Ravi ki duniya

Ravi ki duniya

Monday, May 22, 2023

फ्रीमेसन

 



             

           ढाई एकड़ के क्षेत्र में लुटियन्स दिल्ली की जनपथ रोड पर जंतर-मंतर के पीछे फैली हुई है फ्रीमेसन लॉज। यह लॉज क्या है यहाँ क्या होता है ? यह लॉज इम्पीरियल होटल के नजदीक है। यह इमारत 1936 में बनी एक विश्व धरोहर (हेरिटेज बिल्डिंग) है। फ्रीमेसन हॉल में चार फ्रीमेसन मंदिर हैं। यह ग्रांड लॉज है। यहाँ पॉलीक्लीनिक और आँखों का इलाज़ भी किया जाता है यह फ्रीमेसन की एक चेरिटेबल गतिविधि है। आप सोचेंगे यह फ्रीमेसन क्या है? यह भ्रातृत्व और सत्य पर आधारित मानव मात्र के हित में कार्य करने वाली एक संस्था है। आपको जानकार आश्चर्य होगा कि मोतीलाल नेहरूडॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद डॉक्टर राधाकृष्णन, सर फिरोज़शाह मेहता, जे आर डी टाटाचक्रवर्ती राजगोपलाचारी, सर जमशेठ जी जीजीभाई, नवाब मंसूर अली खान पटौदी, महाराज जीवाजी राव सिंधिया, माधव राव सिंधिया रुडयार्ड किपलिंग, रामपुर के नवाब, पटियाला के महाराजा, फख़रुद्दीन अली, फिल्म कलाकार अशोक कुमार।


             भारत की ग्रांड लॉज का गठन 24 नवंबर 1961 को अशोक होटल की एक सभा में की गई थी, इसमें ग्रांड लॉज स्कॉटलैंड आयरलेंड और इंग्लंड के प्रतिनिधि शामिल हुए थे। स्थान स्थान से 1500 फ्रीमेसन (ब्रदर, ग्रांड मास्टर्स आदि)  इस सभा में शामिल हुए थे।


            मेजर जनरल डॉक्टर सर सय्यद रज़ा अली खान, रामपुर नवाब ग्रांड लॉज के प्रथम ग्रांड मास्टर नियुक्त हुए थे। आज इंडिया में 470 लॉज हैं जो कि 170 से अधिक शहरों में फैली हुई हैं जिसके 23000 से अधिक सदस्य हैं। ये लॉज भारत के चार क्षेत्रों अत्तार दक्षिण पूरब पश्चिम में वर्गीकृत हैं व प्रत्येक क्षेत्र का नेतृत्व रीजनल ग्रांड मास्टर करते हैं। 


            फ्रीमेसन विश्व की एक प्राचीन धर्म निरपेक्ष संस्था है। यह भ्रातृत्व आधारित एक विश्वयापी संस्था है। यह नैतिकता सत्य पर ज़ोर देती है। सदस्यों को अध्यात्म की ओर उन्मुख करती है। पिछले 280 से भी अधिक सालों से फ्रीमेसन सक्रिय हैं। 250 बरस से इंडिया में ये संस्थाए काम कर रही हैं। फ्रीमेसन का इतिहास उस से भी पुराना है वे अपने आपको किंग सोलोमन के टाइम से बताते हैं। यह सर्वप्रथम इंगलेंड में 1717 , से देखा जा रहा है। इंडिया में यह सबसे पहले कोलकाता में 1729 ई में आई। आज यह विश्व के 190 से अधिक देशों में सक्रिय है।


सत्य घटना पर आधारित खून ही खून

 


                           

                     20 साल पुरानी बात है। 19 मार्च 2003, सोमवार का दिन था। बड़े साब ऑफिस जाने की तैयारी कर रहे थे। 9.30 बजे ऑफिस की गाड़ी आई और वो ऑफिस को निकल गए। बंगला प्यून चंदर ने साब के 9 साल के बेटे को बुलाया और आव देखा न ताव उसका गला रेत दिया। मासूम छटपटा भी न पाया। पलक झपकते ही पॉलिथीन और कंबल में लपेट उसकी लाश को बाथरूम में छुपा दिया। यूं लगता था इसकी सारी तैयारी और रूपरेखा पहले से ही उसने बना रखी थी।

      मेमसाब तब दूसरे बाथरूम में स्नान कर रहीं थीं।

      साब के तीन बच्चे थे। साब दिन भर ऑफिस में और फील्ड में बिज़ी रहते थे। आए दिन टूर पर (‘लाइन’ पर) निकल जाते। उनका बंगला प्यून अभी लड़कपन में ही था सजने-सँवरने का शौक था। दिन भर अपनी मस्ती में ही रहता। इसके लिए वो मेमसाब की खूब डांट भी खाता। कहने को वो शादीशुदा था पर उसकी पत्नी गाँव में रहती थी।

     देखिये अब किसी भी साब का बंगला प्यून बनना किसी की ‘माई एम्बीशन इन लाइफ’ तो होती नहीं। वह तो रेलवे की नौकरी करने आया है। रेलवे की सुविधा यथा फ्री पास, फ्री मेडिकल सुविधा, सरकारी मकान और शानदार वेतन-भत्ते, पेंशन तथा कैरियर के लिए आया है।

      अब अगर उसका रास्ता वाया बंगला प्यून है तो यूं ही सही। कोई भी मन मार कर कमसेकम जितने दिन झाड़ू-पोंछा करना है, मेमसाब की झिड़की खानी है तो भी करता ही है। काम तो मेमसाब ने ही लेना होता है। साब तो ऑफिस चले जाते हैं। इस उम्मीद में कि साब का ट्रांसफर होने पर या न्यूनतम दिन पूरे होने पर वह भी अन्य की तरह लक-दक कपड़े पहन ठाठ से ऑफिस जाया करेगा। वह इस बीच या तो खुद ऑफिस हो आया है या फिर ऑफिस के प्यून लोग ने उसको बढ़ा-चढ़ा कर अपने ऑफिस के सच्चे-झूठे अफसाने सुना रखे होते हैं।  अतः ऑफिस मे काम करने को उसकी लार टपकती रहती है। शीघ्रश्य: शुभम।  ऑफिस का खुला-खुला वातावरण। यार-दोस्तों के साथ हंसी-मज़ाक और अन्य महिला सहकर्मियों का सहचर्य। उन्हें लगता है असली जीवन तो इनका है, वो तो बस घर की चारदीवारी में घुट रहा है। दिन भर दौड़-दौड़ के सारे काम करो। उसके बाद भी चैन नहीं। मेमसाब या साब के बच्चे जब मन किया आवाज देकर बुला लेते फिर चाहे पानी पीना हो या खाना परोसना हो।  बंगला प्यून को खाली बैठा या आराम करता तो देख ही नहीं सकते।

           चंदर की मेमसाब तो कुछ ज्यादा ही परेशान करतीं हैं ऐसा चंदर को लगता। असल मे काम तो सभी लेती ही हैं, उसके लिए तो नौकरी पर रखा ही है मगर दूसरे लोग एक दूसरे को ऐसे झूठ-झूठ दिखाते बताते कि वो कुछ नहीं करते, दिन भर ऐश करते हैं। , बात-बात में और कितनी बार तो छोटी-छोटी बात पर मेमसाब अपना गुस्सा चंदर पर निकालतीं। कितनी ही बार उन्होने उस पर हाथ भी उठा दिया था। उसका इस बात पर बहुत मज़ाक बनाया जाता कि उसने इतने बड़ी-बड़ी ज़ुल्फें क्यों रखी हुई हैं। वह उम्र के जिस पड़ाव पर था उसको अपने सजने-सँवरने में कुछ असामान्य न लगता। जबकि उसके बालों को लेकर भी बात का बतंगढ़ बनाया जाता। वह गाना गुनगुनाता तो इस बात पर भी उसको ज़ोर की डांट पड़ती। वह सीटी बजाता तो मार खाता। चंदर अंदर ही अंदर घुट रहा था। जब छुट्टी मांगो तब मना कर देतीं। उसको अपने गाँव आने-जाने में ही कितने दिन लग जाते हैं इस बीच काम कौन करेगा अतः उसको छुट्टी भी आसानी से नहीं मिलती, बहुत रोना-धोना होता।

        इस बार जब वह गाँव गया तो उसकी पत्नी ने भी साथ चलने की ज़िद की। लेकिन मेमसाब के व्यवहार को याद कर उसने यही उचित समझा कि पत्नी को गाँव में ही रखा जाये। उसकी मेमसाब ने पहले ही उसको टेर-टेर कर चेतावनी दे रखी थी कि अभी वह बच्चे-वच्चे करने की सोचे भी नहीं। चंदर को पता था कि पत्नी साथ गई तो मेमसाब ने उसे भी काम पर जोत देना है। और मिसबिहेव अलग करना है। उसे रात-दिन भला-बुरा कहती है वही नहीं सहा जाता, अब अगर उसकी पत्नी को डाँटेंगी या पत्नी के सामने उसको डाँटेंगे तो वह तो बिलकुल भी न सहा जाएगा।

                    वह भारी मन से छुट्टी से वापस काम पर लग गया तभी उसको न्यूज़ मिली की उसकी पत्नी माँ बनने वाली है। उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। वह गाँव जाना चाहता था। जब उसने अपने गाँव जाने की इच्छा बताई तो उसे साफ मना कर दिया गया। साब ने भी कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। फिर उसने ये बताना ही उचित समझा कि उसकी पत्नी की तबीयत ठीक नहीं वह गर्भ से है। बस ये सुनना था कि तूफान आ गया। मेमसाब ने उसकी न केवल पिटाई कर दी, उसको खूब भला-बुरा भी कहा। वह अभी बच्चे पैदा न करे इसकी हिदायत उसको पहले ही दी जा चुकी थी जब वह नौकरी पर आया था। मेमसाब का मानना था कि फिर चंदर का ध्यान काम में नहीं लगेगा। अपने ही पचड़ों मे उलझा रहा करेगा। एक तरह से वो उसकी लाइफ को कंट्रोल करना चाह रहीं थी ताकि उनकी दिनचर्या और कामकाज/सेवा में कोई विघ्न-बाधा न पड़े। अब चंदर को ये लगे कि मेरी संतान जो अभी इस दुनियाँ में आई भी नही है उसको लेकर इतना तूफान और कोसा जा रहा है जब वो इस दुनियाँ में होगा तो उसके साथ ये लोग कैसा तो भी व्यवहार करेंगे। और तभी उसने एक फैसला, एक खतरनाक फैसला ले लिया।

 

                          चंदर ने अपनी बहन और चार अन्य रिश्तेदारों (उनमें एक चंदर का कज़िन था) को अपने क्वाटर पर बुलाया। बंगले के पीछे ही सरवेंट क्वाटर था जिसमें वह अकेला रहता था। इन चारों लोगों को पीछे के दरवाजे से वो अपने क्वाटर में चुपचाप ले गया और किसी को कानोंकान खबर न हुई। तीनों के मन में लालच आ गया कि लूटपाट भी कर ली जाये। इतना शानदार बंगला है गहने-जेवर और धन भी खूब होगा।

            छोटे बेटे का गला रेत कर भी उनका गुस्सा शांत नहीं हुआ।  अब तो सारी प्लानिंग ही बदल चुकी थी। जैसे ही मेमसाब बाथरूम से निकलीं। चंदर ने उनको पकड़ लिया और एक साथी ने उन पर गोली चला दी। लेकिन हाथापाई में गोली मेमसाब को न लग के जो चला रहा था उसी को लग गई। बस फिर क्या था मेमसाब का भी चाकू से गला रेत दिया गया।

         दोपहर को साब की छोटी बेटी के स्कूल से आने का समय हो गया। जैसे ही वह आई इन लोगों ने उसका भी गला काट दिया। औए उस मासूम की लाश को भी बाथरूम में रख दिया। उन पर तो जैसे खून सवार हो गया था।


         चंदर ने इस सब के बाद साब के लिए टिफ़िन तैयार किया और ऑफिस प्यून (जो टिफ़िन लेने आता) के हाथ उसको भिजवा दिया। फिर वे अपने साथी को जिसे गोली लगी थी लेकर अस्पताल गए और डॉक्टर को कहानी सुना दी कि फ़ैक्टरी में एक्सिडेंट में चोट लग गई, बुरी तरह घायल हो  गया है, उसको अस्पताल में दाखिल कर वे सभी बंगले में वापिस आ गए और साब का इंतज़ार करने लगे। शाम को सात बजे साब आए तो बंगले में अंधेरा था। चंदर ने ड्राईवर से जो बंगले में आकर साब का ब्रीफकेस रखता था बाहर ही ब्रीफकेस ले लिया और एकदम नजदीक से पीछे से उनके सिर में गोली दाग दी। साब वहीं ढेर हो गए। सभी ने लगभग 44 तोला सोना, रिस्टवाच और 44 हज़ार नगदी चुरा अपने कब्जे में ले ली। चंदर और उसकी बहन और चंदर के एक कज़िन को बंगले में छोड़ बाकी दो लोग सामान सहित चले गए। दिन मे जब कपड़े धोने वाली और सफाई करने वाली दो मेड इस बीच आई और दफ्तर से कारपेंटर बेड ठीक करने आया तो चंदर ने कहा मेमसाब सो रही हैं और उसको एसिड आदि से बंगले की अच्छी तरह सफाई का बोला है। चंदर और उसकी बहन ने बंगले को धो कर खून के दाग मिटा दिये।


          रात को 11 बजे चंदर और उसके कज़िन ने एक-एक कर सभी बॉडीज़ को साब की मारुति कार में डाला। रास्ते में पेट्रोल पम्प से 10 लीटर पेट्रोल खरीदा गया और दूर सुनसान इलाके में ले जाकर पेट्रोल छिड़क कर कार को आग लगा दी।

 

                         लौट कर आकर चंदर ने कहानी सुनाई कि साब अपनी फैमिली के साथ कहीं डिनर पर गए थे अभी तक आए नहीं। एक म्युनिसिपल काउंसिलर ने सुबह-सुबह थाने मे रिपोर्ट कराई कि एक कार उनके इलाके मे धू-धू कर के जल रही है। कार तब तक पूरी तरह जल चुकी थी। बॉडीज़ पता चल रही थीं। नंबर प्लेट और चेसिस नंबर से कार के मालिक का पता चलाया गया। तब तक साब के बॉस ने बताया कि साब की बड़ी बेटी का फोन आया था कि घर मे कोई फोन नहीं उठा रहा है वह राजधानी से दिल्ली से आ रही है और रास्ते मे है (वह दिल्ली में पढ़ती थी)


             पुलिस का ध्यान चंदर के झुलसी ज़ुल्फों पर गया और उसकी घबराहट और बयान बदलने पर गया और फिर जो लोग बंगले पर आए थे यथा कपड़े धोनेवाली मेड, बर्तन साफ करने वाली मेड, ऑफिस प्यून, कारपेंटर आदि के बयान से चंदर का झूठ पकड़ा गया। जरा सी सख्ती से ही वह टूट गया। उसके टूटते ही बाकियों को पकड़ना मुश्किल न था। उनके कहने पर नजदीक के चर्च के पास के कूढ़ेदान से अपराध में प्रयुक्त चाकू और मोबाइल फोन भी बरामद कर लिए गए साथ ही गहने नगदी आदि भी।  

         चंदर को मौत की सज़ा हुई और बाकी तीन को उम्र क़ैद जबकि बहन को 6 वर्ष की क़ैद हुई।


      हाई कोर्ट में अपील पर चंदर की सज़ा को उम्र क़ैद में बदल दिया गया जबकि उसके कज़िन की उम्र क़ैद की तथा बहन की 6 बरस की सज़ा बरकरार रही लेकिन बाकी दो को पर्याप्त सबूत के अभाव में रिहा कर दिया गया। यही सज़ा सुप्रीम कोर्ट तक कायम रही जहां चंदर एंड पार्टी गई थी। 


          सबसे पहले चंदर की आग में झुलसी लंबी ज़ुल्फों ने ही शक पैदा कराया। अपराध कभी ‘पे’ नहीं करता। देर-सबेर अपराधी न केवल पकड़ा जाता है बल्कि बहुत उसे भारी कीमत चुकानी पड़ती है। जैसे इन लोगों ने अपनी इज्ज़त, रोजगार और ज़िंदगी के अमूल्य बरस सलाखों के पीछे रह कर जाना होगा।


        साब लोग भी ध्यान रखें यह फिल्मों के बूढ़े रामू काका का ज़माना नहीं है। आज का युवा फिर चाहे प्युन हो या कोई और, सबकी तरह वह भी  जल्दी में है उसमें  सहनशीलता या तो है नहीं या बहुत कम है। सबसे बड़ी बात वह अपनी इज्ज़त, कैरियर और आत्मसम्मान को लेकर कुछ ज्यादा ही ‘टची’ है यकीन नहीं तो अपने खुद के बच्चों को ही देख लें। 

व्यंग्य: जंतर-मंतर का 20 सूत्री कार्यक्रम

            सवाई जयसिंह जी ने कल्पना भी नहीं की होगी कि उनका बनाया जंतर-मंतर इतना लोकप्रिय हो जाएगा और खबरों में रहा करेगा। दरअसल सत्ता (किसी की भी हो) ऐसे धरनों-प्रदर्शनों से निपटने लिए हमेशा अपने पास एक टेम्पलेट रखती है बस समय-समय पर एक या एक से अधिक बाॅक्स को टिक भर करना होता है यथा:

1. यह पाॅलिटिक्स है

2. यह विरोधियों की साजिश है

3. यह फलां को या ढिकाने को बदनाम करने की चाल है


4. जितना हम रखते हैं उतना ख्याल पिछले सौ बरस में किसी सरकार ने नहीं रखा,

इतिहास उठा कर देख लीजिये (इसी बीच संबधित चैप्टर को इतिहास की सिलेबस से ही

 हटा दीजिये)


5. पिछली सरकार में कहीं ज्यादा अथवा कहीं ज्यादा दिन तक शोषण किया गया था

6. इन्हें सीमा-पार से मदद मिल रही है

7. ये अर्बन नक्सल हैं (यदि शहरी हैं)

8. ये नक्सली हैं (यदि ग्रामीण हैं)

9. ये टुकड़े-टुकड़े गैंग है

10. ये पहले क्यों नहीं बोले अब क्यों बोल रहे हैं

11. हमें पता है इनकी फंडिंग कौन कर रहा है

12. वहां धारा 144 लगी है

13. इस आन्दोलन की परमिशन नहीं ली गई

14. ये पहलवान/किसान/टीचर/विद्यार्थी (जिसका भी हो) हैं हीं नहीं

15. ये देश को कमजोर कर रहे हैं

16. ये देश की छवि खराब कर रहे हैं

17. जाँच चल रही है कमेटी की रिपोर्ट आने तक इन्हें धैर्य रखना चाहिये/मामला सब-

जूडिस है इन्हें न्यायपालिका मे विश्वास रखना चाहिए

18. मेरे बयानों/ झप्पियों-पप्पियों को तोड़-मरोड़ कर बताया गया है

19. ये देशद्रोही हैं

20. इन्हें देश छोड़ देना चाहिये

Saturday, May 20, 2023

व्यंग्य वन डे भारत

 

           हमारे भारत की भारतीय रेल अब इन्टरनेशनल हो गई है। बोले तो वर्ल्ड क्लास। क्या पूछते काय में ? काय में क्या ? काय में इंटेरनेशनल होते हैं। अरे बाबा लुक्स में। टच एंड फील में। विजिबिलिटी में। यहाँ मैं गाय भैंस के टच की बात नहीं कर रहा हूँ जिसे टच करना नहीं आता और इंजन को ही पिचका देती है। देखो ! वर्ल्ड क्लास बोले तो थोड़ी स्टाइल, ज्यादा नज़ाकत। नहीं क्या ? तो अगर इंजन या ये वाली वर्ल्ड क्लास रेल नाज़ुक है तो शिकायत कैसी ? खींसे में पैसे हैं तो सफर करो। नहीं तो बस देखो, निहारो और धन्य हो जाओ कि इस जन्म में आप भारत में हो और उस दौर में हो जहां यह आपको देखने को मिल गई। वो कहते भी हैं न ब्यूटी इज़ इन दि आइज़ ऑफ बिहोल्डर बोले तो सुंदरता देखने वाले की आँखों में होती है। अब आपकी आँखों में सुंदरता नहीं रहती तो इसमें रेल का क्या दोष ? अपनी आँखों का इलाज़ आयुष्मान भारत योजना में कराओ जिन में अच्छे दिन का अक्स रेटिना पर नहीं गिर रहा। गिर रही है तो बस वन डे भारत की टूटी पिचकी तस्वीर। यहाँ नित नई-नवेली वन डे भारत इतने भव्य समारोहों में चलाई जा रही हैं। पूरे देश में समारोहों का जाल सा बिछ गया है। आज यहाँ झंडी दिखा, कल वहाँ, परसों कहीं और। ये सब किसके लिए ? नाशुक्रों तुम्हारे लिए। अब क्या तुम्हारे पैर धुला-धुला कर इसमें तुम्हें चढ़ाएँ। इतनी आन-बान शानो-शौकत से ये रेल चलाई जा रही है कि अब तो तुमको लगना चाहिए कि भारत 22 वीं सदी में है या 23वीं में ? कहीं सीधे 24वीं में तो नहीं पहुँच गया ? कारण 2024 में चुनाव भी हैं।

 

         जिनकी आँखों में गंदगी है ज़ाहिर है उनकी आँखों में स्वच्छ भारत अभियान नहीं पहुंचा है और वो इसमें भी कमियाँ निकाल रहे हैं। देश की  इतनी तरक्की को पचा नहीं पा रहे हैं। इनकी नज़र अब भी फोड़ा-फुंसी पर ही जाती है। अब न जाने कहाँ से कोई फोटोशॉप करके फोटो ले आए हैं जिसमें लोग-बाग न जाने कौन देश की, कौन ट्रेन में पसरे पड़े हैं, फर्श पर सो रहे हैं उकड़ूँ बैठे हैं। एक पर एक चढ़े जा रहे हैं। कह रहे हैं ये भारत की है। शर्म भी नहीं आती कह रहे हैं यही है असली भारत की तस्वीर। हम तुमको अर्श दिखा रहे हैं तुम हो कि फर्श ही दिखता है तुम्हें, आप लोग विकास डिज़र्व ही नहीं करते हो। जीवन में तरक्की करो फर्श नहीं अर्श देखो अर्श। अर्श पर आठ हज़ार करोड़ का भारत के माननीय यशस्वी विश्वगुरु प्रधान मंत्री का विमान देखो। पूरे भारत का आसमान पर राज है राज। पर तुम्हें थर्ड क्लास फर्श देखने से फुर्सत मिले तब न। उठो ! इस थर्ड क्लास ट्रेन के थर्ड क्लास डिब्बे के थर्ड क्लास फर्श से। अब तुम वर्ल्ड क्लास हो गए हो। अरे दीवानों मुझे पहचानो !

 

                     वो ट्रेन, वो डिब्बा, वो भेड़-बकरियों की तरह पसरे बंदे इंडिया के हैं भी या नहीं किसे बेरा ? आजकल फोटोशॉप और ट्रिक-फोटोग्राफी से क्या नहीं संभव ? हो न हो ये कोई फेकू-फोटू आई मीन फेक-फोटो है।  या तो ये भारत का है ही नहीं या फिर 2014 से पहले का है।

 

              अब भाई गाय-भैंस ट्रेन से टकरा जाये तो वन डे भारत क्या करे ? पिछले 70 साल में गाय भैंस के परिवार के शिक्षण-प्रशिक्षण पर कोई ध्यान नहीं दिया बस अपने परिवारवाद पर ही लगे रहे। देश का ख्याल था किसे ? अब हमीं को कोई नवीन योजना लानी पड़ेगी 5 किलो अनाज और चावल के साथ 5 किलो घास भी एड करनी पड़ेगी 

Tuesday, May 9, 2023

व्यंग्य: जय बजरंग बली

 


                 राम जी का गुड़, राम जी की चींटी। बजरंग दल किसका ? बजरंग बली का। बजरंग बली किसके ? बजरंग दल के। बजरंग बली भक्तों की रक्षा करते हैं। बजरंग दल भी अपने भक्तों की रक्षा करता है। अगर आपको अपनी रक्षा करवानी है तो आपके पास दो ही रास्ते हैं या तो बजरंग बली की आराधना करो या फिर अपने इलाके के बजरंग दल वालों से संपर्क करो। बजरंग दल आपकी रक्षा को सदैव तत्पर है। और बजरंग दल से आपकी रक्षा कोई नहीं कर सकता उसके लिए कोई तत्पर नहीं। बजरंग दल वाले भी बजरंग बली की तरह आपकी रक्षा के लिए किसी भी खतरे में कूदने को तैयार रहते हैं। वक़्त ज़रूरत अगर किसी की लंका लगानी हो तो उसके लिए भी तैयार।

         बजरंग बली वानर श्रेष्ठ थे बजरंग दल वाले भी वानर से ही इवोल्व हुए हैं जैसे हम सब हुए हैं। आप केवल पूंछ पर न जाएँ। यह कलियुग है। वैसे भी हम ऑफिशियली डार्विन को नकार चुके हैं। सच ही तो है आपने देखा बंदर से आदमी होते ? मैंने तो नहीं देखा। अलबता आदमी को बंदर होते हम सब दिन-रात देख रहे हैं और जगह-जगह देखते हैं चाहे टी वी चैनल हो, अखबार हो, रोड शो हो, सभा हो या अन्य कोई और रैली, महा रैली या फिर रैला। 

         यह डार्विन वाला कंसेप्ट भारतीय है ही नहीं।  यह विदेशी है । वहाँ लागू होता होगा। वे लोग होंगे बंदर की संतान, हम मानव श्रेष्ठ थे, हैं और रहेंगे। हमारा जेनेटिक्स डिपार्टमेन्ट पसीने से, घड़े से किस किस से नहीं बच्चे उत्पन्न कर पाने मेन समर्थ थे। ये पश्चिम वाले तो आज टेस्ट ट्यूबे और प्लास्टिक सर्जरी की बात कराते हैं हमारे यहाँ ये प्राचीन काल से चली आ रही है। वो कहते हैं ना फलां काम अरे ये तो हम कब का करके छोड़ चुके।  हमारे यहाँ सदियों से विदेशी आते थे। क्या ज्ञान की, क्या धन-दौलत की भूख मिटाने। आप सोचते हो ये 5 किलो आटा-चावल देने का रिवाज नया है। हम जगत के पालनहार हैं। वसुधाईव कुटुंबकम। हम तो कहीं नहीं गए। कदापि नहीं। विश्वगुरु कहीं नहीं जाते। बाकी संसार आता है उनकी शरण में। कभी युद्ध रुकवाने, कभी शांति वार्ता में मध्यस्थता करवाने। हम तभी जाते हैं जब कोई लाख निहोरे करे, चीफ गेस्ट बनाए। ढ़ोल नगाड़े बजवाये आर टेर-टेर कर कहे कि हम ही विश्वगुरु हैं और हमारे बिन उनकी मुक्ति संभव नहीं।

       पवनसुत, महावीर, रामदूत, अंजनीपुत्र, कपीश्वर, मारुति, विक्रम, बजरंगी, कपिकेशरी । सर जी ! बजरंग बली के दस पाँच रूप-नाम नहीं। पूरे 108 हैं। अभी तो शुरुआत हुई है। बजरंग-दली आखिर बजरंग-बली के सेवक ही तो हैं। जग जानता है:

             स्वामी से सेवक बड़ा चारों जुग प्रमाण

               सेतु बांध श्री राम गए लांघि गए हनुमान 


          तो सोच समझ कर हाँ ! लक्ष्य ठेवा ! नहीं तो बाबा बजरंगी लंका लगा देंगे,  अपनी वानर सेना को कपीश्वर ने संकेत भर करना है।