Ravi ki duniya

Ravi ki duniya

Saturday, November 2, 2024

व्यंग्य: चिनाय सेठ जिनके घर शीशे के

 


 

     

 

   “चिनाय सेठ जिनके घर शीशे के होते हैं वो दूसरे के घरों पर पत्थर नहीं फेंका करते”

 

      उपरोक्त की सप्रसंग व्याख्या करें ? विस्तार से बताएं इससे हमें क्या शिक्षा मिलती है ?

 

       उपरोक्त संवाद अभिनेता राजकुमार द्वारा खलनायक रहमान को वक़्त नामक चलचित्र में कहे गए हैं। खलनायक राजकुमार को ब्लैकमेल करने की चेष्टा करते हुए धमकी दे रहा है जो राजकुमार को बहुत नागवार गुजरती है वह तभी के तभी ऑन-दि-स्पॉट इस बात का उपरोक्त पंक्तियों से उत्तर दे देता है।

 

           इससे हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें कभी भी ब्लैकमेलर का साथ नहीं देना चाहिए तथा पहली बार में ही उसे पूरी दृढ़ता के साथ दो टूक उत्तर दे देना चाहिए ताकि उसकी दोबारा ऐसा करने की हिम्मत ही न पड़े और दोबारा ऐसा करने से पहले वह सौ बार सोचे। इससे समाज में समरसता रहेगी और लोग एक दूसरे को ब्लैकमेल नहीं करेंगे। न ऐसा करने का डर दिखाएंगे। जैसे आजकल फोटो वाइरल करने की धमकी दी जाती है और ए.टी.एम. का पिन आदि ले लिया जाता है अथवा डिजिटल अरेस्ट करा जाता है। हमें ऐसा नहीं करना चाहिए और राजकुमार की भांति तभी के तभी कढ़े स्वर में इसका प्रतिकार कर देना चाहिए। 

 

          दूसरे यदि रहमान की दृष्टि से देखा जाये तो यह जरूरी है कि अपने कर्मचारी की कोई न कोई नस दबा कर रखनी चाहिए ताकि यदि वो ओवर-स्मार्ट बने तो उसे राह पर लाया जा सके। क्यों कि रहमान जो भी टास्क राजकुमार को दे रहे थे वे उसका पूरा 'कमपेंशेशन' ही नहीं बल्कि प्रॉफ़िट-शेयरिंग भी कर रहे थे इसके बावजूद राजकुमार मना कर देता है। इस तरह बॉस द्वारा दिये गए काम को मना करना सीधा-सीधा ‘इनसबऑर्डीनेशन’ में आता है और कोई भी ऑफिस इसे स्वीकार नहीं कर सकता। यदि सब ऐसे मना करेंगे तो कोई भी ‘एन्टरप्राइज़’ कैसे चलेगा। स्टेंड-अप इंडिया, स्टेंड अप होने और ‘स्टार्ट-अप इंडिया’ होने से पहले ही सिट डाउन इंडिया हो जाएगा। जो किसी भी समाज की प्रगति के लिए घातक सिद्ध होगा।

 

           इस संवाद से हमें जहां राजकुमार के चरित्र की एक झलक मिलती है वहीं रहमान की अपने गोल के प्रति प्रतिबद्धता देखने को मिलती है। टीम लीडर की हैसियत से यह उसकी ड्यूटी है, वह अपने ऑर्गनाइज़ेशन को ऊंचाइयों पर ले जाना चाहता है उसके लिए जरूरी है कि वह टास्क को पूरी-पूरी गंभीरता से ले और अपने ऑर्गनाइज़ेशन के सभी सदस्यों से भी यही अपेक्षा करता है। इसमें बुरा क्या है, सभी को अपना काम पूरी ईमानदारी और निष्ठा से करना चाहिए ताकि जल्द से जल्द इनका यह उपक्रम ‘नवरत्न’ और 'महारत्न' की श्रेणी में आ जाये।

 

            राजकुमार जैसे लोग सभी दफ्तरों में मिल जाते हैं जो निहायत ही मूडी और कामचोर किस्म के होते हैं और ऐसे मौके के इंतज़ार में रहते हैं ताकि वे अपने लिए एक बेहतर पैकेज ‘निगोशिएट’ कर सकें। हमें ऐसी प्रवृति पर रोक लगानी चाहिए। एक तरफ रहमान है जिसके सामने एक महान कार्य है – महारानी के नेकलेस को हासिल करना। अब इसके लिए जो भी टीम है उसमें से ‘दी बेस्ट’ को चुनना है जो कि काम को सरंजाम दे सके। इसमें ‘इफ एंड बट’ नहीं चलेगा। ऐसे काम को सहर्ष स्वीकार करने के बाजाय राजकुमार ‘ज्ञान’ देना शुरू कर देता है और कहता है कि अब उसने ये काम छोड़ दिये हैं जो कि एक निहायत ही ग़ैर- जिम्मेवारना एप्रोच है। ऐसे लोगों को ऑफिस में रखना ऑफिस के वातवरण के लिए ठीक नहीं है, इसका कुप्रभाव दूसरे कर्मचारियों के आउट पुट पर भी पड़ता है जो ऑफिस की डे-टुडे  वर्किंग के लिए कतई सूटेबल नहीं है। 

No comments:

Post a Comment