खबर है कि एक सूबे में 27000 पुराने स्कूल बंद करके 876 शराब की नई दुकानें खोलने के आदेश हुए हैं। इसका कुछ नासमझ लोग विरोध कर रहे हैं। दरअसल वो इश्क़-ए-हक़ीक़ी के उस मुकाम पर नहीं पहुंचे हैं। अभी तक किताबों में उलझे हुए हैं। उन्होने वो दोहा सुना ही नहीं है ‘पोथी पढि पढि जग मुआ पंडित भया न कोय ढाई आखर प्रेम का पढे सो पंडित होय’ सुना है तो गुना नहीं। एक बार आपकी लौ उस ऊपर वाले से लग जाये तो क्या किताब क्या मकतब। शराब पी कर इसलिए लोग ‘हाई’ कहलाते हैं। वर्णमाला में भी पहले श (शराब) आता है स (स्कूल) बाद में। अब देखिये पुराने स्कूल हैं उसकी जगह नए चमचमाते शराब के शो रूम खुलेंगे। जहां क्या नेशनल क्या इन्टरनेशनल सभी ब्रांड मिलेंगे/बिकेंगे। हाथ के हाथ रेवेन्यू में दिन दूनी रात चौगुनी वृद्धि होगी। जबकि पुराने स्कूल में सिर्फ खर्चा खर्चा और खर्चा ही है।
सबसे बड़ी बात है कि सूबे की सरकार का कहना है उन्होने केवल वे स्कूल बंद किए हैं जहां 50 से कम बच्चे थे और रेगुलर स्कूल आते भी न थे। अब देखिये शराब की दुकान में 500 से लेकर 5000 तक गाहक दर रोज़ रेगुलर आएंगे। रोज़ रोज़ नए नए गाहक अलग बनेंगे। सरकारी स्कूलों की जो हालत है वो किसी से छुपी नहीं है। मेरे स्कूल में तो मास्टर जी का घर भी स्कूल में ही था। वह रेजीडेंस-कम-स्कूल था। छुट्टी होने के बाद चौथी क्लास उनका बेडरूम और पाँचवी क्लास उनका ड्राइंग रूम बन जाता था। प्राइवेट स्कूलों ने रेजीडेंशियल स्कूल का आइडिया यहीं से लिया होगा। सरकारी स्कूल में कभी बच्चे हैं तो मास्साब नहीं और मास्साब हैं तो बच्चे नहीं। इन स्कूलों में टॉइलेट और पीने योग्य पानी के भी वान्दे हैं। स्कूल में मास्साब ने अपना काम कराना है। बच्चे दो रोटी कमाने में माँ-बाप का हाथ बंटाए या स्कूल आयें और फिर बच्चे इतना पढ़ गए हैं कि अब उन्हें वापिस लाइन पर लाना मुश्किल हो रहा है। पेरेंट्स से पूछ कर देखिये। अकबर इलाहाबादी साब को ये इल्म हो गया था :
हम उन किताबों को काबिले जब्ती समझते हैं
जिन्हें पढ़ कर बच्चे बाप को खब्ती समझते हैं
अगर पुराने की बात करें तो शराब स्कूल से कहीं अधिक प्राचीन है। जब लोग स्कूल जानते न थे तब शराब थी। स्कूल/कॉलेज/यूनिवर्सिटी खुल गईं शराब तब भी थी। जब मैं न था शराब थी। जब मैं न रहूँगा तब भी शराब होगी। शराब शाश्वत है। यह थी, है और सदैव रहेगी यह अमर है। स्कूल खुलेंगे, बंद होंगे। स्कूल ऑन-लाइन किए जा सकते हैं और किए भी गए (कोरोना काल) सोचिए इससे कितनी बचत है न बिल्डिंग, न बिजली-पानी का खर्चा। आप फेसबुक/यू ट्यूब देखते हैं इसी तरह की और बुक चला दी जाएंगी। अगले चरण में कॉलेज और यूनिवर्सिटी भी बंद करने को मांगता है।
चीयर्स !!
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