ऐसा कहा जाता है कि नेता का माल कोई नहीं खा सकता। नेता तो खुद दुनियाँ का
सामान, सड़क हो या पुल खा जाता है। भला उसके समोसे कौन खा सकता है ? लेकिन पुलिस ने प्रूव
कर दिया कि नेता अपनी जगह, पुलिस अपनी जगह और समोसे खुदबखुद अपनी जगह पहुँच जाते हैं। सुन कर आश्चर्य हुआ
कि ऐसा कैसे हो सकता है ? पुलिस की इतनी मज़ाल ? फिर सोचा पुलिस नहीं तो शहर में और किसकी मज़ाल हो सकती है। पुलिस सदैव आपके
साथ, आपके लिए। समोसे हैं
सदा के लिए।
खबर ये है कि तीन डिब्बे केक पेस्ट्री
और समोसे फाइव स्टार होटल से मंगाए गए। वो को-ऑर्डिनेशन में कमी की वजह से पुलिस
वालों को डिलीवर हो गए। पुलिस वालों ने सोचा वो कितने बड़े और गरीबपरवर नेता जी की
सेवा में हैं। अतः हो न हो ये केक पेस्ट्री और समोसे उन्हें सप्रेम भेजे गए हैं।
उन्होने ये तमाम सामग्री सप्रेम निपटा दीं। केस क्लोज़।
जांच की तो पता चला कि ये केक-समोसे गलत
एड्रेस पर पहुँच गए। जब जांच चल रही थी तब तक किसी ने उड़ा दिया कि यह
‘सरकार-विरोधी’ काम है और सख्त से सख्त सज़ा का हकदार है। शुकर है किसी ने यह नहीं कह दिया कि ये देशद्रोह है।
बोले तो एंटी-नेशनल काम है। क्योंकि वारदात शहरी क्षेत्र में हुई है अतः यह
फुल-फुल ‘अर्बन-नक्सल’ गतिविधि है और उसके लिए सख्त कानून है।
समोसे और केक-पेस्ट्री फाइव स्टार होटल
से आए थे अतः अफरातफरी मचना लाजिमी था। फाइव स्टार होटल को अपनी चिंता लग गई कहीं
हमें ही बलि का बकरा न बना दें। उन्हें बड़ा संतोष हुआ ये जानकार कि पहला, ये उनकी गलती नहीं थी
दूसरे, आखिर समोसे खाये तो नेता जी की सेवा में लगे पुलिसकर्मियों ने ही हैं तो डर
काहे का ? गलती नेताजी के दफ्तर के अमले की थी उन्हें ये इल्म ही नहीं था कि ये माल
पहुंचाना कहाँ है ? सो पुलिस को सौंप कर दस्तबरदार हुए। अब आगे पुलिस जाने, वैसे सोचा जाये तो
उन्होने 'गुड-फेथ' में ये ही सोचा हो कि बड़े-बड़े लोग तभी खाते हैं जब पहले पुलिस खा कर हरी झंडी
न दे दे। अब पुलिस को क्या पता कि ये सामान सिर्फ टेस्ट करके पास भर करना था ना कि
टेस्ट-टेस्ट में ‘कस्टडी’ में ही बिना कोई प्रूफ छोड़े सफाया कर देना था।
नेता जी का सामान कोई इस तरह बाला
ही बाला पार कर दे यह तो मुमकिन नहीं। इसे सहन नहीं किया जा सकता और इसकी पूरी
जांच बहुत ज़रूरी है। फौरन एक इंकवारी ऑर्डर कर दी गई। इंकवारी भी ऐसी-वैसी नहीं
बल्कि सी.आई.डी. इंकवारी आखिर नेताजी की सिक्यूरिटी का सवाल है। कोई उनके खाने का सामान ‘इधर-उधर’ कर सकता है
तो ‘उधर-इधर’ भी कर सकता है जिससे खाने में कुछ भी मिलाया जा सकता है। यह हरी चटनी
और लाल चटनी से इतर बात हो रही है। यह वो युग नहीं है जब शबरी के जूठे बेर श्रीराम
ने प्रेम से खाये थे। इंकवारी में सी.आई.डी. ने पूछ-पूछ कर पुलिस से सारे समोसे निकलवा लिए। उसके बाद रिपोर्ट बनाई
कि इसमें पुलिस का कोई हाथ नहीं (छुरी-कांटे से खाये थे) यह सब भानगड़ को-ऑर्डिनेशन
की कमी की वजह से हुआ। जो मानुष होटल गया उसे यह पता ही नहीं था (सिक्यूरिटी रीज़न
से) कि ये डिब्बे किस के लिए हैं और किसे देने हैं। उन्होने पुलिस को देकर छुट्टी
पायी। पुलिस अलग खुश कि बिना मांगे, बिना कोई सख्ती किए सब सामान खुद उन तक पहुँच गया।
जब तक सूरज-चाँद रहेगा
केक-समोसे तेरा नाम रहेगा
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