Ravi ki duniya

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Friday, April 14, 2023

व्यंग्य : नया सिलेबस ज़िंदाबाद


मुझे बेहद खुशी हुई जब पता चला कि इब्ने सफी साब के जासूसी, गुलशन नंदा जी के सामाजिक/रोमांटिक और वर्दीवाला गुंडा आदि स्कूल-काॅलेज में पढ़ाये जायेंगे। काश: ये हमारे दौर में होता तो इनको पढ़ते हुए रंगे हाथों पकड़े जाने पर हमें थर्ड डिग्री यातनाओं से नहीं गुजरना पड़ता। खुलेआम पढ़ते और कहीं-कहीं तो इसके ट्यूशन/कोचिंग सेंटर भी खुल जाते। अपने वक़्त में तो हमें ये और इसी तरह की तमाम किताबें, कोर्स की किताब में छुपा कर पढ़नी पड़ती थीं। उसमें भी हमेशा खटका लगा रहता था अब पकड़े गये-अब पकड़े गये। अब सब कितना खुला हो रहा है। खुला खेल फर्रुखाबादी

सोचने वाली बात है कि ये साइन थीटा, कौस थीटा, ट्रिगनोमैट्री, कैमिस्ट्री, फिजिक्स, स्कयार रूट, रेल की रफ्तार बताओ, एक मकान इतने मजदूर इतने दिन में बनाते हैं तो...आदि आदि जब से स्कूल/काॅलेज छोड़ा ये भी वहीं छूट गये और दुबारा कभी जीवन में इनकी ज़रूरत नहीं पड़ी। बोले तो कभी काम नहीं आये। जबकि वर्दीवाला गुंडा आज भी हम सबके दैनिक जीवन में पैठ लगाये है। उसी तरह झील के उस पार, कटी पतंग, सभी तो खूब ही रिलेवेंट हैं।

साइबर क्राइम/डेटिंग एप के ज़माने में कुछ सम्मानित सांभ्रांत लेखकगण किताबों में आने से रह गये। सिलेबस में भले नहीं आ पाये मगर पढ़े जाते हैं और खूब पढ़े जाते हैं बल्कि कोर्स की किताबों से कहीं अधिक सुलभ और सस्ते हैं और कालज़यी हैं। बस अब प्रतीक्षा है कि काला जादू, सिर कटा भूत, चीखती लाशें, खज़ाने का रहस्य, देवर-भाभी विनोद, किस्सा तोता मैना, जीजा-साली चुटकुले आदि और आ जायें तो सिलेबस सही मायने में संपूर्ण समावेशी हो जायेगा। सोचो विद्यार्थी कितना मन लगा कर पढ़ेंगे।

देखिये डर, रोमांस, जासूसी-सजगता, जीवन का अहम हिस्सा है। यह 21वीं सदी है। अब शेक्सपियर, प्रेमच॔द, टाॅलस्टाॅय, चार्ल्स डिकन्स नहीं चल पाएंगे। उतनी पेशेंस किसके पास है? आज के पेगासस और जामताड़ा के युग में एक नागरिक वर्दी वाला गुंडा, कैप्टन हमीद और जेम्स बांड बनना चाहेगा। उसे बनना पड़ेगा, तो अच्छा है न स्कूल-काॅलेज से ही वह तैयार हो कर निकलें। भई अगर वो नित नये नये ढ॔ग से आपको ठगने के उपाय /युक्ति निकाल रहे हैं, सीख रहे हैं तो यह आवश्यक है कि आप भी डाल-डाल, पात-पात पर शाना-ब-शाना रहें। क्या ओ. टी.पी. क्या ऑन-लाइन फ्राॅड, सब में भीषण आर. एंड डी. चल रहा है। अत: हमें फुल्ली इक्विप रहना है खासकर हमारी नई पीढ़ी को

अत: इस नये पाठ्यक्रम का दिल से स्वागत है। जब नागरिक कर्नल विनोद की तरह सजग होंगे तो स्थानीय पुलिस, सी. बी. आई. जिन पर राष्ट्र निर्माण के अत्यंत महत्ती कार्य हैं उन्हें देखे या तुम्हारा रोना सुने। अत: ये नया सिलेबस हमें आत्म निर्भर बनाएगा। वही हमारी सरकार का सपना भी है।

नोट: इस पाठ्यक्रम पर आधारित प्रश्नपत्र भी कम रोचक न होंगे मसलन-

1. कटी पतंग, और झील के उस पार कथानक का तुलनात्मक अध्ययन।
2. उन्नतिशील सामाजिक दायित्व निभाने में गुलशन नंदा जी के उपन्यासों का योगदान
3. क़त्ल के केस सुलझाने में कैप्टन हमीद की माॅडस ऑपरेंडाई कर्नल विनोद की शैली से कितनी भिन्न है।
4. वर्तमान लाफ्टर चैलेंज और काॅमेडी शो के युग में कासिम का हास्य बोध कितना प्रासंगिक है
5. समाज को वर्दीवाले गुंडे की जरूरत आज सार्वाधिक है। अपने विचार रखें।
6. गुंडों की एक निर्धारित वर्दी होनी चाहिए ताकि कपड़ों से उनकी पहचान आसानी से हो सके आपके क्या विचार हैं सकारण लिखें।
7. एक आदर्श जासूस की सफलता में हैट, सिगार, ओवरकोट और ग्लव्ज की भूमिका
8. गुलशन नंदा जी के लेखन में नारी सशक्तिकरण और स्त्री विमर्श

मशहूर शायर तहज़ीब हाफ़ी का वो शेर इसी मौजू के लिए लिखा लगता है:

तुम्हें हुस्न पर दस्तरस है
मुहब्बत मुहब्बत बड़ा जानते हो
तो फिर ये बताओ कि तुम उसकी आँखों के बारे में क्या जानते हो
ये जुगराफिया,फलसफा, साइंस,सायकाॅलाॅजी रियाजें वगैरा
ये सब जानना भी अहम है मगर
उसके घर का पता जानते हो

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