Ravi ki duniya

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Sunday, November 17, 2024

व्यंग्य: वन्दे भारत गन्दे चावल

                                                 



          

                    यात्रियों ने शिकायत की है कि वन्दे भारत ट्रेन में गन्दे चावल मिले। बाकी भोजन के बारे में भी उनका कहना है कि खाना बासी था। मुझे लगता है हो न हो ये कोई साजिश है। देसी नहीं तो विदेशी भी हो सकती है।  यू नो फौरन हेंड। भई चावल तो मिट्टी से ही उपजाया जाता है। आपने देखा नहीं कैसे नंगे पैर आदमी-औरतें बेचारी पानी में घंटों-घंटों खड़े हो आपके लिए धान रोपती हैं। एक आप हैं, बस एक यात्रा में गन्दे चावल क्या मिल गए, बावेला मचा दिया। भई चावल मिट्टी में पैदा होते हैं। हम सब मिट्टी हैं और अंततः मिट्टी में मिल जाना है। ये गन्दे चावल हैं, खाना बासी है ये सब शिकायतें क्यूँ ? किससे ? जिससे कह रहे हो वह भी माटी का पुतला ही है।

 

      आप लोग बाहर खाते हैं, यदि आप मिठाई, घी, तेल बनते हुए देख लें तो न खाने का प्रण कर लेंगे। लेकिन ऐसे दुनियाँ नहीं चला करती। अतः जो रूखा-सूखा मिल रहा है प्रभु का नाम लेकर ग्रहण करें। एक बार मुझे बहुत खराब खाना मिला। जब मैंने शिकायत पुस्तिका मांगी तो वह बोला आपने पहले क्यों नहीं बताया आप रेलवे अधिकारी हैं, आपके लिए मैं ताज़ा बना देता। देखिये कोई इस धंधे में चार पैसे कमाने आया है। उसकी कोई ‘माई एम्बीशन इन लाइफ’ नहीं थी कि आपको वन्दे भारत में या भारत में कहीं भी खाना खिलाये। अब आपको ट्रेन में छप्पन भोग तो मिलने से रहे। ‘अब तक छप्पन’ फिल्म हो सकती है। छप्पन इंच का सीना हो सकता है। परंतु छप्पन भोग तो आपको महाराजा ट्रेन, बोले तो पैलेस ऑन व्हील में भी ना मिल सकेंगे। तो जो मिल नहीं सकता उसकी चाह क्यूँ ?

 

     रेलवे आपको यात्रा कराती है। उसकी मुख्य यानि ‘कोर कंपीटेंसी’ वही है ना कि आपको स्वादिष्ट-सुपाच्य भोजन कराना। आप हैं कि आपको मीन-मेख निकालने की आदत सी पड़ गई है। देश किन हालात से गुजर रहा है ! खबर भी है ? कितने लोगों को दो जून की रोटी नसीब नहीं और एक आप हैं आपके नखरे ही नही दूर होते। कभी ऐ.सी. का रोना कि कम ठंडा कर रहा है कभी ज्यादा ठंडा कर रहा है, कभी काम ही नहीं कर रहा। कभी कानखजूरे की शिकायत, कभी कॉकरोच की तो कभी चूहे की शिकायत। अपने घर में जब ये सब निकलता है तो किससे शिकायत करने जाते हो ? जितना करो कम है। आपको एनवायरमेंट फ्रेंडली होना चाहिए। चूहे-कॉकरोच आदि काल से मनुष्य के साथी रहे है। अब इनके प्रति ये अर्बन-नक्सल सी होस्टिलिटी क्यूँ ?

 

     रेलवे को ये सारी सुविधाएं देते हुए समय पर चलाना कोई खेल नहीं है। चादर साफ चाहिए, तकिया गुदगुदा चाहिए और तो और कम्बल भी ड्राईक्लीन चाहिए।  भई वाह ! आपने तो ट्रेन खरीद ही ली है जैसे। पानी भी शुद्ध चाहिए। टॉइलेट सेनीटाइज्ड चाहिए। ट्रेन समय पर पहुंचनी भी चाहिए। चाय ताज़ी और गरम चाहिए। टंकी में रखी हुई नहीं चलेगी। रेडीमेड दो तो पानी अलग और दूध अलग चाहिए। मीठी हो तो फीकी चाहिए। फीकी दो तो चीनी अलग से चाहिए।

 

     क्या इतना सब पने घर पर भी करते हो या ये सब ‘टेंट्रम्स’ रेलवे के लिए बचा कर रखते हो। भाई ! हमसे हाथ जुड़वा लो आगे से अपना बिस्तर-बंद बोले तो पहले की तरह होल्डाल, सुराही और कटोरदान लेकर चला करें, आपने सुना नहीं जीयो और जीने दो। आप केसर की खुशबू वाले इंपोर्टेड चावल खाएं। ना आपने हमसे कुछ लेना ना हमने आपको कुछ देना। आप भी खुश हम भी खुश। वन्दे मातरम !!

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