Ravi ki duniya

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Monday, May 22, 2023

सत्य घटना पर आधारित खून ही खून

 


                           

                     20 साल पुरानी बात है। 19 मार्च 2003, सोमवार का दिन था। बड़े साब ऑफिस जाने की तैयारी कर रहे थे। 9.30 बजे ऑफिस की गाड़ी आई और वो ऑफिस को निकल गए। बंगला प्यून चंदर ने साब के 9 साल के बेटे को बुलाया और आव देखा न ताव उसका गला रेत दिया। मासूम छटपटा भी न पाया। पलक झपकते ही पॉलिथीन और कंबल में लपेट उसकी लाश को बाथरूम में छुपा दिया। यूं लगता था इसकी सारी तैयारी और रूपरेखा पहले से ही उसने बना रखी थी।

      मेमसाब तब दूसरे बाथरूम में स्नान कर रहीं थीं।

      साब के तीन बच्चे थे। साब दिन भर ऑफिस में और फील्ड में बिज़ी रहते थे। आए दिन टूर पर (‘लाइन’ पर) निकल जाते। उनका बंगला प्यून अभी लड़कपन में ही था सजने-सँवरने का शौक था। दिन भर अपनी मस्ती में ही रहता। इसके लिए वो मेमसाब की खूब डांट भी खाता। कहने को वो शादीशुदा था पर उसकी पत्नी गाँव में रहती थी।

     देखिये अब किसी भी साब का बंगला प्यून बनना किसी की ‘माई एम्बीशन इन लाइफ’ तो होती नहीं। वह तो रेलवे की नौकरी करने आया है। रेलवे की सुविधा यथा फ्री पास, फ्री मेडिकल सुविधा, सरकारी मकान और शानदार वेतन-भत्ते, पेंशन तथा कैरियर के लिए आया है।

      अब अगर उसका रास्ता वाया बंगला प्यून है तो यूं ही सही। कोई भी मन मार कर कमसेकम जितने दिन झाड़ू-पोंछा करना है, मेमसाब की झिड़की खानी है तो भी करता ही है। काम तो मेमसाब ने ही लेना होता है। साब तो ऑफिस चले जाते हैं। इस उम्मीद में कि साब का ट्रांसफर होने पर या न्यूनतम दिन पूरे होने पर वह भी अन्य की तरह लक-दक कपड़े पहन ठाठ से ऑफिस जाया करेगा। वह इस बीच या तो खुद ऑफिस हो आया है या फिर ऑफिस के प्यून लोग ने उसको बढ़ा-चढ़ा कर अपने ऑफिस के सच्चे-झूठे अफसाने सुना रखे होते हैं।  अतः ऑफिस मे काम करने को उसकी लार टपकती रहती है। शीघ्रश्य: शुभम।  ऑफिस का खुला-खुला वातावरण। यार-दोस्तों के साथ हंसी-मज़ाक और अन्य महिला सहकर्मियों का सहचर्य। उन्हें लगता है असली जीवन तो इनका है, वो तो बस घर की चारदीवारी में घुट रहा है। दिन भर दौड़-दौड़ के सारे काम करो। उसके बाद भी चैन नहीं। मेमसाब या साब के बच्चे जब मन किया आवाज देकर बुला लेते फिर चाहे पानी पीना हो या खाना परोसना हो।  बंगला प्यून को खाली बैठा या आराम करता तो देख ही नहीं सकते।

           चंदर की मेमसाब तो कुछ ज्यादा ही परेशान करतीं हैं ऐसा चंदर को लगता। असल मे काम तो सभी लेती ही हैं, उसके लिए तो नौकरी पर रखा ही है मगर दूसरे लोग एक दूसरे को ऐसे झूठ-झूठ दिखाते बताते कि वो कुछ नहीं करते, दिन भर ऐश करते हैं। , बात-बात में और कितनी बार तो छोटी-छोटी बात पर मेमसाब अपना गुस्सा चंदर पर निकालतीं। कितनी ही बार उन्होने उस पर हाथ भी उठा दिया था। उसका इस बात पर बहुत मज़ाक बनाया जाता कि उसने इतने बड़ी-बड़ी ज़ुल्फें क्यों रखी हुई हैं। वह उम्र के जिस पड़ाव पर था उसको अपने सजने-सँवरने में कुछ असामान्य न लगता। जबकि उसके बालों को लेकर भी बात का बतंगढ़ बनाया जाता। वह गाना गुनगुनाता तो इस बात पर भी उसको ज़ोर की डांट पड़ती। वह सीटी बजाता तो मार खाता। चंदर अंदर ही अंदर घुट रहा था। जब छुट्टी मांगो तब मना कर देतीं। उसको अपने गाँव आने-जाने में ही कितने दिन लग जाते हैं इस बीच काम कौन करेगा अतः उसको छुट्टी भी आसानी से नहीं मिलती, बहुत रोना-धोना होता।

        इस बार जब वह गाँव गया तो उसकी पत्नी ने भी साथ चलने की ज़िद की। लेकिन मेमसाब के व्यवहार को याद कर उसने यही उचित समझा कि पत्नी को गाँव में ही रखा जाये। उसकी मेमसाब ने पहले ही उसको टेर-टेर कर चेतावनी दे रखी थी कि अभी वह बच्चे-वच्चे करने की सोचे भी नहीं। चंदर को पता था कि पत्नी साथ गई तो मेमसाब ने उसे भी काम पर जोत देना है। और मिसबिहेव अलग करना है। उसे रात-दिन भला-बुरा कहती है वही नहीं सहा जाता, अब अगर उसकी पत्नी को डाँटेंगी या पत्नी के सामने उसको डाँटेंगे तो वह तो बिलकुल भी न सहा जाएगा।

                    वह भारी मन से छुट्टी से वापस काम पर लग गया तभी उसको न्यूज़ मिली की उसकी पत्नी माँ बनने वाली है। उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। वह गाँव जाना चाहता था। जब उसने अपने गाँव जाने की इच्छा बताई तो उसे साफ मना कर दिया गया। साब ने भी कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। फिर उसने ये बताना ही उचित समझा कि उसकी पत्नी की तबीयत ठीक नहीं वह गर्भ से है। बस ये सुनना था कि तूफान आ गया। मेमसाब ने उसकी न केवल पिटाई कर दी, उसको खूब भला-बुरा भी कहा। वह अभी बच्चे पैदा न करे इसकी हिदायत उसको पहले ही दी जा चुकी थी जब वह नौकरी पर आया था। मेमसाब का मानना था कि फिर चंदर का ध्यान काम में नहीं लगेगा। अपने ही पचड़ों मे उलझा रहा करेगा। एक तरह से वो उसकी लाइफ को कंट्रोल करना चाह रहीं थी ताकि उनकी दिनचर्या और कामकाज/सेवा में कोई विघ्न-बाधा न पड़े। अब चंदर को ये लगे कि मेरी संतान जो अभी इस दुनियाँ में आई भी नही है उसको लेकर इतना तूफान और कोसा जा रहा है जब वो इस दुनियाँ में होगा तो उसके साथ ये लोग कैसा तो भी व्यवहार करेंगे। और तभी उसने एक फैसला, एक खतरनाक फैसला ले लिया।

 

                          चंदर ने अपनी बहन और चार अन्य रिश्तेदारों (उनमें एक चंदर का कज़िन था) को अपने क्वाटर पर बुलाया। बंगले के पीछे ही सरवेंट क्वाटर था जिसमें वह अकेला रहता था। इन चारों लोगों को पीछे के दरवाजे से वो अपने क्वाटर में चुपचाप ले गया और किसी को कानोंकान खबर न हुई। तीनों के मन में लालच आ गया कि लूटपाट भी कर ली जाये। इतना शानदार बंगला है गहने-जेवर और धन भी खूब होगा।

            छोटे बेटे का गला रेत कर भी उनका गुस्सा शांत नहीं हुआ।  अब तो सारी प्लानिंग ही बदल चुकी थी। जैसे ही मेमसाब बाथरूम से निकलीं। चंदर ने उनको पकड़ लिया और एक साथी ने उन पर गोली चला दी। लेकिन हाथापाई में गोली मेमसाब को न लग के जो चला रहा था उसी को लग गई। बस फिर क्या था मेमसाब का भी चाकू से गला रेत दिया गया।

         दोपहर को साब की छोटी बेटी के स्कूल से आने का समय हो गया। जैसे ही वह आई इन लोगों ने उसका भी गला काट दिया। औए उस मासूम की लाश को भी बाथरूम में रख दिया। उन पर तो जैसे खून सवार हो गया था।


         चंदर ने इस सब के बाद साब के लिए टिफ़िन तैयार किया और ऑफिस प्यून (जो टिफ़िन लेने आता) के हाथ उसको भिजवा दिया। फिर वे अपने साथी को जिसे गोली लगी थी लेकर अस्पताल गए और डॉक्टर को कहानी सुना दी कि फ़ैक्टरी में एक्सिडेंट में चोट लग गई, बुरी तरह घायल हो  गया है, उसको अस्पताल में दाखिल कर वे सभी बंगले में वापिस आ गए और साब का इंतज़ार करने लगे। शाम को सात बजे साब आए तो बंगले में अंधेरा था। चंदर ने ड्राईवर से जो बंगले में आकर साब का ब्रीफकेस रखता था बाहर ही ब्रीफकेस ले लिया और एकदम नजदीक से पीछे से उनके सिर में गोली दाग दी। साब वहीं ढेर हो गए। सभी ने लगभग 44 तोला सोना, रिस्टवाच और 44 हज़ार नगदी चुरा अपने कब्जे में ले ली। चंदर और उसकी बहन और चंदर के एक कज़िन को बंगले में छोड़ बाकी दो लोग सामान सहित चले गए। दिन मे जब कपड़े धोने वाली और सफाई करने वाली दो मेड इस बीच आई और दफ्तर से कारपेंटर बेड ठीक करने आया तो चंदर ने कहा मेमसाब सो रही हैं और उसको एसिड आदि से बंगले की अच्छी तरह सफाई का बोला है। चंदर और उसकी बहन ने बंगले को धो कर खून के दाग मिटा दिये।


          रात को 11 बजे चंदर और उसके कज़िन ने एक-एक कर सभी बॉडीज़ को साब की मारुति कार में डाला। रास्ते में पेट्रोल पम्प से 10 लीटर पेट्रोल खरीदा गया और दूर सुनसान इलाके में ले जाकर पेट्रोल छिड़क कर कार को आग लगा दी।

 

                         लौट कर आकर चंदर ने कहानी सुनाई कि साब अपनी फैमिली के साथ कहीं डिनर पर गए थे अभी तक आए नहीं। एक म्युनिसिपल काउंसिलर ने सुबह-सुबह थाने मे रिपोर्ट कराई कि एक कार उनके इलाके मे धू-धू कर के जल रही है। कार तब तक पूरी तरह जल चुकी थी। बॉडीज़ पता चल रही थीं। नंबर प्लेट और चेसिस नंबर से कार के मालिक का पता चलाया गया। तब तक साब के बॉस ने बताया कि साब की बड़ी बेटी का फोन आया था कि घर मे कोई फोन नहीं उठा रहा है वह राजधानी से दिल्ली से आ रही है और रास्ते मे है (वह दिल्ली में पढ़ती थी)


             पुलिस का ध्यान चंदर के झुलसी ज़ुल्फों पर गया और उसकी घबराहट और बयान बदलने पर गया और फिर जो लोग बंगले पर आए थे यथा कपड़े धोनेवाली मेड, बर्तन साफ करने वाली मेड, ऑफिस प्यून, कारपेंटर आदि के बयान से चंदर का झूठ पकड़ा गया। जरा सी सख्ती से ही वह टूट गया। उसके टूटते ही बाकियों को पकड़ना मुश्किल न था। उनके कहने पर नजदीक के चर्च के पास के कूढ़ेदान से अपराध में प्रयुक्त चाकू और मोबाइल फोन भी बरामद कर लिए गए साथ ही गहने नगदी आदि भी।  

         चंदर को मौत की सज़ा हुई और बाकी तीन को उम्र क़ैद जबकि बहन को 6 वर्ष की क़ैद हुई।


      हाई कोर्ट में अपील पर चंदर की सज़ा को उम्र क़ैद में बदल दिया गया जबकि उसके कज़िन की उम्र क़ैद की तथा बहन की 6 बरस की सज़ा बरकरार रही लेकिन बाकी दो को पर्याप्त सबूत के अभाव में रिहा कर दिया गया। यही सज़ा सुप्रीम कोर्ट तक कायम रही जहां चंदर एंड पार्टी गई थी। 


          सबसे पहले चंदर की आग में झुलसी लंबी ज़ुल्फों ने ही शक पैदा कराया। अपराध कभी ‘पे’ नहीं करता। देर-सबेर अपराधी न केवल पकड़ा जाता है बल्कि बहुत उसे भारी कीमत चुकानी पड़ती है। जैसे इन लोगों ने अपनी इज्ज़त, रोजगार और ज़िंदगी के अमूल्य बरस सलाखों के पीछे रह कर जाना होगा।


        साब लोग भी ध्यान रखें यह फिल्मों के बूढ़े रामू काका का ज़माना नहीं है। आज का युवा फिर चाहे प्युन हो या कोई और, सबकी तरह वह भी  जल्दी में है उसमें  सहनशीलता या तो है नहीं या बहुत कम है। सबसे बड़ी बात वह अपनी इज्ज़त, कैरियर और आत्मसम्मान को लेकर कुछ ज्यादा ही ‘टची’ है यकीन नहीं तो अपने खुद के बच्चों को ही देख लें। 

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