आजकल मंडी लगी हुई है। हिमाचल प्रदेश वाली मंडी नहीं। बल्कि यह तो वो वाली है जो आजकल शहर-शहर लगी हुई है। मैंने सोचा यही मौका है अपुन भी अपनी कीमत लगवा लें। मैं इन दिनों सो भी ज्यादा रहा हूँ क्या पता कोई मेरे भी सपने में आकर मुझसे कहे “उठो वत्स ! यहाँ गलत पार्टी में पड़े-पड़े क्या सो रहे हो, देर न करो, शीघ्रता से जाकर अमुक दल की सदस्यता स्वीकार कर लो” मेरे दिल में बहुत टीस उठती है जब में सुनता हूँ फलां को 25 खोखे मिले। फलां सूबे में '50 खोखे ऑल इज़ ओ.के.' चल रेला है। कोई असेंबली की, तो कोई संसद की टिकट ले उड़ा है। एक मैं नालायक, नाकारा ! टाइम खोटी कर रहा हूँ। आधी उम्र तो इसी में वेस्ट हो गई कि मैं सोचता रहा खोखे का अर्थ लकड़ी के बॉक्स/पेटी से होता है। तब किसी ने बताया तुम्हारी पढ़ाई किसी काम की नहीं। जब तुम इतना भी नहीं जानते, तुमसे अच्छे तो आजकल के नेता लोग हैं उनकी इस मामले में 'वॉकाबुलरी' कहीं अधिक समृद्ध है। तुम्हें तो ये भी नहीं पता पेटी की अलग वैल्यू है और खोखे की अलग। तुम उस पीढ़ी के बुद्धू हो जो समझते हैं घोड़ा एक जानवर होता है जबकि यह गलत है। घोड़ा वो है जिसको दिखाने भर से अच्छा भला आदमी कुत्ता-गधा जो आप बनाना चाहें, ट्रिगर दबने से पहले बन जाता है।
मेरे केस में ‘भेजा’ शोर नहीं करता। मेरी अंतरात्मा भी मेरी
तरह पेंशन पर है। फिर न जाने क्यूँ मेरे सम्मानित ग्राहक कौन सी मंडी में भटक रहे
हैं ?
पलट तेरा ध्यान किधर है अंतरात्मा की दुकान इधर है
अब क्या करूँ ? क्या एक विज्ञापन दे दूँ। उम्मीद है मेरा विज्ञापन छप जाएगा। अखबार के लोग मना नहीं करेंगे, ना ही असंजमस में रहेंगे कि “टीपूँ और नॉट टीपूँ दैट इज़ दी क्वेश्चन”
मेरे केस में और भी आसान है। मेरा यूं कोई केस नहीं है। ‘ए मैन विद नो पास्ट’ जिसका डर दिखाया जाये। ज़रूरत ही नहीं। ये सब तो वहाँ दरकार है जहां कोई ना नुकुर कर रहा हो या मन में कोई संशय पाले बैठा हो। अपने राम का तो फंडा क्लियर है। 'हाइएस्ट बिडर' या फिर 'फर्स्ट कम-फर्स्ट-सर्व' खुल्ला खेल फर्रूखाबादी। एक बार टी.वी. पर सबके सामने पटका पहना और बूके ले लिया समझो जो चाहे बुलवा लेने की सुपारी ले ली। मसलन मेरा दम घुट रहा था इस पार्टी में। ये पार्टी अपने सिद्धान्त भूल गयी है। ये पार्टी, अब वो पार्टी नहीं रही। कोई मेरे नेता का, भगवान का, देवता का, नारी का अपमान करे मैं ये सहन नहीं कर सकता। अतः मैंने पार्टी छोड़ दी। सिंपल! अब मैं आखिरी दम तक इस (नई वाली) पार्टी के साथ रहूँगा (कहने में क्या हर्ज़ है) कोई ताज्जुब नहीं ऐसे में आप कहीं से टिकट झटकने में कामयाब हो जाएँ। या फिर कोई ‘वाई-प्लस’ टाइप सिक्युरिटी मिल जाये। सोचो ! अपनी कॉलोनी, अपने शहर में कैसी टाॅर रहेगी। पूरी रिश्तेदारी में धाक जम जानी है। अंतरात्मा को लेकर क्या चाटना है। दिया ही क्या है इस अंतरात्मा ने इतने सालों में सिवाय गुरबत और गरीबी के। अब जब कुछ अच्छे दिन आने की उम्मीद बंधी है तो ये इसे अंगड़ाई लेकर उठने मत दो। इसे थपकी देकर या डाँट कर थोड़ा लंबा सुला दो।
खबरदार ! चार जून से पहले जगी तो। एक मशहूर शेर है:
पटका बंधा था तो गुमाँ था हो
खुलने से खुल गया निशाने कमर नहीं
सो अपुन का फेवरिट आजकल ये शेर है:
पटका नहीं था गले में तो गुमाँ था हो
पटका बंधने से, खुल गया निशाने अंतरात्मा नहीं
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