Ravi ki duniya

Ravi ki duniya

Thursday, April 28, 2011

एक चप्पल से मेरा क्या होगा


सदन का लोकशाही में शैक्षिक महत्व होता है. जो चप्पल-जूते अभी तक सदन में चला करते थे अब वे सदन के बाहर भी आन पहुँचे हैं. कलमाडी जी को यह ग़म हो सकता है कि एक ही चप्पल क्यूँ मारी. दोनों तो मारते. और कुछ नहीं तो इन्हें बेच कर कुछ मुनाफा और कमाया जा सकता था. या फिर उन्हें यह रंज भी हो सकता है कि बुश, उमर और चिदमबरंम को तो महंगे वाले जूते फेंक कर मारे थे और मुझे बस सस्ती सी चप्पल में ही निपटा दिया. यह तो सरासर अपमान है.

लोकतंत्र की एक महत्वपूर्ण विशेषता है कि सभी लोक एक दूसरे को गाली देने, कोसने, को अपना अधिकार और कर्तव्य दोनों समझते हैं. उसी तरह लोकतंत्र के तंत्र की बाल की खाल निकालने को वे स्वतंत्र होते हैं. तदनुसार एक बुद्धिजीवी ने बक़ौल पान - मसाला एड कहा है भला एक चप्पल से मेरा क्या होगा. यह जितने हज़ार करोड़ का घपला / स्केम है, कम से कम उतनी चप्पल तो पड़नी चाहिये थी. कुछ तो अनुपात होना चाहिये, ये क्या कि हज़ारों करोड़ का स्केम और महज़ एक चप्पल. यह तो सरासर बे-इनसाफ़ी है. ना ऐसे नहीं चलेगा.
बुद्धिजीवी हिन्दुस्तान में बहुत इफ़रात में पाये जाते हैं. चने बेचने वालों ने पूरे मरीन ड्राइव, चौपाटी, विक्टोरिया मेमोरियल, इंडिया गेट पर चने बेच बेच कर अपने बच्चे पढ़ाये ताकि उनमें शैक्षिक योग्यता के साथ साथ कुछ बुद्धि आ जाए. उन्हें क्या पता था कि इतने बुद्धि आ जाएगी कि वे बुद्धिमान बनने की अपेक्षा बुद्धिजीवी बन जायेंगे. नतीजा ? नतीजा आपके सामने है, नौकरी है नहीं और उन्होने चने बेचने से क़तई इंकार कर दिया है.

       न खुदा ही मिला, न विसाल-ए-सनम

बस तो जनाब इसी तर्ज़ पर, न वे चने बेचने वाले ही बन पाये न नौकरी पेशा. मेरा निजी मत है कि मेरे भारत महान को ख़तरा हमेशा पढ़े-लिखे लोगों से रहा है. ग़रीब, मेहनतकश तो भगवान से, समाज से, गोत्र से, खप से, ‘लोग क्या कहेंगे से और कुछ नहीं तो अंतरात्मा से बारह महीने, तीसों दिन, 24 घंटे,1440 मिनट और 86400 सेकंड डरता है. यह पढ़ा- लिखा जीव, बिंदास होता है. वह हर घोटाले, हर बेईमानी, हर दलाली, हर जालसाज़ी को कर गुजरने को आतुर है और बच निकलने का माद्दा रखता है. जिसे आप मातृभूमि कहेंगे, पढ़े-लिखे के लिए वो महज एक प्लॉट है जिसको घेरा जा सकता है, कागजों में हेर-फेर कर एफ.एस.आई.बढ़वाई जा सकती है. मल्टीस्टोरी माल बनाये जा सकते हैं, फ्लोर के फ्लोर बेनामी बेचे जा सकते हैं. आदर्श घोटाला, 2 जी स्केम, कॉमनवैल्थ सब पढ़े-लिखे, ओहदे दार  लोगों की कारस्तानी है. ग़रीब, अनपढ़, सिम्पल लोग तो आज भी दूसरे ग़रीब, अनपढ़, सिम्पल लोगों की हर संभव मदद को तैयार रहते हैं. वे उन्हें सड़क के किनारे देख कर नाक-भों नहीं सिकोड़ते. हाऊ डरटी या हाऊ अन्हाइजेनिक कह कर मुँह नहीं फेरते. ना ही यह कह कर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेते हैं कि दिस कंट्री इज गोइंग / गॉन टू डॉग्स

ये जो चप्पल योद्धा, वीर पुरुष है वह मध्य प्रदेश का है, जहाँ विपक्ष की सरकार है. अतः यह कहा जा सकता है कि यह विपक्ष की एक और साज़िश है, सरकार के एक कर्मठ देशभक्त, एक क्रीडा भक्त, आर्य पुत्र के सम्मान को ठेस पहुँचाने का शिशुतुल्य प्रयास है. दैदीप्यमान-सूर्यपुत्र ऐसे अनायास लकड़ी के खड़ग से किंचित भी मस्तक पर बल नहीं आने देते, वो और होंगे जो इतनी सी बात पर कलामंडी खा जाएँ. इस बेचारे कपिल ठाकुर का निशाना भी चूक गया. चप्पल अगले को लगी ही नहीं. तप-साधना में सचमुच ही अगाध शक्ति होती है. अब अगले ने तो कहते  फिरना है ना मैं तो पाक-साफ़ हूँ तभी तो चप्पल मुझे छू तक ना सकी. बिल्कुल वैसे ही जैसे आज तक कोई भी पुलिस, सी.बी.आई उनके अधो वस्त्र तो दूर, शिरो-वस्त्र की चीर के स्पर्श से भी वंचित रही है.

मुझे तो सुन कर बहुत दुख हुआ, अब यह बात ना जाने कौन फैला रहा है कि कपिल ठाकुर पागल है, मानसिक रूप से विक्षिप्त है. अरे भले- मानुषो ! इस 120 करोड़ के मेरे भारत महान में एक वो ही तो बंदा बहादुर है, समझदार है, बुद्धिमान है.

ये बहादुरी, ये पागलपन हमें दे दे ठाकुर.

 चप्पल तो हम पर भी है, बल्कि चप्पल ही रह गयी है, नयी पीढ़ी के बच्चे भारत माता के लिए गा रहे हैं --- ........नानी तेरी मोरनी ( भारत कभी सोने की चिड़िया था) को मोर (अंग्रेज) ले गए बाकी जो बचा था अशोक  (आदर्श) नरेश (राजा) और सुरेश ले गए.  

5 comments:

  1. hahahhahhah, Sory hunsi rok nahi paya ......
    Mujhe pasand Aaya .Sayad Aap ke mann ko bhi tassali mili hogi.

    ReplyDelete
  2. bahut badiya.


    VINAY G. DAVID,
    EDITOR- TIMES OF CRIME
    http://tocnewsindia.blogspot.com/
    M.P. OFF :- 23/T-7, GOYAL NIKET, PRESS COMPLEX, ZONE-1, M.P. NAGAR, BHOPAL [ M.P.] 4620111
    MOB- 09893221036
    timesofcrime@gmail.com. toc_news@yahoo.co.in . toc_news@rediffmail.com. www.tocnewindia.blogspot.com

    ReplyDelete
  3. आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद. आज कल व्यंग के साथ एक ख़तरा बढ़ गया है हम सोचते है यह व्यंग वस्तु है वही थोड़े दिनों में नॉर्मल बन घटने लगता है, मिसाल के तौर पर पाजामे का नाड़ा दिखना शालीन और अच्छा नहीं माना जाता था बिल्कुल वैसे ही जैसे किसी का होटल में नॉर्मल परिस्थिति में खाना खाना या फिर बच्चे का ट्यूशन पढ़ना .. आज कल क्या चल रेला है आप देख ही रहे हैं.

    ReplyDelete
  4. bahot hi badhiya blog hai....cool quote liked it
    ये बहादुरी, ये ‘पागलपन’ हमें दे दे ठाकुर
    nahi diya to aisa ched karunga ki bhul jaoge kaha khaye or pade kaha se ..

    ReplyDelete