Ravi ki duniya

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Tuesday, November 5, 2024

व्यंग्य : अगले जनम मोहे ‘ओरी’ ही कीजो

 

                                     

 

 

        मैंने बहुत सोचा कि यदि मेरी साधना से प्रभावित हो भगवान यकायक प्रकट हो जाएँ और चिर-परिचित अंदाज़ में पूछ बैठें “वत्स ! हम तेरे तप, तेरी साधना से बहुत प्रसन्न हुए मांग क्या मांगता है ?” मैंने बिना एक क्षण भी व्यर्थ गँवाए कह देना है “भगवन ! मुझे ओरी बना दो”। हो सकता है भगवान अपनी असमर्थता जताएं  "ऐसा तो एक ही पीस था वो हम बना चुके कुछ और मांगो वत्स?" मैंने तो अड़ जाना है कि बनना तो ओरी ही है, मैं अगले जनम तक इंतज़ार कर लूँगा। मुझे मालूम है इस पर भगवान को कोई एतराज़ ना होगा और वो फौरन “तथास्तु” कह देंगे।

 

           मैंने लिस्ट बनानी शुरू कर दी है, मुझे ओरी बनने के लिए क्या-क्या सामग्री दरकार होगी ? एक साइज़ बड़ी ढीली-ढाली पेंट। दो साइज़ बड़ी छींट वाली बुशर्ट। एक अदद दाढ़ी। एक मेंढक के डिजायन वाला मोबाइल फोन एक ‘फंकी’ सी चप्पल। और मैं तैयार हूँ। आओ किस-किस को मेरे साथ सेल्फी लेनी है ? सेल्फी खिंचाते वक़्त हाथ उनके कमर पर नहीं पेट पर रखना है। नाभि से थोड़ा ऊपर। इसे कहते हैं ‘पॉज़िटिव एनर्जी ट्रांसफर’। एक बार ये कार्यक्रम चल निकला तो पीछे देखने का नहीं। सब अपनी-अपनी पार्टी में बुलाएँगे। मगर एक बार के बुलाने से जाने का नहीं। बोलने का है “लेट मी चेक विद माई सेक्रेटरी” फिर अगले दिन फोन आए तो कहने का है “ओह आई वुड हैव लव टू कम बट आई एम इन न्यूयॉर्क ऑन देट डे”। भले आप यहीं नायगाँव में हों।

 

            इंगलिश बोलने की प्रेक्टिस करनी है। उससे कहीं ज्यादा हिन्दी को टेढ़ी-मेढ़ी बोलने की प्रेक्टिस करनी है। सबसे पहले तो स्त्रीलिंग-पुर्लिंग को एक्सचेंज कर देना है। मैं जाएगी...मैं खाएगी, बहुत मज़ा आएगी टाइप। दूसरे वीगन होना है, नो वेज, नो नॉन-वेज ओनली वीगन। नो एरेटिड ड्रिंक्स, नो कोला, नो बॉटल्ड ड्रिंक्स। एक कोई विदेशी परफ्यूम जो मार्किट में सबसे महंगा चल रहा हो उसका नाम याद कर लें। कोई पूछे तो उसका नाम ही बताना है भले आपने क्राफोर्ड मार्किट का सौ रुपये में तीन बोतल वाला लगाया हो।

 

             ध्यान रहे कोई कपड़ा नॉर्मल नहीं होना चाहिए। सब एक-दो साइज़ बड़े और छींट/डिजायन वाले, जिन्हें कोई नहीं खरीदता, होने चाहिए। हो सके तो पर्दे वालों की दुकान से प्रिंट ले आयें। चप्पल भी आजकल बहुत-बहुत फेंसी चल रही हैं। उनसे कहेंगे तो वो आपका नाम चप्पल पर प्रिंट कर देंगे इससे लगेगा कि ‘पर्सनलाइज्ड एक्सेसरीज़’ हैं। अव्वल तो आपको घड़ी पहनने की ज़रूरत है नहीं, पहना चाहें तो वो भी मार्किट में ऐसी-ऐसी डुप्लीकेट मिलती हैं कि अच्छी-अच्छी राडो उसके सामने फेल हैं। कुछ स्टोन लगे हों तो और बेहतर है आप उन्हे हीरे-मोती (रंग अनुसार) बता सकते हैं वहाँ कौन परखने बैठा है। हाँ कार कोई शानदार होनी चाहिए। आजकल इस तरह की कार किराये पर मिल जाती हैं।

 

          आपको प्रेक्टिस करके अपनी कोई भी चीज़ देसी नहीं रखनी है। कुछ ब्रण्ड्स के नाम याद कर लें, ताकि आप बता सकें कि आपका टूथ ब्रश ब्राज़ील का है तो टूथपेस्ट बुडापेस्ट की है। सोप पेरिस का होना चाहिए शेम्पू स्पेन का। आपको हर सबजेक्ट पर अपनी राय बनानी है और राय भी ऐसी जो इंडिया में बस आप ही की हो। कोई पूछे आप सुबह उठ कर क्या करते हैं आपको कहना है आप उबलता हुआ पानी पीते हैं। असल में गुनगुना पानी पीना अब ‘क्लिशे’ बन गया है। चाय ? ओह नो ! आपने अपनी लाइफ में कभी चाय नहीं पी है एक बार को छोड़ कर जब बकिंघम पैलेस में क्वीन ने अपने हाथ से बनाई थी और आप मना नहीं कर सके।

 

           आपके सभी आइकाॅन विदेशी होने चाहिए। क्या हीरो क्या राइटर  सब खालिस विदेशी। नो इंडियन। बल्कि कोई इंडियन नाम ले तो आपको पूछना है “हू इज़ दैट ?” लगे हाथ कोई गाना अपना बता कर पाॅपुलर करा दें। कुछ खबरें प्लांट करा दें जैसे आप गए तो स्टेडियम में भगदड़ मच गई। लड़कियां चीख-चीख कर आपका नाम ले रहीं थीं। 20-25 तो बेहोश हो गईं आदि आदि। आपका अगला कंसर्ट अगले महीने वहाँ की गौरमेंट की डिमांड पर क्रोएशिया में हैं। शुरू में चाहे पैसे देने पड़ें या पार्टी का खर्चा खुद उठाना पड़े आप हर पार्टी में दिखने चाहिए। फोटोग्राफर से पहले से बात कर के रखें ऐसा लगे कि पैपराजी आपको बहुत तंग करते हैं। आपका चलना-फिरना दूभर किया हुआ है जगह-जगह पीछा करते पहुँच जाते हैं। जब एयरपोर्ट पर जाना हो ज़रूरी नहीं कि आप अंदर जाएँ बाहर ही अपना फ़ोटो शूट करा लें। बताएं आपका जापान, साउथ अफ्रीका का टूर बहुत सक्सेस गया। एक बात का विशेष ख्याल रखना है कोई आपकी सेक्सुअल ओरिंट्यिशेन जानने ना पाये, जिस आत्मीयता से करन जौहर से मिलना है उसी तरह सिने तारिकाओं से मिलना है। इसे एक रहस्य ही रखना है। आप तो जानते ही हैं बंद मुट्ठी लाख की।

 

         ये सब तो हो गया अब मेरे दुविधा ये है कि अगर भगवान ने जैसा कि आजकल चलन है मेरा ‘प्लान बी’ पूछ लिया तो ? मैंने सोचा है यदि भगवान ने प्लान बी पूछा तो कह दूंगा फिर मुझे शशि थरूर बना दो। वो किस्सा फिर कभी।

 

                            मेरी अरदास पूरी होगी ज़रूर

                            इट्ज सिंपल ओरी ऑर थरूर

Monday, November 4, 2024

व्यंग्य : काटेंगे तो बांटेंगे

 


 

          आजकल एक नारा बहुत ज़ोर-शोर से चल रेला है। बटेंगे तो कटेंगे। इस नारे के अलग-अलग हल्कों में अलग-अलग अर्थ निकाले जा रहे हैं। अब वो नारा ही क्या जिसके मतलब अलग-अलग हों। इसमें खतरा है। लीडर ने जिस आशय को लेकर नारे का आविष्कार किया है वह नारा उसी काम आना चाहिए। अब पाजामे का नारा बोलो, नाड़ा बोलो, पाजामा थामने के काम आता है अब कोई उससे कोई और काम लेने लग पड़े या फिर फांसी लगामे  की कोशिश  करने लगे तो ये तो नारे का मिसयूज ही कहलाएगा। उसी तरह बटेंगे तो कटेंगे के साथ वही हुआ। वो कहते हैं न जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखि तैसी

 

मुझे सच बताऊँ तो यह टैग लाइन बहुत भाई है -काटेंगे तो बांटेंगे। भाई साब ! आप बर्थडे का केक लाये, जब तक वह कटेगा नहीं तो बंटेगा कैसे ? आप चिकन लाये या फिर किसी समारोह में आपने बकरा-दावत की सोची तो वो जब तक कटेगा नहीं तो पकेगा कैसे ?  जब पकेगा नहीं तो बंटेगा कैसे। अतः बांटने के वास्ते काटना ज़रूरी है। जेबकट जब तक आपकी जेब नहीं काटेगा, डकैत जब तक दीवाल नहीं काटेगा, किवाड़ नहीं काटेगा, चोर जब तक तिजोरी नहीं काटेगा तो अपने गिरोह में बांटेगा कैसे। अतः यह बात गांठ बांध लें कि बांटने के लिए काटना निहायत ज़रूरी है।

 

        हलवाई भी अपनी थाल भरी मिठाई में से बर्फी काटता है। तब न बांटता है किसी को एक किलो, किसी को दो किलो, किसी को आधा किलो। मिठाई पर चांदी का बर्क भी काटने के बाद ही लग पाता है। रास्ते कटते हैं, कभी हम काटते हैं कभी कोई हमारा काटता है जब काटते हैं तब न आप अपनी मंज़िल तक पहुँच पाते हैं। ज़िंदगी में कभी कोई रास्ता सीधा कहीं नहीं जाता है रास्ते कटते-कटाते हैं तब आप कहीं पहुँच पाते हैं। काटता है तब न आप तक इसके लाभ पहुँच पाते हैं चाहे चुनाव का टिकट हो, चेक हो या यात्रा की टिकट।

 

नेता लोग हिन्दू-मुसलमान करते हैं तब न इलैक्शन जीत पाते हैं। यानि वो भी  पहले काटते हैं फिर सत्ता की मलाई अपने परिवार में बांटते हैं उनसे बच जाये  तो पार्टी के और निर्वाचन क्षेत्र के कुछ चुने हुए लोगों में परसाद बंटता है। जहां हिन्दू-मुसलमान में नहीं काट पाते वहाँ वे नॉर्थ-साउथ करते है या फिर ठाकुर-बनिया करते है या फिर दलित-महादलित करते हैं। उसी आधार पर टिकट वितरण किया जाता है।  यूं कहने को वे सदैव कहते हैं कि वे इस भेदभावकारी, विभाजनकारी पॉलिटिक्स के सख्त खिलाफ हैं। यही सत्ता के ताले की चाभी है। सो हुज़ूर कटेगा तभी न बंटेगा ना कि बंटेगा तब कटेगा।

 

Saturday, November 2, 2024

व्यंग्य: चिनाय सेठ जिनके घर शीशे के

 


 

     

 

   “चिनाय सेठ जिनके घर शीशे के होते हैं वो दूसरे के घरों पर पत्थर नहीं फेंका करते”

 

      उपरोक्त की सप्रसंग व्याख्या करें ? विस्तार से बताएं इससे हमें क्या शिक्षा मिलती है ?

 

       उपरोक्त संवाद अभिनेता राजकुमार द्वारा खलनायक रहमान को वक़्त नामक चलचित्र में कहे गए हैं। खलनायक राजकुमार को ब्लैकमेल करने की चेष्टा करते हुए धमकी दे रहा है जो राजकुमार को बहुत नागवार गुजरती है वह तभी के तभी ऑन-दि-स्पॉट इस बात का उपरोक्त पंक्तियों से उत्तर दे देता है।

 

           इससे हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें कभी भी ब्लैकमेलर का साथ नहीं देना चाहिए तथा पहली बार में ही उसे पूरी दृढ़ता के साथ दो टूक उत्तर दे देना चाहिए ताकि उसकी दोबारा ऐसा करने की हिम्मत ही न पड़े और दोबारा ऐसा करने से पहले वह सौ बार सोचे। इससे समाज में समरसता रहेगी और लोग एक दूसरे को ब्लैकमेल नहीं करेंगे। न ऐसा करने का डर दिखाएंगे। जैसे आजकल फोटो वाइरल करने की धमकी दी जाती है और ए.टी.एम. का पिन आदि ले लिया जाता है अथवा डिजिटल अरेस्ट करा जाता है। हमें ऐसा नहीं करना चाहिए और राजकुमार की भांति तभी के तभी कढ़े स्वर में इसका प्रतिकार कर देना चाहिए। 

 

          दूसरे यदि रहमान की दृष्टि से देखा जाये तो यह जरूरी है कि अपने कर्मचारी की कोई न कोई नस दबा कर रखनी चाहिए ताकि यदि वो ओवर-स्मार्ट बने तो उसे राह पर लाया जा सके। क्यों कि रहमान जो भी टास्क राजकुमार को दे रहे थे वे उसका पूरा 'कमपेंशेशन' ही नहीं बल्कि प्रॉफ़िट-शेयरिंग भी कर रहे थे इसके बावजूद राजकुमार मना कर देता है। इस तरह बॉस द्वारा दिये गए काम को मना करना सीधा-सीधा ‘इनसबऑर्डीनेशन’ में आता है और कोई भी ऑफिस इसे स्वीकार नहीं कर सकता। यदि सब ऐसे मना करेंगे तो कोई भी ‘एन्टरप्राइज़’ कैसे चलेगा। स्टेंड-अप इंडिया, स्टेंड अप होने और ‘स्टार्ट-अप इंडिया’ होने से पहले ही सिट डाउन इंडिया हो जाएगा। जो किसी भी समाज की प्रगति के लिए घातक सिद्ध होगा।

 

           इस संवाद से हमें जहां राजकुमार के चरित्र की एक झलक मिलती है वहीं रहमान की अपने गोल के प्रति प्रतिबद्धता देखने को मिलती है। टीम लीडर की हैसियत से यह उसकी ड्यूटी है, वह अपने ऑर्गनाइज़ेशन को ऊंचाइयों पर ले जाना चाहता है उसके लिए जरूरी है कि वह टास्क को पूरी-पूरी गंभीरता से ले और अपने ऑर्गनाइज़ेशन के सभी सदस्यों से भी यही अपेक्षा करता है। इसमें बुरा क्या है, सभी को अपना काम पूरी ईमानदारी और निष्ठा से करना चाहिए ताकि जल्द से जल्द इनका यह उपक्रम ‘नवरत्न’ और 'महारत्न' की श्रेणी में आ जाये।

 

            राजकुमार जैसे लोग सभी दफ्तरों में मिल जाते हैं जो निहायत ही मूडी और कामचोर किस्म के होते हैं और ऐसे मौके के इंतज़ार में रहते हैं ताकि वे अपने लिए एक बेहतर पैकेज ‘निगोशिएट’ कर सकें। हमें ऐसी प्रवृति पर रोक लगानी चाहिए। एक तरफ रहमान है जिसके सामने एक महान कार्य है – महारानी के नेकलेस को हासिल करना। अब इसके लिए जो भी टीम है उसमें से ‘दी बेस्ट’ को चुनना है जो कि काम को सरंजाम दे सके। इसमें ‘इफ एंड बट’ नहीं चलेगा। ऐसे काम को सहर्ष स्वीकार करने के बाजाय राजकुमार ‘ज्ञान’ देना शुरू कर देता है और कहता है कि अब उसने ये काम छोड़ दिये हैं जो कि एक निहायत ही ग़ैर- जिम्मेवारना एप्रोच है। ऐसे लोगों को ऑफिस में रखना ऑफिस के वातवरण के लिए ठीक नहीं है, इसका कुप्रभाव दूसरे कर्मचारियों के आउट पुट पर भी पड़ता है जो ऑफिस की डे-टुडे  वर्किंग के लिए कतई सूटेबल नहीं है।