मुझे पता नहीं था संभव है आपको पता हो कि रेलवे ने शून्य मृत्यु की पॉलिसी अपनाई हुई है। इसके अंतर्गत यह तय पाया गया है कि बहुत हो चुका अब रेलवे में कोई भी मृत्यु नहीं होगी। सरकार की अन्य पॉलिसी की तरह इस मद में भी फंड चाहिए होते हैं। बिना पैसे तो आदमी वैसे कहीं भी मर सकता है अब अगर शून्य मृत्यु का टार्गेट पाना है तो एक अच्छा खासा फंड दरकार होता है। जब फंड मिल गए तो जगह-जगह लिखवा दिया गया ‘यहाँ मरना मना है’। ‘कृपया यहाँ न मरें’। ‘यह सरकारी संपति है मर कर संपति को हानि नहीं पहुंचाएं’। यदि कोई इस परिसर में मरता हुआ पाया गया तो रेलवे अधिनियम के तहत सख्त कार्यवाही की जाएगी।
जब रिव्यू किया गया तो देखने में आया कि सारे फंड तो ये नोटिस बोर्ड लगाने में ही खर्च हो गए और मृत्यु है कि रुकने का नाम ही नहीं ली रही। लोग धड़ाधड़ मर रहे हैं। कोई प्लेटफॉर्म पर, कोई चलती ट्रेन में, कोई ट्रेन से गिर कर कोई ट्रेन से पिच कर और कोई ट्रेन से कट कर। बाद बाकी ट्रेन के टकराने से दुर्घटना में। कोई टिकटॉक बनाने के चक्कर में रेल से टकरा जाते हैं। कितने तो पटरी के सहारे चलते या पार करते हुए कान में ईयरफ़ोन लगा कर गाने सुनते हुए ही मारे जा रहे हैं।
पिछले बरस 2590 लोगों की मृत्यु हुई। इसमें आधी मृत्यु तो सिर्फ रेलवे ट्रेक पार करते हुए, ट्रेक पर चलते हुए ट्रेन से गिरने से हुई हैं। बाकी आधी मृत्यु रेलवे दुर्घटनाओं में मृत्यु को प्राप्त हुए है। मुझे जानकार हैरानी हुई कि अकेले मुंबई में लगभग 600 करोड़ इसी मद में फंड आबंटित किए गए थे। ये स्टेशन परिसर और ट्रेन में ‘यहाँ मरना मना है’ लिखने-लिखने में बहुत खर्चा हो गया। और तो और स्टेशन परिसर में या ट्रेन में मृत्यु होने पर शव को उठाने तक के लिए समुचित इंतज़ाम नहीं। घंटों शव स्टेशन पर ही पड़ा रहता है। रात-बिरात वाली मृत्यु को तो रफा-दफा किया जा सकता है मगर स्टेशन पर सब के सामने कटने वाले या गिर कर मरने वाले को कैसे शून्य करें ? यह बहुत बड़ा सवाल है।
ये माना हम सब एक बड़े शून्य से आए है और मृत्यु के बाद एक विराट शून्य में समा जाने वाले हैं इसीलिए हमारा टार्गेट शून्य मृत्यु का है। मेरे पास एक जुगाड़ है जिससे स्टेशन और ट्रेन में शून्य मृत्यु का टार्गेट प्राप्त किया जा सकता है। बस आपको यह कहना है “हमें नहीं पता कौन मरा ?” “कब मरा ?” “हमारे यहाँ नहीं मरा !” आपको याद है न पुलिस अक्सर दो थानों के जुरिस्डिक्शन का सवाल ले आती है और केस को विवादास्पद बना देती है। अतः आप भी यह कर सकते हैं। पता नहीं कौन है ? ना इसके पास से टिकट मिला है। अतः स्पष्ट है कि मृत्यु या मर्डर कहीं और हुआ है और शरारती तत्वों ने मृतक को स्टेशन पर ला पटका है अथवा ट्रेक पर रख दिया है। यह और कुछ नहीं बस रेलवे को बदनाम करने का बचकाना प्रयास भर है। आप सच की तह में जाकर रहेंगे। आपने इंकवारी ऑर्डर कर दी है। (तब तक लोगो ने भूल जाना है) रेल दुर्घटना में तो एवरग्रीन फॉर्मूला है ‘विदेशी हाथ’, ‘तोड़फोड़’, ‘एंटी-नेशनल’ और ‘अर्बन-नक्सल’ का काम है। आप दोषियों को छोड़ेंगे नहीं। आपने इंकवारी ऑर्डर कर दी है। इस बीच आप मोबाइल से फोटो आदि लेने वालों को सख्ती से सज़ा देना शुरू कर दें। ये लोग रील बना कर/ फोटो खींच कर अनायास ही रेलवे की बदनामी करते फिरते हैं। बाई चांस कोई फोटो या रील प्रकाश में आ भी जाए तो आप साफ कह दें यह फोटोशॉप की कारस्तानी है अथवा ए.आई. से बनाई हुई है। असली नहीं। तब तक उसे ज़ब्त कर लें और कह दें कि जांच के लिए लेब में भेजी है।
उपरोक्त से आप शून्य नहीं तो लगभग शून्य मृत्यु के टार्गेट को पा लेंगे। किसे अभागे की मृत्यु इसके बाद भी स्टेशन परिसर में हो जाये अथवा ट्रेन परिचालन के चलते हो जाये तो आप उसे फौरन नेचुरल डेथ बता दें। अब मृत्यु पर किसका बस। होनी को कौन रोक सका है, पर है ये सरासर नेचुरल मृत्यु। इसका प्रमाण पत्र आप पहले ही रेलवे के ठेके पर रखे डॉक्टर से ले लें हो सके तो उसके साइन किए हुए ब्लेंक प्रमाण पत्र पहले ही स्टेशन मास्टर के पास रखवा दें। बस स्टेशन मास्टर को ब्योरा भरना हो। देखो कितना सिंपल है सब। इंशाअल्लाह ! आपका ज़ीरो डेथ का टार्गेट आसानी से पूरा हो जाएगा। आप चाहें तो इसे रेलवे प्लेटफॉर्म और चलती ट्रेन में होने वाली ‘डिलिवरी’ के आंकडों से कंपेयर करें तब आप यह भी प्रमाणित कर सकते हैं कि जन्म-दर, मृत्यु-दर से कहीं अधिक है। बोले तो ज़ीरो होते होते डेथ रेट अब माइनस में चल रहा है। आप सुने तो होगे ही झूठ तीन प्रकार का होता है झूठ, सफ़ेद झूठ और स्टेटिस्टिक।
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