कैसा कलियुग आ गया है। इंसान को कैसे
भी, कहीं भी चैन नहीं।
कुँवारा रहे तो दुनियाँ जीने नहीं देती। “शादी कब कर रहे हो ?” पूछ-पूछ कर आपको त्रस्त कर देती है। आप इस सबसे बचने के लिए शादी कर लिए, सोचा शांति मिलेगी।
मगर ये क्या ? आपकी ज़िंदगी में तो तूफान ही आ गया। अब आप पढ़े-लिखे हैं, आपने पढ़ा है कि
कंपीटीशन से सेवा सुधरती है। अतः आपने इसका पालन किया और दूसरी शादी भी कर डाली।
दूसरी को पता चल गया था कि आप कहें कुछ भी, आपका असली मक़सद क्या
है। उसने आपकी नीयत में खोट भाँप लिया।
इधर आपके अंदर का जेम्स बॉन्ड बाहर आने को कुलांचे मारने लगा। आपने सोचा यार जहां
दो हैं वहाँ तीन सही। हो सकता है आप कोई रिकॉर्ड बनाने निकले हों। या आप ‘आप पार्टी’
के फैन हों सो ‘ऑड और ईवन’ के चक्कर में आ गए हों। बहरहाल आपने दो पर फुलस्टॉप
नहीं लगाया बल्कि कौमा लगाया।
बीवियों के पास एक छठी इंद्री होती है।
बोले तो गट-फीलिंग तो वाइफ नंबर टू को पता चल गया कि कुछ तो खिचड़ी पक रेली है।
आपके रंग-ढंग ने ज़रूर उसके शक को पुख्ता किया होगा। आदमी अपना इश्क़ छुपा नहीं
पाता। बिलकुल उसी तरह जैसे युवती अपना इश्क़ जता नहीं पाती। आपने ‘महल’ फिल्म का आनंद बख्शी साब का गीत नहीं सुना “मैं तो ये प्यार छुपा लूँगी...तुम कैसे दिल को
संभालोगे...दिल क्या तुम तो दीवारों पर मेरी तस्वीर लगा लोगे”
और लो जी लो एक दिन उसने आपको पूरे
मनोयोग से तैयार होते देख लिया। वो समझ गई
दाल में कुछ काला है। जिस दिन का था इंतज़ार वो दिन आ गया है। दिन आ गया है
कि पतिदेव का पानी उतार दिया जाये बोले तो दूध का दूध पानी का पानी। उसने हिम्मत
नहीं हारी। पीछा किया। पति महोदय दूसरे निकटवर्ती शहर जाकर खातिरजमा हो गए कि वे
अपनी दूसरी बीवी के चुंबकीय क्षेत्र से दूर बहुत दूर आ गए हैं। तीसरी बीवी के सपने
जिसे दिखा रहे थे, दूसरी पत्नी ने उन्हे वहीं उसके साथ जा दबोचा। और जो उनकी छीछालेथन की। भाई
साब की सिट्टीपिट्टी गुम हो गई। वो उसे देख कर हक्के-बक्के रह गए। जैसे कोई
दु:स्वप्न देख रहे हों या फिर स्वप्न से जग गए हों। बच्चू सारी सरपंचई भूल गए।
सरपंच महोदय के पास सभी कुछ तो था एक ठौ कार भी थी। फण्ड्स भी रहे होंगे। रौब-दाब
होगा ही। फुल-फुल स्वैग रहा होगा। पर अब सरपंच के सर पर ही आन पड़ी। सरपंच तीसरी
बार सेहरा पहनने को सर तैयार ही करते रह गए। उधर तीसरी के ख्वाब लेने वाले का
दूसरी ने चौथा ही कर डाला। वो भी दिन दहाड़े सड़क पर सबके सामने। बेचारे भागते ही
बने।
इससे हमें क्या शिक्षा मिलती है ? इससे हमें शिक्षा
मिलती है कि सरपंच की बीवी कभी न बनना।
सरपंच में जो पंच है उसका अर्थ वो पाँच निकाल सकता है। सरपंच का सर कब फिर जाये, कौन जाने ? दूसरे जब आप उसकी
दूसरी बीवी बन रही हैं तो इस बात की क्या गारंटी है कि उसका सर तीसरी के लिए फिर
ना फिर जाएगा। आपके सामने बॉलीवुड के तमाम उदाहरण मौजूद हैं। अतः रूखी सूखी खाय
के ठंडा पानी पीव, देख दूसरी-तीसरी मत ललचाये जीव।
मत भूलो कि एक है तो नेक है। एक है तो
सेफ है।
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