पुलिस ने अपनी मुस्तैदी से एक नहीं बल्कि दो ऐसी फेक्टरी पकड़ीं हैं जहां पशुओं की नकली दवाएं बन रही थीं। दरअसल ये नकली वाले भी सतत अपनी आर एंड डी चलाते रहते हैं, अभी नया क्या नकली बनाना है। अब किस सेक्टर में उतरना है। इसी श्रंखला में उन्हें लगा कि पशुओं के लिए नकली दवाएं बनाई जाएँ। आजकल अपने बच्चे घर छोड़ कर इधर-उधर पढ़ाई को या नौकरी को जाने लगे हैं। पेरेंट्स को जो पेरेंटिंग की आदत पड़ी हुई है उसको बरकरार रखने को और उनका मन बहलाने को घर - घर पैट रखने का रिवाज चल गया है। अतः नकली दवा बनाने वालों को इसमें बहुत संभावनाएं नज़र आयीं। एक बहुत बड़ा मार्किट उनका इंतज़ार कर रहा है।
एक तो ये नव ‘पापा’ लोग अपने इस प्यारे क्यूट बच्चे के लिए कितनी भी महंगी दवा खरीदने को तैयार रहते हैं। कुछ भी हुआ तो भागे - भागे वैट के पास पहुँच जाते हैं। “डॉ साब देखो ना ! इसने कल से खाना नहीं खाया है”। “ये बहुत सैड-सैड फील कर रहा है”, “ये आजकल डिप्रेसन में चल रहा है”। डॉ अपनी खुशी के लिए क्या चाहे ? एक सैड पापा (या मम्मी) दूसरे एक अदद सैड पैट। वो कुछ और अँग्रेजी के लफ्ज बोलता है। मंहगे-मंहगे ब्लड टैस्ट , एक्स रे, अल्ट्रा साउंड लिखता जाता है और मूड स्विंग पर अपना ज्ञान देता जाता है। कुछ ‘फैटी लीवर’ 'वीक हार्ट' जैसी बातें बोल कर आपको गोली देता है और पैट के लिए गोली लिखता है।
नकली मेनुफ़ेक्चरर को इसमें असीम संभावना दिखना लाजिमी था। एक तो पैट ने किसी को शिकायत करनी नहीं। अब किसी इंसान को कैसे तो पता चलना है कि दवा नकली है। वह लैब में टेस्ट कराने से रहा। फायदा हो न हो नकली वाले भाई साब को तो फायदा ही फायदा है। जो लागत है वो बस चमकीले पैकिंग की है। बाकी तो आप कुछ भी दे दो अब क्या पता, उसमें पैडीग्री है, चाक का पाउडर है, कुछ मीठा हो जाये टाइप कोई मीठी चीज़ डाल दो। आप भी खुश, पैट भी खुश। अब हारी-बीमारी का क्या कहना ? मैंने देखा है वो खाना छोड़ जब घास खाना शुरू कर दे तो समझ लो वो अपना इलाज़ खुद कर रहा है। इसके लिए वो सक्षम है। पर ‘पापा’ को तो चिंता लगी है अतः सीन पर वैट और अपने नकली दवा वाले भाई साब आते हैं। यहाँ इंसान की दवा-दारू दोनों में भरपूर मिलावट हो रही है। उसे देखने वाला कोई नहीं आप ठीक हो गए तो भगवान का शुक्र है और भगवान को प्यारे हो गए तो भगवान की मर्ज़ी। आखिर भगवान की मर्ज़ी के बिना तो पत्ता भी नहीं हिल सकता। सबका मालिक एक। जिस भगवान ने आपको बीमारी या शफ़ा दी है उसी ने तो नकली वाले को फैक्ट्री दी है। इन दिनों भगवान के ऊपर भी बहुत 'वर्कलोड' डाल दिया है हमने।
आप ही बताइये क्या देश में यही दो फैक्ट्री थीं या और भी हो सकती हैं ? आई मीन हर शहर में कमसेकम दो। कितनी सारी हो गईं ! उनका क्या ? उनका देखनहार बोले तो पालनहार कौन ? क्या वे पकड़े जाएंगे ? छूट के आकर क्या वो असली दवा बनाना शुरू कर देंगे ? या फिर जिस विषय में विशेषज्ञता है उसी में फिर लग जाएँगे ?
वो छापे मारे जा रहे हैं हम दवा बनाए जा रहे हैं
अपना - अपना फर्ज़ है दोनों अदा किए जा रहे हैं
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