Ravi ki duniya

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Friday, September 22, 2023

व्यंग्य ‘झकास’ नहीं बोलने का!

 


 

       लो जी ! अब कोर्ट ने ऑर्डर कर दिया है कि झकास बोलने का नहीं। मतलब आपको नहीं बोलने का है अभिनेता महोदय बोल सकते हैं बोले तो फकत वो ही बोल सकते हैं ये नहीं कि मैं तुम बाकी लोग झकास बोलें।

 

          मैं सोच रहा हूँ अब अगर यही चलन चल पड़ा तो सोचो बेटा इधर आपने मुंह खोला नहीं और उधर आप पर किसी न किसी अभिनेता ने  मुकदमा लगाया नहीं। क्यों कि ऐसा कोई न कोई संवाद आपके मुंह से निकल ही जाएगा जिसके लिए आपको कोर्ट-कचहरी करनी पड़ सकती है जिसके लिए आप को मुंह छुपाए-छुपाए घूमना पड़ेगा और मुंह की खानी पड़ेगी। अब इस तरह के शब्द जैसे जिल्ले-इलाही, रिश्ते मैं तो हम तुम्हारे...चिनोय सेठ ! जिनके घर शीशे के बने हों... आपके पाँव देखे इन्हें ज़मीन पर मत उतारना... ऐसे कोई भी वाक्य बोलने से पहले चार बार सोचें। हमारी कोर्ट-कचहरी पर पहले से ही बहुत वर्कलोड है।

 

   सोचो ! अब इसको कोई बोल पाएगा या नहीं ? बोल तेरे साथ क्या सलूक किया जाये... मेरे साथ ऐसा सलूक करो जैसा एक राजा दूसरे राजा के साथ करता है। मुंह खोलने से पहले बहुत सोचना पड़ेगा!

  

      अब बीवी को या प्रेयसी को आई लव यू कहने से पहले भी पप्पू-पेजर को सोचना पड़ेंगा कुछ करना पड़ेंगा ! आज कोई हम पर भारी पड़ेला है।

     

Wednesday, September 13, 2023

व्यंग्य: अन्सटोपेबल भारतीय

 


            अब मुझे फुल यकीन हो चला है कि हमें सनातनी होने से वो भी वैदिक कालीन भारतीय होने से कोई नहीं रोक सकता। इंडियन भले कभी स्टोपेबल रहे हों, हम अब भारतीय हो गएले हैं और वो भी सनातनी वाली किस्म के सो अब हम सही मायनों मेंअन्सटोपेबल हो गए हैं। हमें रोक सके, हमारी क्रिएटिविटी को रोक सके ये ज़माने में दम नहीं। अबे ! क्या बात करता है ? हम डेमोक्रेसी की मॉम हैं। कहीं कोई माँ से भी बहस करता है। जो करे वो नालायक। बस बहस खत्म।


             एशियन कप हमने कैसे जीता है ये बात अब खुल गई है। ज्योतिष ने हमारे एक-एक खिलाड़ी का पंचांग देख कर चयन किया है। बोले तो ठोक-बजा कर एक-एक मोती ढूंढ कर लाये हैं। यही एक बात है जो हमें राइवल टीम से अलग करती है। प्रतिद्वंदी अब भी वही घिसे-पिटे दक़ियानूसी फार्मूले पर काम कर रहे हैं यथा खिलाड़ी का स्टेमिना, उसकी बुद्धि-कौशल, उसका रेकार्ड, उसकी खेल में दक्षता आदि आदि।

 

          मेरा सरकार से विनम्र निवेदन है, निवेदन क्या आग्रह है कि ये यू.पी.एस.सी, आर.आर.बी, बेंकिंग भर्ती बोर्ड जे..., पी.एम.टी., CUET सब बंद किए जाएँ। बस अभ्यर्थी को अपनी जन्मपत्री सबमिट करनी होगी बाकी हमारा एक पेनल होगा ज्योतिषियों का। वे सब ठीक कर लेंगे। किसके सितारे बुलंद हैंकौन ईमानदार रहेगा, दक्ष रहेगा सब शीशे की तरह साफ। वे एक क्रिस्टल-बॉल ले कर बैठा करेंगे एक अंधेरे से कमरे में।

 

              जहां कठिनाई आएगी वे केंडीडेट के तिल आदि देख लेंगे, हस्त रेखाविशेषज्ञ हाथ की लकीर देख बता देंगे इसके हाथ में कितनी दौलत, शोहरतइज्ज़त लिखी है ये दिन भर में कितनी फाइलें क्लियर कर पाएगा। क्या ये फाइलों पर वक़्त ज़रूरत बैठ सकता है/सो सकता है या फिर इमरजेन्सी आए तो फाइलें जला सकता है। इस पर अग्नि भारी तो नहीं।

 

                     साथ ही पेनल पर फेस-रीडर रखे जाया करेंगे जो आपके माथे की लकीर देख कर पता लगा लेंगे ये जजमान कितने आगे तक जाएगा। ये असेट बनेगा अथवा लायबिलिटी। टैरो वाले भी अपनी-अपनी राय देंगे। उसी तरह न्यूमरोलोजिस्ट अपनी अपनी गणना करेंगे। जन्म तिथि और जन्म के समय से नाम के अक्षरों से। हस्त लिपि वाले अपने-अपने लेंस लेकर आएंगे।

 

                भाई साहब ! इन सबकी एक राय से उन मेधावी प्रतिभाओं की भर्ती होगी कि अव्वल तो उन्हें किसी ट्रेनिंग की ज़रूरत पड़ेगी नहीं और यदि थोड़ी बहुत हुई भी तो मामूली सा एक सेशन इन सब आचार्यों के साथ पर्याप्त है।

 

         आप तो ये सोचो इससे कितने समय और फंड्स की बचत होगी। वैसे तो इस चयन प्रणाली में गलती की कोई गुंजायश है नहीं फिर भी एक फ़ाइनल राउंड में आप शॉर्ट-लिस्टड केंडीडेट्स से उनके घर का नक्शा नत्थी करा सकते है। इसमें मुखर्जी नगर और ओल्ड राजिन्द्र नगर में पी.जी. में रहने वाले बच्चों को डरने की ज़रूरत नहीं क्यों कि नक्शा उनके परमानेंट निवास का मांगा जाएगा। यदि किसी कारणवश वह उपलब्ध नहीं हो तो वो अपने पैतृक निवास का, या माता-पिता से एफ़िडेविट करा सकते हैं कि केंडीडेट मकान के किस कोने में रहता, सोता-जागता था। रसोई किस कोण पर थी और इज्ज़त घर किस दिशा में था। इसका विस्तृत अध्ययन वास्तु के विशारद करेंगे और उसी आधार पर मेरिट बन जाएगी। फिर देखना आप ! भारत को सोने की चिड़िया बनने से दुनियाँ की कोई ताकत रोक नहीं पाएगी। सोने से यहाँ मेरा अर्थ गोल्ड से है न कि नींद से जिसमें डरावने सपने आते हैं।

 

Friday, September 8, 2023

व्यंग्य: चाहिए क्रॉस कंट्री वधू


 

मैं भी सोच रहा हूँ कोई तो बात होगी इन क्रॉस कंट्री दुल्हनों में। काश कोई सीमा हैदर, कोई हनी, पाकिस्तान छोड़, बांग्लादेश छोड़ सीधे हमसे आन मिले। सोचा जाये तो बहुत विन-विन सिचुएशन है जी। न कोई दहेज का टंटा न कोई जात-धर्म का पुंछेला। बस मैं “... मैं आया.. आया....”  गाते मैं एयरपोर्ट/बस-अड्डा/रेलवे स्टेशन अब जिस साधन से भी वो मेरे दिल की मलिका आ रही हैं पहुँच जाता उधर वो “..मैं आई.. आई..” कहती आ जातीं। बस फिर शुरू होता हमारा प्रैस से, चैनल से इंटरव्यू टाइप हनीमून।

 

    लोग छाती पीटते, रोते चिल्लाते रहें खासकर समाज के और देश के सेल्फ-अपोइंटिड ठेकेदार। अपुन तो वी.आई.पी. बने घूमेंगे-फिरेंगे। हम पर रातों-रात कितने मीम बन जाएँगे , कितने लोग तो हमारे बारे में बात कर-कर के ही वायरल हो जाएँगे। फेमस हो जाएँगे।

 

     देखो जी कोई ढंग का रोजगार है नहीं। देश में सब जानते हैं हम जैसे शिक्षित नौजवान मुहब्बत-वीरों की हालत। सो यहाँ तो कोई अपनी लड़की देने से रहा। आखिर कौन माँ-बाप अपनी लड़की को जान बूझ कर कुएं में धकेलेगा।


या अली !  अब तो मुहब्बत तेरा ही आसरा है। सुन रहे हो ! नेपाल..बांग्लादेश..पाकिस्तान..भूटान..श्रीलंका वालो!! या फिर तुम सब इस ग़रीब वीरू को टंकी से कुदा कर ही मानोगे ? देखो मैं सारे सिग्नल तोड़-ताड़ कर टंकी पर चढ़ गया हूँ।  इतने पर तो हेमा मालिनी ने न केवल फिल्म में बल्कि असल ज़िंदगी में भी धर्मेंद्र से शादी कर ली थी। मैं भी दिल की खातिर दिलावर बनने को तत्पर बैठा हूँ, दिलबर नज़र तो आए। 

 

कोटा सुसाइड का

 

         

हम अपने बच्चे को वो नहीं बनने देना चाहते जो वो बनना चाहता है हम बच्चे को वो बनाना चाहते हैं जो हम उसे बनाना चाहते हैं। मैं इंजीनियर नहीं बन पाया तो क्या ? मेरा बेटा/बेटी बनेगी। और दिखा देगी दुनियां को कि शर्मा जी/गुप्ता जी के बच्चे भी किसी से कम नहीं। चाहे उसमें इस लाइन का एप्टीच्यूड है या नहीं उससे क्या?

           भले अपनी ज़मीन खेत गिरवीं रखने पड़े या महाजन से औने पौने  रेट पर कर्ज़ा लेना पड़े। बस कोटा के सुसाइड्स का यही लब्बोलुआब है। बाकी सब सेंसलैस डिफेंस के असफल प्रयास हैं। हम अपनी संतान को इस रेस में पीछे नहीं रहने देंगे। इंजीनियर बना कर ही मानेंगे। एक मोठा पैकेज लेने का ही है उसे।

 

हमारी बेवक़ूफियों का आप अंदाज़ भी नहीं लगा सकते:

1.   सीलिंग पंखा हटा दो उसकी जगह टेबल फैन लगाओ। बच्चू अब लटक के दिखा

2.  पंखे की रॉड इतनी कमजोर बनाओ कि जरा से बोझ से ही टूट जाए और नीचे आ जाए।

3.  पंखे में रॉड की जगह स्प्रिंग लगाओ सो पूरा पंखा ही नीचे आ जायेगा।

 

             जितने भी कोचिंग केंद्र हैं उनकी भी मजबूरी है उनको अपना सेंटर चलाना है अतः भले हर हफ्ते दो टेस्ट लेने पड़े भले बच्चे दिन रात एक कर दें मगर सब कम है। दाखिले की पर्सेंटेज 100 पहुँच चुकी है। और मज़े की बात है कि यूनिवर्सिटी में कई कोर्स में दाखिला 100% पर फुल/बंद हो जाता है। तो ऐसी मार-काट वाली स्थिति में जो न हो थोड़ा है।

जानकार लोग बताते हैं कि कोटा के सुसाइड्स को मोटा-मोटा दो श्रेणी में रख सकते हैं:

 

क.  ग़रीब / निम्न मध्यम वर्ग के लोग अपनी मकान/ज़मीन अपना खेत रहन रख कर हाई रेट पर कोचिंग की मोटी फीस भरते हैं। यह बात बच्चे को पता होती है उस पर अपनी पढ़ाई के अलावा इस बात का भी बहुत दबाव होता है खासकर जब वह वांक्षित अंक वीकली टेस्ट में नहीं ला पाता। यह दबाव बढ़ता ही जाता है। और किस घड़ी ब्रेकिंग पॉइंट पर पहुँच जाता है पता भी नहीं लगता। यहाँ बच्चे की मदद को कोई नहीं। बच्चा डिप्रेसन में चला जाता है।

 

ख. जगह-जगह के स्कूल में/बोर्ड में अंक प्रणाली अलग अलग होती हैं। बच्चा अपनी बैकग्राउंड से कोटा का सामंजस्य नहीं बना पता है। जिस प्रकार की मेहनत वहाँ कराई जाती है वह बहुत निर्दयी किस्म की होती है। टेस्ट पर टेस्ट। कदम कदम पर आपकी परख हो रही होती है। अब पता नहीं आपके बच्चे की रुचि है भी या नहीं। उसकी उतनी क्षमता है भी या नहीं बस औरों की देखा देखी हम अपने बच्चे को झोंक आते हैं। फीस के पैसे देकर हम अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ लेते हैं। आप देखते ही हैं न केवल कोचिंग सेंटर में बल्कि कॉलेज जाकर भी सुसाइड का दर सतत बना रहता है। अतः हमने अपने बच्चों को नया दौर फिल्म का घोडा बना दिया है।

 

             वक़्त आ गया है कि आप सोचें आखिर इंजीनीयरिंग ही एकमात्र क्षेत्र नहीं है और भी विषय हैं जिनमें चमकने की उतनी ही या अधिक संभावनाएं हैं। आखिर मात्र पैसा कमाना ही तो जीवन का मुख्य या एकमात्र उद्देश्य नहीं। सफलता को मनाना हमें आता है मगर अपने बच्चे को असफलता से सामंजस्य बिठाना भी सिखाएँ। उसे मशीन न बनने दें। उसे न बताएं कि पड़ोसी का बच्चा या फिर आपकी  रिश्तेदारी में फलां का लड़का या लड़की ने झण्डा लगा दिया है अब उसकी बारी है।

 

          आप अपने बच्चे के दोस्त नहीं बन सकते न बनें पर उसके दुश्मन तो न बनें