जी हाँ मुझे बतौर प्रचारक आगामी चुनाव में बुलाया नहीं जा रहा. यूं इस बार बड़ों बड़ों का नाम स्टार प्रचारक सूची में नहीं है। वे बड़े लोग हैं। हिमालय-विमालय जा सकते हैं। मैं हिमालय तो नहीं जा सकता। अलबत्ता बाल-बच्चों को लेकर ग़म गलत करने पड़ोस के ‘हिमालय-मॉल’ में पिज्जा खाने चला गया। पार्टी में वरिष्ठों (बूढ़े नहीं) की अनदेखी नहीं करनी चाहिये। मुझे ऐसा लग रहा है जैसे मुझे मार्गदर्शन मण्डल में डाल दिया गया हो। यूं मैंने कई बार इत्तिला भिजवाई कि इन दिनों मैं खाली हूं, देश के अन्य नौजवानों की तरह बेरोजगार हूं। पार्टी चाहे तो चुनाव प्रचार के लिये, प्रचार सभाओं में मेरी ओज़मयी वाणी और लटकों-झटकों का इस्तेमाल कर सकती है। दरअसल पहले पार्टी में एक नेता बाकी सब स्वंयसेवक होते थे। अब तो बहुत कैटेगरी होगईं हैं। उसी में से एक है स्टार प्रचारक। सो साब हाई कमांड के न रेंगनी थी, न रेंगी कान पर जूँ। अब देखना नतीज़ा। मैंने बहुतेरा कहा था मैं पिछली बार की तरह आप की शान में कवितायें सुनाऊंगा. प्रतिद्वंदी की हास्य रस की चुटकियों से ऐसी-तैसी कर छोड़ूंगा, पर नहीं, पता नहीं क्यों किसी को इस बार ये आइडिया भाया नहीं और बात–बात में मेरा ही मखौल उड़ा दिया यह कह-कह कर कि “वाट एन आइडिया ?”
हमने तो यहाँ तक कह दिया है
कि आप को कविता-कहानी का शौक़ नहीं? कोई बात नहीं! हम ‘विरोधी’ खेमें में
जा के अपनी चुनिन्दा कविताएं और जोक्स सुना आता हूं।दोनों में आजकल वैसे भी फर्क
कहां रह गया है। जोक को लय में सुना दो हास्य रस की कविता बना दो। अपने वोट नहीं पड़ते न पड़ते ससुर विरोधियों के
वोट तो कटते। वो क्या कहते हैं ‘अटैक इज़ द बेस्ट डिफेंस’. जब हमें पक्का हो गया कि
इस बार यहाँ दाल नहीं गलेगी तब हम भी ‘अंडर ग्राऊंड’ हो गये. कनसुआ लेते रहे कि
कोई अब आये ! कोई अब पुकारे ! हमें बूझता हुआ आए “चलिये हाई कमांड ने अरजेंट
बुलाया है” मगर न जी ! न कोई आना था, ना आया। अब करते रहना चिंतन-शिविर में अपनी हार पर मनन-चिंतन। दाल से याद आया
आपने दाल का ये कीया क्या ? दाल को ड्राई
फ्रूट बना दिया।
आरक्षण पर आपको कहना चाहिये 100% आरक्षण होगा, आप उल्टा बोल दिये कि इसकी समीक्षा करेंगे। सब जानते हैं समीक्षा आप बढ़ाने को तो करेंगे नहीं ज़रूर से
ज़रूर घटाने को ही करेंगे। आप को कहना चाहिये था 100% का 100% भारतीयों के लिये आरक्षण रहेगा। भारत तो पूरा का पूरा गरीब, पिछड़ा हुआ है. इसमें सब ही तो पिछड़े, दलित और महादलित हैं. अत: अब कोई दलित रहेगा न महा-दलित सब
भारतीय हैं. पॉपुलेशन की गिनती दुबारा से कराई जाएगी. तब तक न कोई क्रीमी-लेयर न
कोई नॉन-क्रीमी लेयर. सब सपरेटा है.
और अंत में ये गाय-चीता से ऊपर उठिये.
ये गाय-बैल में कुछ नहीं रखा है सिवाय फज़ीहत के।
कॉन्ग्रेस क्या पागल है जो अपना चुनाव चिन्ह गाय-बछड़ा से बदल कर ‘हाथ’ रखी।
जिनको बीफ खाना है खाएं और जिसे पालना है पाले। ‘नॉन इशू’ को ‘इशू’ बना दिया। आपके
जितने छुटभैय्ये नेता लोग ‘लूज़ टॉक’ करते हैं सबको बुलाकर कह दीजिये “खामोश....जली
को आग ..बुझी को राख कहते हैं...” वगैरा वगैरा।
आप सहयोगी दल भी तो ऐसे ऐसे रखे हैं
कि लोग बाग हँसते हैं। अब क्या बताया जाये। गलती तो आप कर दिये। अपने साथ कुछ
पढ़े-लिखे लोग रखिये, जानकार लोग
रखिये,
समझदार लोग रखिये. अब क्या हमारे मुँह से ही कहलवाएंगे कि
हमें रखिये।