Ravi ki duniya

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Monday, November 18, 2024

व्यंग्य: कोचिंग वाले सिलेक्शन नौकरी की गारंटी नहीं दे सकते

 

                           


 

       ऑथिरिटीज़ ने फैसला लिया है कि ये आजकल कोचिंग सेंटर को हुआ क्या है जिसे देखो वो ही सलेक्शन की गारंटी दे रहा है। सभी कह रहे हैं कि हमारे यहाँ से कोचिंग लो पक्की नौकरी पक्की। अब ये कोचिंग सेंटर ही सलेक्शन की गारंटी देने लग जाएँगे तो नेता लोग किसको क्या वादा करेंगे। और तो और एक बार नौकरी लग ही गई तो उनकी सभा में आयेगा कौन?  कौन अपनी नौकरी से छुट्टी लेकर किसी का फिजूल का भाषण सुनने जाता है ? सयाने नेता अपनी सभा दफ्तरों के आसपास लंच के दौरान रखते हैं।

 

     अब कुकुरमुत्ते की तरह कोचिंग सेंटर शहर-शहर खुल गए हैं। कितने ही इलाकों की पहचान तो कोचिंग सेंटर से ही होती है जैसे ओल्ड राजेन्द्र नगर अथवा मुखर्जी नगर। अब तो विषय-विषय की कोचिंग के स्पेशल सेंटर खुल गए हैं। बेचारे उम्मीदवार एक सेंटर से दूसरे सेंटर भागते फिरते हैं। फीस की तो आप पूछो ही नहीं। आपके खेत-मकान बिक जाएँ  इतनी फीस है। दूसरे सेंटर के आसपास पी.जी. में रहने का खर्चा अलग। माँ-बाप से अलग रहने का दुख अलग। कितनी एक्जायटी में जीवन जीते हैं। रात-दिन पढ़ाई करते-करते कितने लोग अर्ध विक्षिप्त जैसे हो जाते हैं कुछ तो समय रहते अपने घर-गाँव लौट लेते हैं कुछ विक्षिप्त होने के बाद ले जाये जाते हैं।

 

    कोटा शहर की कहानी सबको पता है। कोई महीना  ऐसा जाता है जब कोई न कोई बच्चा आत्महत्या जैसा जघन्य कदम नहीं उठाता है। जब इसका विश्लेषण किया तो यही निकला कि या तो मां-बाप की ज़िद की वजह से या फिर पीयर प्रेशर में वे आ तो जाते हैं फिर कोचिंग सेंटर अपना रिजल्ट बेहतर से बहतर करने की होड़ में बच्चों को जोत देते है और इतना प्रेशर देते हैं कि वे जीवन से हार मान लेते हैं। ये कैसा कैरियर है जिसमें जान की बाज़ी लगा कर सीट ली जाती है।

                                   

                                      तिस पर अब ये नया फरमान कि कोचिंग सेंटर सफलता की गारंटी नहीं दे सकेंगे। तब भला कौन वहाँ झाँकेंगे। उन्हें कितने झूठे-सच्चे वादे करने पड़ते हैं। उम्मीदवारों को कितने सब्ज़बाग दिखाने पड़ते हैं। पूरे-पूरे पेज के विज्ञापन देने पड़ते हैं। आंकड़े देने पड़ते हैं। सब यही कहते सुने जाते हैं कि हमारे सेंटर के सौ लोग सलेक्ट हो गए या दो सौ लोग सलेक्ट हो गए। पहले बीस में अठारह हमारे सेंटर के हैं आदि आदि। अब सरकार अगर इस बात की मना कर देगी कि आप सलेक्शन की या नौकरी लगाने की गारंटी नहीं दे सकते तो आपके पास फटकेगा कौन। दरअसल सरकार चाहती है कि ये काम नेताओं के लिए छोड़ दिया जाये। नेता लोग ही गारंटी दें। वो नौकरी क्या स्वर्ग ज़मीन पर उतार लाने की गारंटी दे सकते हैं। आप स्वर्गवीर कहला सकते हैं यदि उन्हें वोट दें। पहले डाकिया नियुक्ति पत्र लाता था। लोग खुश हो उन्हें मिठाई खिलाते थे और इनाम-इकराम भी देते थे। फिर दफ़्तरों ने ये काम डायरेक्ट अपने हाथ में ले लिया और किसी न किसी नेता  के ‘कर-कमलों’ से नियुक्ति पत्र दिये जाने लगे। दोनों का ध्यान फोटो खिंचाने पर ज्यादा रहता है नेता का भी और नियुक्ति पत्र पाने वाले का भी। जहां-जहां नेता जी नहीं पहुँच पाते वहाँ उनका कट-आउट पहुंचा दिया जाता है, पत्र देने के पोज में। डाकिया आउट हो गया। चिट्ठी-पत्री वैसे ही कोई किसी को नहीं लिखता। ये नियुक्ति पत्र देने से भी गए। अब वे किस मुंह से होली-दीवाली ईनाम लेने जाएँ। सारे जजमान एक झटके में ही झटका कर दिये।

 

          नेता लोग ज्यादा खुश न हों। कोचिंग सेंटर ने कुछ न कुछ नया निकाल लेना है आप इसे 'इम्पॉसिबल' कर देंगे तो उन्होने इसे 'आई एम पॉसिबल' कर लेना है। इसके बजाय आप सीट बढ़ाएँ,  नौकरी में सीटें बढ़ाएँ, तब कोचिंग की ज़रूरत ही नहीं रह जाएगी और हाँ पेपर लीक-पेपर लीक  गेम नहीं खेलना है प्लीज़।

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