रदेश में पहला हिजड़ा एम.एल.ए बना था तो एक सुरसुरी सी छा गई थी देश के राजनैतिक क्षितिज़ पर. कमला सभी विरोधियों की मर्दानगी को रौंदती हुई जीती थी. पार्टी बॉसस के मुंह खुले के खुले रह गये. ये क्या हुआ ? अब हम क्या करेंगे ? मर्द लोग नामर्दों से हार गये. जनता ने अपना फैसला सुना दिया था. एक किन्नर ने बाकी सबको किनारे लगा दिया था.
अब न्यायालय ने आशा देवी को मर्द बता कर उसकी नामर्दी पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया है. नामर्द बनना कोई हंसी ठठ्ठा नही है. ये हर एक के बस की बात नहीं. ये इश्क़ नहीं आसां. आशा देवी अब अपील में जायेंगे या जायेंगी और अपने आप को ‘नामर्द’ घोषित कराने के भरसक प्रयास करेंगी या करेंगे. ठाकुर यह नामर्दी मुझे दे दे ...दे दे .. आखिर महापौरी का सवाल है. नही तो फिर और क्या रह जायेगा. वही ताली पीट पीट कर जचगी में नाचना गाना.
एक बार फिर नेताओं ने साबित कर दिया कि नामर्दों की उनकी दुनियां में मर्दों का कोई काम नहीं. वे नकली नामर्दों को ढूंढ ही निकालेंगे और फिर उनसे पूछेंगे “ मेरे अंगने में तुम्हारा क्या काम है..?”