Ravi ki duniya

Ravi ki duniya

Wednesday, January 31, 2024

व्यंग्य : फोटूवाले जी पैपरा जी

 


 

संदर्भ: पिछली शाम अपनी काॅकटेल-कम-काॅन्फ्रेंस

 

          सभी पैपराजी को मेरा दिल से हाअइयय !

 

               मेरा सप्ताह का प्रोग्राम फाइनल हो गया है अतः आपके लिये नत्थी कर रही हूं। ख्याल रखें मेरी फोटो साईड से लें और ऐसे दिखाना है कि आपने अचानक मुझे स्पाॅट किया है। मैं सिक्युरिटी चैक तक पहुंचू तब तक रील चलती रहनी चाहिये। आई वांट फुल बैक कवरेज।

 

सोमवार सुबह:

 

                 जिम में आते जाते दोनों वक्त कवर होना चाहिये। मेरे कर्वज, मेरी डीप नैक आनी चाहिये, मैं जर्सी की चेन खोल के रखूंगी।

 

सोमवार शाम:

 

             रेस्टोरेंट में उतरते वक्त की फोटो होनी चाहिये और देखना कि रेस्टोरेंट का साइन बोर्ड भी आ जाये। लौटते वक्त हम सीढ़ियों से नीचे उतरेंगे। फोटो फुल- फुल आना चाहिये और कैमरा ऑन रहे जब तक गाड़ी आँखो से ओझल न हो जाये। मैं थोड़ा चेहरे पर हाथ हथेली रखूंगी पर आप अपनी फोटोग्राफी जारी रखना।

 

मंगलवार सुबह:


            मंदिर जाने का वीडियो लेना है। सड़क पर चलते हुए का। मेरे फाॅरचूनर से उतरने के बाद कैमरा ऑन करना है। गाड़ी नहीं आनी चाहिये।

मैं कैज्युल्स में हूंगी और शाॅल में हूंगी। देखना मेरे नंगे पैर और ट्रिन्कैट्स/डिजायनर पायल जरूर आनी चाहिये।

 

मंगलवार शाम :

 

               एक शांति पाठ में जाना है। फाइव स्टार में है। गाड़ी से उतर कर लाॅबी तक कवरेज चाहिये। आपके साथी को समझा दिया है वो कमेंट्स के लिये मुंह के पास माइक लायेगा, उसको मेरा बाॅउन्सर धीरे से उठा कर परे कर देगा। बाउन्सर को समझा दिया है। हाथ हल्का रखेगा।

 

शुक्रवार सुबह:

 

              नाश्ते के लिये डोसा खाने जाना है। आप 9.10 बजे तक कामथ कैफे के गेट पर पहुंच जाना। मैं 9.20 तक पहुंच जाऊंगी। सवाल याद रखना आप यहां कब से आ रही हैं और दूसरा आपका फेवरिट ब्रेकफास्ट क्या है ?

 

शुक्रवार शाम:


          शाम को डिस्को और बार के उद्घाटन के लिये जाना है। नई लो-कट ड्रेस ली है। थाई-हाई है गोल्डन कलर की। लेटैस्ट क्रेज़ है। टाइम पर पहुंच जाना। ऐसा न हो कि वेट करनी पड़ जाये।

 

सी यू ! चाओ !

Tuesday, January 30, 2024

व्यंग्य: संतन को सीकरी से ही काम

 

          ऐसा कहा जाता है कि जब अकबर बादशाह ने भक्त कवि कुंभल दास को सीकरी आकर मा-बदौलत से मिलने को बुला भेजा तो संत ने बादशाह सलामत से कहा:

 

  संतन को कहा सीकरी सों काम

  आवत जात पनहियाँ टूटी

  बिसरि गयो हरि नाम।...

 

         यह  700 साल पुरानी बात है।  तब से सियासत बहुत आगे आ गई है। हमको ही देख लो 75 साल में हम कितने बदल गये। उसी तरह संतन भी बदल गये हैं। संत-लोकी बहुत विकास को प्राप्त हुए हैं। अब हों भी क्यों न। चारों ओर विकास ही विकास की फसल लहलहा रही है। बोले तो विकास का बोलबाला है। यूं समझिए विकास, जो है सो, दौर-ए-हाजिर का ‘बजवर्ड’ बन गया है। आप खाक संत हैं अगर आपके मठ, आपके अखाड़े में बड़े-बड़े नेताओं का आना-जाना नहीं है। आपको ऐसे इवैंट लगाने पड़ेंगे जहां नेता लोग आके आपकी ड्योढ़ी पर ढोक बजाएँ। और बजाते जाएँ कभी आपके जन्मदिन पर कभी आपके आश्रम के पुनर्निर्माण के उपलक्ष्य में। सत्ता वाले नेता भी आयें और विपक्ष वाले भी आयें। आप दोनों को सम-भाव से आशीर्वाद बांटें। सत्ता वाले को कि उसकी सत्ता बनी रहे और दिन-दूनी रात आठ-गुनी उन्नति करे। मोहल्ले वाला ब्लॉक का, ब्लॉक वाला ज़िले का , ज़िले वाला प्रांत का और प्रांत वाला देश का नेता बनना चाहता है। विपक्ष वाले का सिम्पल है, बस उसको तो कैसे भी सत्ता में आने का है। फक़त एक आशीर्वाद बस होगा। संतन का काम ही यह  है कि वे नेताओं को यह समझाने में कामयाब हो जाए कि जहां वे कहेंगे उनके भक्त, उनके अनुयायी ई.वी.एम. पर वही बटन दबाएँगे। एक बार यह यकीन आ जाये फिर आपकी पौ बारह है। नेता छोटे-बड़े, वुड-बी नेता सब आपके आगे-पीछे डोलेंगे।

आपकी तरफ फलां-फलां नेता हैं ये खबर आपके अखाड़े, आश्रम जो भी आप अपने इस कारोबार को नाम दें इस से आपके बिजनेस को भी चार चाँद लग जाएँगे। लोग आजकल बहुत अशांत हैं। उनके चित्त को चैन नहीं है। वो एक गुरु की सतत् तलाश में रहते हैं। बस यही वो शून्य है जो आपने भरना है। एक बार वो कन्विन्स हो गए कि आप ही उनको भवसागर पार करा सकते हैं फिर उनकी समस्त सांसारिक चीज़ें आपकी हैं।

 

 

       पूरी की पूरी केबिनेट आपकी खिदमत में रहेगी। किसी को अपना मनपसंद पोर्टफोलियो चाहिए तो  किसी को बस केबिनेट में बना रहना है कहीं अगली रि-शफल में बेचारे का पत्ता ही न न कट जाये। बॉलीवुड अलग दिन रात आपकी सेवा में रहेगा। मेरी फिल्म चलवा दो, मेरे रील को आशीर्वाद दे दो। मुझे स्टार बनवा दो। मुझे हिट हीरोइन बनवा दो फलां प्रोड्यूसर को जरा कह भर दें।

 

 

             नौकरशाह अलग हाथ जोड़े जोड़े यस सर....यस सर कहते लाइन लगाए खड़े रहेंगे। किसी को मनपसंद पोस्टिंग चाहिए किसी को मलाईदार पोस्ट पर ट्रांसफर चाहिए।

 

           अब अपने आश्रम का और इसके साथ साथ अपना भी कोई चटकारा भरा नाम रख लो नाम के आगे स्वामी, बाबा, गुरु जी, साधु, मेरा मतलब कोई तड़कता-फड़कता नाम रखें शुरू में श्रद्धालुओं को नि:शुल्क खाना खिलाएँ फिर फेमस कर दें कि अमुक स्वामी जी के अमुक आश्रम में  कोई प्रसाद कोई चढ़ावा नहीं चढ़ता उल्टा वो हरेक को बिना भोजन नहीं आने देते। भारत जैसे देश में आपने रातों-रात मशहूर हो जाना है। जय जय कार अलग। खबर जंगल में आग की तरह फैल जाएगी।

 

        ज़मीन पर खास ध्यान देना है। अब ये तो नहीं न कि आपने तो अपने आश्रम के लिये ज़मीन झटक ली और उसमें कुछ बाहर से सोशल सर्विस जैसे दिखने वाले काम शुरू करा देने हैं जैसे स्कूल। उसकी आमदनी अलग।

 

      ओ जी ! आमदनी का तो ऐसा है कि आपसे संभले नहीं संभलेगी दौलत। फिर आप चाहें तो देश में सैटल हों या विदेश में। चाहें तो अपना ही एक टापू एक द्वीप खरीद लें। अपनी करेंसी अपना पासपोर्ट। कौन है रोकने वाला ? कोई न जी कोई न।

 

       बस एक बार आपको डिसाइड भर करना है। श्रद्धालुओं की कमी नहीं रहेगी। ये मेरी गारंटी है।

 

Wednesday, January 17, 2024

Elegy of Railway Staff College

 


 


                  

 

                                        Sir William Acworth is acknowledged as the father of training in Indian Railways. A ten-member committee was constituted under the chairmanship of Sir William Mitchell Acworth. It included three Indian members viz. V.S. Srinivasa Sastri, Member Viceroy Legislative Council, Purshottam Das Thakurdas representing Indian Commercial Interests and Sir Rajendra Nath Mookerjee. It was Acworth committee report 1921 emphasizing the need for formal training of Railway officers esp. in the field of train operations. This led to initiative by some of the State Railways to establish Central Training Instt. Chandausi in UP was established by the Railways in 1925. It was meant for both the supervisors as well as officers. In its report 1925-26 the Railway Board agreed to have one training college in the salubrious climate of Dehradun in the neighbourhood of Forest Research Instt. and the Prince of Wales Royal Indian Military College. At an estimated cost of Rs.20 lakhs the college all of 155 acres, was proposed. However, it was in 1930 at a cost of Rs.24.96 lakhs the college could be opened on 6th January 1930. It had room for 64 officers / supervisors. Usual Model Room, Lounge, classroom and Mess.  Principal was Mr. L.H.  Kirkness.The formal inauguration took place on 3rd April 1930 by His Excellency the Governor of U.P. Sir Malcolm Hailey in the august presence of Mr. T.G. Russel, Chief Commissioner Railway Board, Sir Alexander Rouse, Chief Engineer Delhi Province, Sir Alexander Rodger, Inspector General of Forests, Services of Sir Clement Hindley the first Chief Commissioner of Railways, two great Railway men Sir Philip Sheridan and Sir Austen Hadow and the first two Principals Dean and Wallace of Railway Training Instt., Chandausi U.P. Mr. Dormer a world class Railwayman was also remembered for deriving inspiration. The Agents of several important Railways also attended the ceremony. Col Walton N.W. Rly., G.L. Colvin E.I. Rly., Mr Wathen, Madras and Southern Mahrattha Rly., Mr Rothera, South India Railway. Mr Williamson Bengal and N.W. Rly., Mr. Bliss, Assam Bengal Rly., Mr. Baumgartner, Jodhpur Rly., Mr Khan Bahadur Khan, Mysore Rly.,




 

                                          Training calendar was planned and as many as 62 trainees were trained in Oct 1930. The College had a red-letter day when Lord Irwin the Viceroy of India visited the College on 23rd Oct 1930. The life of this college was really cut short when a Retrenchment Advisory committee was formed by the Railway Board. Dr Ziauddin Ahmed, a Member of the Advisory committee went on record calling the college an “expensive luxury we cannot afford to maintain the college with a deficit of 10 crores in the budget…the college may be abolished and the buildings may be sold to the Military department for locating the proposed Military College” Thus, the Indian Military Academy was established in 1932. So, the college’s life span at Dehradun was less than two years. The shift rather closures of Railway Staff College, Dehradun was by the then Govt through the committee (appointed by the then Govt) opined rather strongly that it was an expensive luxury Railways cannot afford. The Chetwode committee of Govt. which had the brief to suggest an alternative place for Military Academy had suggested three places Mhow, Satara and Dehradun. Of course, Dehradun was way ahead as a readymade building was available.

 


 

           It was only after a gap of 22 years that the Railway Staff College was set up in Pratap Vilas Palace on 31st January 1952. 22 probationary officers of Transportation Commercial Department of the Superior Revenue Establishment of Indian Railways later came to be known as Indian Railway Traffic Service.  Mr P.C. Behl had the distinction of being the first Principal (2.1.1952-10.3.1956) of Railway Staff College. He was formerly the CEO East Punjab Railway with HQ at Delhi, later G.M. of S.E. Rly and a distinguished Railway officer of IRSE. Incidentally, he was the father-in-law of Hindi films actress Nutan. The College was inaugurated on 31stJan. 1952 by the Transport and Railway Minister N. Gopalaswami Ayyangar in the presence of K. Santhanam Minister of State for Rlys, Mr. F.C. Badhwar C.R.B. Mr V Neelakantan, Member Staff, A.K. Chanda F.C., K.P. Mushran G.M., W.R.

 






                                      Cut to 25 years later, in the silver jubilee function of R.S.C. in Feb 1977 the former Maharaja Fatehsinghrao Gaekwad born in the Pratap Vilas palace recalled how he spent first 9 years of his childhood in the palace and would act as Engine driver of a specially made engine of narrow gauge, in which he would go to his school at Sayaji Baug. He mentioned that when the British sought permission to build Railway through his princely state they asked his grandfather whether he would want any compensation. His grandfather asked for no compensation however, wanted his state’s name in the Railways that explains Bombay Baroda & Central India (BB&CI) Railway.

 

 


         The Railway Staff College spread in 60 acres. Initially, Principal’s residence was in the 1st floor of the main Palace itself, opposite the library wing. Its training calendar was always abuzz with back-to-back courses.  Inter alia, its objective has all along been to foster esprit de corps among probationers coming from different parts of India and among the different services. As also to develop qualities of leadership among the officers. Some of the courses which were going ‘full’ classroom Foundation Course, Induction Course, Orientation courses Middle level courses e.g. Management Development Program, Advance Management Program, Specialized courses such as Disciplinary Action Rules, Reservation system, Vigilance, Vigilance for non-vigilance officers, training programs for DRM/PHOD and G.Ms. There are more than hundred different courses planned for a year. On any given day there will be a dozen courses running concurrently in the college. 

 


                                With excellent library on General Management and transportation management in Asia, it boasts of state-of-the-art sports facilities, courts and swimming pool. Principal used to be the outstanding officers specially handpicked for the prestigious assignment from the spectrum of very senior G.M. level Railway officers. Carefully planned Industrial and field visits used to be regularly arranged for the probationary officers. Similarly, project work, public speaking exercises/classes, Inculcating Officer like qualities. The faculty used to consist of the officers drawn from field to be able to impart to the trainee officers balanced insight into theoretical and practical knowledge/application.

 


        In less than 70 years we succeeded in trivializing training in turn the training institutes, centralized or otherwise. First to bear the onslaught was ‘training’ as a stream. Officers not required in the field; officers sought to be eased out began to be posted (read sidelined) to R.S.C. Teaching allowance as high as 30% of one’s basic pay also failed to inspire and attract the talented and keen officers. A stage came where the Principal later termed D.G., during panel formation itself found a suffix (stigma) against their name ‘suitable for non-field post’






 

          We generally go out of way rather go overboard to please our superiors / bosses. During the last decade an idea germinated that Railway should have a university of its own. Somehow opening as many as a service specific institute as could be managed were opened, buildings occupied and hefty budget arranged. R.S.C. in the year 2012 was got upgraded from College to an Academy. Overnight the sign boards were repainted, the D.G. could now say he was DG of The Academy not college. 

 







        Now if a college could become Academy, then why not a full-fledged University. Railway University or better still Transport University. A proposal emphasizing the ‘Must & Urgent’ need of a Transport University in India   was got cleared from the Cabinet through the Ministry. The University, if at all considered essential could have been set up anywhere in India. A place could have been developed. A new asset could have been easily added. A backward area could have been promoted. In short, from Kashmir to Kanyakumari the University could have been set up in any State/UT. As mentioned above, when bureaucracy decides to please superiors, sky is the limit. Though it was not required but going out of way, two States for setting up the University viz Karnataka (Minister’s home state) and of course, Gujarat were already being talked about. Rest as they say is History and the College/Academy was lost just in 70 years to become part of history. Railway officers could not even protest. How could they? when it is all of their own making.   




 

PS: meanwhile the first batch of 95 IRMS probationers is diverted to IRITM Lucknow for their foundation course 

Tuesday, January 16, 2024

व्यंग्य: गोली खट्टी-मीठी

 

                  पहले गोली केवल डॉक्टर लोग देते थे। लाल, हरी, नीली, पीली गोलियां। सर दर्द, पेट दर्द की गोली, ताकत की गोली। दूसरे टॉफी-चॉकलेट कहने से पहले हम बच्चे उनको गोली ही बोलते थे और गोली ही खाते थे। संतरे की गोली, खट्टी मीठी गोलियां। एक और गोली होती थी जो युद्ध में चलती थीं और ग़रीब सैनिक लोग अपनी देशभक्ति का सबूत देते हुए अपने-अपने देश के लिए सीने पर खाते थे।

 

              सबसे आखिरी थी वो गोली जो फिल्मों में दिखाई देती थी। उसे बॉस मारता था और अक्सर निशाने पर राइवल गेंग के आदमी होते थे    दुश्मन होते थे। कितनी ही बार अपने ही गेंग के मेम्बर को गोली मारता था जो अपने बॉस से बेवफाई करता था। मज़े की बात है यह है कि जिस मेम्बर को गोली मारनी होती थी उसे लास्ट तक, यानि गोली चलने तक, शक भी नहीं होता था कि गोली अब आई कि तब आई।

 

         फिर परिदृश्य बदला और पटल पर आए नेता लोग, तरह तरह के नेता, किसिम किसिम के नेता, छोटे नेता, बड़े नेता, गाँव के नेता, कस्बे के नेता, गोया कि ग्राम पंचायत से लेकर दुनियाँ के कोने कोने में एड्स की तरह फैल गए ये नेता। बिलकुल माफिया के माफिक। माफिया जैसे हर क्षेत्र में हैं वाटर टेंकर माफिया, किडनी माफिया, ब्लड बेंक माफिया, पार्किंग माफिया, टेंडर माफिया, एक्जाम माफिया, नकल माफिया, पेपर आउट कराने वाला माफिया, विदेश भिजवाने वाला माफिया आदि आदि। मुंबई में मैंने भिखारी माफिया और पब्लिक टॉइलेट माफिया भी देखे है। इसी तरह कोई अपने आप को गाँव का नेता बताता है, कोई ब्लॉक का तो कोई अपने आप को दुनियाँ का नेता बताता है या बनना चाहता है। नेताओं की एक हॉबी होती है गोली देने की। वो हर समय हर मीटिंग में हर चुनाव में आवाम को गोली देते हैं। बस गोली के रंग और तासीर बदलती रहती है। बदलती क्या रहती है वो यकीन दिलाते हैं ये गोली आपकी ग़रीबी हटा देगी, दूसरा आता है बताता है कि उसकी गोली इंडिया को चमका देगी और मूरख ! जब इंडिया चमकेगा, शाइनिंग करेगा तो तुम तुम्हारा गाँव, तुम्हारा शहर, तुम्हारी बिरादरी अपने आप ही शाइनिंग करने लगेगी। कोई कहता जो हुआ सो हुआ बस अब तुम्हें ऐसे अंधेरे में पेड़ पर नहीं रहने देंगे न ये पेड़ की छाल पहनने देंगे आओ बेधड़क पेड़ से नीचे उतरो, मेरा रथ तुम्हें मतदान बूथ तक ले जाएगा जब तक लौटोगे तुम्हारे दिन फिर चुके होंगे।

 

               इस तरह चुनाव दर चुनाव गोली बदलती रहती है। आवाम है कि हर बार नई गोली का यकीन कर लेता है। पिछले 75 साल से तो कर ही रहा है

 

व्यंग्य मेरा चुनाव घोषणा पत्र

 

                चुनाव आते ही सभी अपना-अपना चुनाव घोषणा पत्र झाड़-पोंछ कर धूल धक्कड़ से निकाल लाते हैं और उसमें देश-काल-वातावरण के अनुकूल कुछ काटा-पीटी  करते हैं और लो जी ! नया, बोले तो एक दम गार्डन-फ्रेश मैनिफेस्टो तैयार। इसे मैनिफेस्टो क्यों कहते हैं पता है ?, वो घोषणा पत्र जो मैनी-मैनी लोगों को बहला सके, बहका सके, उसे मैनिफेस्टो कहते हैं। इन दिनों इसके और भी नए नए नाम चल पड़े हैं जैसे संकल्प पत्र, विज़न डॉकुमेंट, मिनिमम एक्शन प्लान, प्रतिज्ञा पत्र, वचन पत्र। आइडिया ये है कि क्या नया कहें कि वोटर बातों में आ जाये और बातों बातों में हमारे फ़ेवर में अपना वोट गिरा दे। बाकी फिर हम देख लेंगे उसे कहाँ गिराना है, कहाँ उठाना है।

 

                 घोषणा पत्र में उम्मीदवार ने वोटर को यकीन दिलाना होता है कि अगले मोड़ पर आपको स्वर्ग ले जाने वाली 2X2 सुपर डीलक्स ए सी बस खड़ी है हमें अपना वोट दो और बस में जा चढ़ो। वैसे यदि आप ‘बिटवीन द लाइन्स’ पढ़ेंगे तो मिनट से पहले जान जाएंगे सब हवा-हवा है। अपुन सब पिछले 75 साल से इसी हवा-हवा पर ज़िंदा हैं। पर मैंने निश्चय किया है कि मैं एकदम सच-सच बताऊंगा अपने घोषणा पत्र में। जैसे  मैंने अपनी शादी के समय घोषणा की थी कि मैं दहेज नहीं लूँगा। चलो जी फिर शुरू करते हैं:

 

              सभी मदिरा प्रेमी साथियों के लिए केमिस्ट की दुकान की तरह शराब की दुकानें 24X7 खुली रहा करेंगी। पीने वालों से पूछो शराब से बढ़ कर कोई दवा है क्या? हरगिज़ नहीं। 'जनरिक' दवाओं की तरह ये ब्रांड-स्कॉच, देसी-विदेशी से ऊपर उठ कर सिर्फ मदिरा और मदिरा। "...रूह से महसूस करो, इसे कोई नाम न दो...।" सतत् आर. एंड डी. करके इसे सस्ते से सस्ता कराया जाएगा और नहीं तो सबसिडी दी जाएगी।  और हाँ मेट्रो/लोकल/मोनोरेल में शराब लाने ले जाने की पाबंदी तुरंत प्रभाव से हटा ली जाएगी:

 ज़ाहिद शराब पीने दे मेट्रो में बैठ कर

या वो जगह बता जहां खुदा न हो

 

           जगह-जगह नुक्कड़-नुक्कड़ जनता भोजनालय खोले जाएँगे। ये क्या कि बेचारे वोटर को गेहूं चावल का झोला पकड़ा दिया बस, मैं उनको गैस और खाना पकाने के झंझट से निजात दिलाऊँगा। जनता भोजनालय में किसी भी भूखे को वो ही 24X7 अनुसार हरदम ताज़ा भोजन मिलेगा। दोनों वेज और नॉन वेज भी। इस पाइलट प्रोजेक्ट के बाद कुछ ऐसा करना है कि लोगों को दोनों टेम का खाना सरकार देगी और फिर पैसे देने की ज़रूरत ही न रह जायेगी। असली कैशलेस इकॉनमी तो हमारी वाली होगी। दारू और खाना मिलता रहे। पूरे देश में वाई-फाई फ्री हो। और जीने को क्या चाहिए। लाइव शो देखो, इंडिया टेलेंट देखो, कॉमेडी शो देखो, समाचार देखो यूं आजकल दोनों में फर्क रह ही कहाँ गया है।

 

        बैंक ! यदि बैंक फिर भी बचे रहे तो उनका कामकाज हाई-टैक कर दिया जाएगा। सब ऑटोमेटिक। ए.टी.एम. के माफिक।

 

             ऑटो वालों/कैब वालों को भी सुविधा देनी है वो चाहे जितना चार्ज करें किसी भी लंबे से लंबे रूट से ले जाएँ कोई ‘वांदा’ नहीं। कैब ड्राइवर को टिप देना कंपलसरी होगा। जितना किराया होगा उसका 40% टिप देना ही होगा। जो देने में असमर्थ होगा तो ड्राईवर को छूट होगी कि वो आपसे कैसे भी वसूल करे। चाहे आपका सामान छीन कर चाहे आपको डरा-धमका कर।

 

            अंडा गैंग और ठक-ठक गैंग को भी विशेष रियायतें देनी हैं ये लोग कितने मेहनतकश और जुझारू हैं। आप कल्पना नहीं कर सकते। बेचारे सर्दी-गर्मी, दिन-रात परिश्रम करते हैं। तब कहीं जाकर एक अदद ब्रीफकेस या एक लैपटॉप मिल पाता है।

 

             स्कूल/कॉलेज धीरे धीरे ‘इरिलिवेंट’ होते जा रहे हैं। इनका आपकी ग्रोथ से क्या लेना-देना है। आप जन्मजात प्रतिभाशाली हैं। स्कूल और कॉलेज तो आपके टेलेंट की ‘वाट’ ही लगाते हैं। आपको कहीं का नही छोड़ते। अतः इन सब गिरोहों से बचिए। अपने टेलेंट को पहचानिए और उसको डवलप करिए। कोई ज़रूरत नही इन बड़ी-बड़ी बिल्डिंग की। इन सब में बारात घर खोले दिये जाएँगे। लोग शादी-ब्याह करें, नित्य सभा-समारोह हों। उत्सव हों। हैपिनेस इंडेक्स बढ़ाना है। छोटी-छोटी बातों जैसे पढ़ाई-लिखाई, डिग्री-फिगरी पर हमें समय वेस्ट नहीं करना है। देश को महान बनाने का गुरुत्तर लक्ष्य हमारे सामने है। हम सबको मिल कर उसे पूरा करना है और उस काम में तन-मन-धन से लगना है।

              यह हमारा हैपिनेस ज़िहाद होगा। तुमको हैपी होना ही होगा। हैपी नहीं! तो भी हैपी दिखना होगा! नहीं दिखोगे तो भी हम दिखाएंगे। तुम्हारा ‘हेपिनेस-कोशेंट’ मेरे कू विश्व में नंबर वन चाहिए हीच। लक्ष्य ठेवा।