खबर गरम है कि मुग़लों को पाठ्यक्रम से हटा दिया गया है और इस तरह हमने पानीपत की 1526 ई. की पहली लड़ाई का बदला ले लिया है भले 500 साल लगे। हमारी चक्की धीरे पीसती है मगर महीन पीसती है। तो अब जब मुग़ल नहीं रहे। सुल्तान नहीं रहे। क्या गौरी, क्या क़ुतुबद्दीन, क्या खिलजी, क्या तुग़लक सब एक ही झटके में हलाल कर दिये गये हैं। तब उनकी ज़ुबां उर्दू कैसे सलामत रहती। अत: उर्दू के शायर फ़िराक़ साब कैसे महफूज रहते। 'अर्बन नक्सल' किस्म के लोग भले कहते फिरें कि उर्दू हिंदुस्तान की ज़ुबां है या कि फ़िराक़ बस फ़िराक़ भर नहीं रघुपति सहाय फ़िराक़ गोरखपुरी हैं। यूं इससे तो ये और भी साबित होता है कि हम हिंदू-मुसलमां में फर्क नहीं करते। अपनी पावन उर्वरा भूमि से एक झटके में हमने आक्रमणकारियों को बाहर कर दिया। अब हमें पुन: सोने की चिड़िया बनने से कोई नहीं रोक सकता। ये लोग 'ऑउट ऑफ सिलेबस' 'ऑउट ऑफ माइंड' ही नहीं हुए कहना चाहिये हिस्ट्री भी नहीं हुए। बल्कि 'ऑउट ऑफ हिस्ट्री' हो गये। इसे कहते हैं 'मास्टर स्ट्रोक'
बस एक ही भानगड़ है अब ताजमहल, लालक़िला, क़ुतुबमीनार को किसने बनाया बताएंगे। हम कहेंगे हमारे मज़दूर भाईयों ने बनाया। मुग़ल आदि आये उनसे पहले ही ये यहां थे। ऐसे अवशेष मिलते हैं। यूनेस्को वगैरा से कहलवा देंगे। जन गण मन को विश्व का सर्वश्रेष्ठ राष्ट्रगान घोषित करने के बाद बस ये एक छोटी सी घोषणा और कर दें हमारे फेवर में
लगे हाथों आनन-फानन में इनका नामकरण भी कर दीजिये। यथा ताजमहल तेजोमय भुवन, क़ुतुबमीनार विष्णु स्तंभ, लालक़िला इन्द्रप्रस्थ दुर्ग, इसी लाइन पर मक़बरे भी पुनर्नामकिंत किये जा सकते हैं। 1707 ई. में औरंगजेब की मृत्यु से मुग़ल काल का अंत माना जाता है मगर असल अंत तो अब हो रहा है। इसी प्रकार दो पाँच सौ साल बाद हमने अरुणाचल के अपने वो ग्यारह गाँव भी ले लेने हैं तुम देखते रहना
चलिये अब बात करते हैं फ़िराक़ साब की। मुझे लगता है फ़िराक़ साब अपने तखल्लुस (उपनाम) से गच्चा खा गये। शायद नेताजी को किसी जानकार ने बताया नहीं कि वे महज़ फ़िराक़ नहीं बलकम रघुपति सहाय हैं। गोया कि फ़िराक़ साब की इमदाद को रघुपति भी नहीं आये। फ़िराक़ साब को भी संस्कृत नहीं तो हिन्दी में रचनाएं, श्लोक, दोहे, चौपाई लिखनी चाहिये थी। भूल गये ! आपकी कर्मभूमि प्रयागराज रही है। आपको 'पुष्प-गीत' की रचना करनी चाहिये थी। पर नहीं। आपने लिक्खा ग़ुल-ए-नग्मा। ये ज्ञानपीठ वालों को भी पकड़ा जाये। क्यों भाई ये ग़ुल ए नग्मा की तुमने एंट्री ही क्यों ली ? उन्हें भी कहां पता था कालातंर में बुलडोजर का आविष्कार होगा।
खैर ! देर आयद दुरुस्त आयद। सिलेबस से सभी अवांछित तत्वों को हटाकर हम भारत को समूचा सम्मान, स्वाभिमान, स्वराज, दिलाएंगे और स्वावलंबी बनाएंगे। 'कोई शक़ ?' ओह आई मीन 'कोई संदेह ?'
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