अब मुझे फुल यकीन हो चला है कि हमें
सनातनी होने से वो भी वैदिक कालीन भारतीय होने से कोई नहीं रोक सकता। इंडियन भले कभी ‘स्टोपेबल’ रहे हों,
हम अब भारतीय हो गएले हैं और वो भी सनातनी वाली किस्म के सो अब हम सही मायनों में‘अन्सटोपेबल’ हो गए हैं। हमें रोक सके, हमारी क्रिएटिविटी को रोक सके ये ज़माने में दम नहीं। अबे ! क्या बात करता
है ? हम डेमोक्रेसी की मॉम हैं। कहीं कोई माँ से भी बहस करता
है। जो करे वो नालायक। बस बहस खत्म।
एशियन कप हमने कैसे जीता है ये बात
अब खुल गई है। ज्योतिष ने हमारे एक-एक खिलाड़ी का पंचांग देख कर चयन किया है। बोले
तो ठोक-बजा कर एक-एक मोती ढूंढ कर लाये हैं। यही एक बात है जो हमें ‘राइवल’ टीम से अलग करती है। प्रतिद्वंदी
अब भी वही घिसे-पिटे दक़ियानूसी फार्मूले पर काम कर रहे हैं यथा खिलाड़ी का स्टेमिना, उसकी बुद्धि-कौशल, उसका रेकार्ड, उसकी खेल में दक्षता आदि आदि।
मेरा सरकार से विनम्र निवेदन है, निवेदन क्या आग्रह है कि ये यू.पी.एस.सी, आर.आर.बी, बेंकिंग भर्ती बोर्ड जे.ई.ई., पी.एम.टी., CUET सब बंद किए जाएँ। बस अभ्यर्थी को अपनी जन्मपत्री सबमिट करनी होगी बाकी
हमारा एक पेनल होगा ज्योतिषियों का। वे सब ठीक कर लेंगे। किसके सितारे बुलंद हैं, कौन ईमानदार रहेगा, दक्ष रहेगा सब शीशे की तरह साफ।
वे एक ‘क्रिस्टल-बॉल’ ले कर बैठा
करेंगे एक अंधेरे से कमरे में।
जहां कठिनाई आएगी वे केंडीडेट के
तिल आदि देख लेंगे, हस्त रेखाविशेषज्ञ हाथ की लकीर देख बता देंगे इसके हाथ में कितनी दौलत, शोहरत, इज्ज़त लिखी है ये दिन भर में कितनी फाइलें
क्लियर कर पाएगा। क्या ये फाइलों पर वक़्त ज़रूरत बैठ सकता है/सो सकता है या फिर
इमरजेन्सी आए तो फाइलें जला सकता है। इस पर अग्नि भारी तो नहीं।
साथ ही पेनल पर ‘फेस-रीडर’ रखे जाया करेंगे जो आपके माथे
की लकीर देख कर पता लगा लेंगे ये जजमान कितने आगे तक जाएगा। ये ‘असेट’ बनेगा अथवा ‘लायबिलिटी’। टैरो वाले भी अपनी-अपनी राय देंगे। उसी तरह ‘न्यूमरोलोजिस्ट’ अपनी अपनी गणना करेंगे। जन्म तिथि और जन्म के समय से नाम के अक्षरों से।
हस्त लिपि वाले अपने-अपने लेंस लेकर आएंगे।
भाई साहब ! इन सबकी एक राय से उन
मेधावी प्रतिभाओं की भर्ती होगी कि अव्वल तो उन्हें किसी ट्रेनिंग की ज़रूरत पड़ेगी नहीं
और यदि थोड़ी बहुत हुई भी तो मामूली सा एक सेशन इन सब आचार्यों के साथ पर्याप्त है।
आप तो ये सोचो इससे कितने समय और फंड्स
की बचत होगी। वैसे तो इस चयन प्रणाली में गलती की कोई गुंजायश है नहीं फिर भी एक
फ़ाइनल राउंड में आप ‘शॉर्ट-लिस्टड’ केंडीडेट्स से उनके घर का नक्शा नत्थी करा सकते है। इसमें मुखर्जी नगर और
ओल्ड राजिन्द्र नगर में पी.जी. में
रहने वाले बच्चों को डरने की ज़रूरत नहीं क्यों कि नक्शा उनके परमानेंट निवास का
मांगा जाएगा। यदि किसी कारणवश वह उपलब्ध नहीं हो तो वो अपने पैतृक निवास का, या माता-पिता से एफ़िडेविट करा सकते हैं कि केंडीडेट मकान के किस कोने में
रहता, सोता-जागता था। रसोई किस कोण पर थी और इज्ज़त घर किस
दिशा में था। इसका विस्तृत अध्ययन वास्तु के विशारद करेंगे और उसी आधार पर मेरिट
बन जाएगी। फिर देखना आप ! भारत को सोने की चिड़िया बनने से दुनियाँ की कोई ताकत रोक
नहीं पाएगी। सोने से यहाँ मेरा अर्थ गोल्ड से है न कि नींद से जिसमें डरावने सपने
आते हैं।