Ravi ki duniya

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Friday, March 1, 2024

व्यंग्य: नंबर गेम

 


             मुझे पता नहीं अंक गणित बोले तो ये गिनती का आविष्कार किसने किया? परंतु नंबरों का ऐसा खेल पहले कभी नहीं देखा था। आप सोचें ये नंबर, ये गिनती, ये अंक हमारे जीवन में कितने गहरे पैठ कर गए हैं। न्यूमरोलोजिस्ट का तो सारा का सारा कारोबार ही अंकों के इर्द गिर्द घूमता है। अंक कितना कुछ बता जाते हैं। मिसाल के तौर पर आप कहें अमुक आदमी 420 है तो और कुछ बताने की ज़रूरत नहीं है। और जो ये कहा जाये कि फलां आदमी 840 है तब तो कहना सुनना कुछ नहीं, बस पतली गली से कट लीजिये। 3-13 करना, 36 का आंकड़ा होना। तेरे जैसे 56 घूमते हैं। 1 नंबर का इंसान होना या 1 नंबर की वस्तु/ब्रांड होना। 2 नंबर का आदमी होना। 1 नंबर का बदमाश होना। 2 नंबर का धंधा करना। 56 भोग, 16 सिंगार करना, 64 कला में निपुण होना। 9-2-11 होना आदि आदि।  

 

       वर्तमान में इसके अलग अर्थ हो गए हैं। जैसे 400 पार करना। जैसे मंत्री महोदय का कहना कि फलां सूबे में हम 80 सीटें जीतेंगे। दूसरी तरफ देखेंगे वहाँ अलग अंक गणित चल रहा है। उनका कहना है कि वे 100 के नीचे समेट देंगे। कभी कहते हैं 200 के नीचे ले आएंगे। फिर कहने लगते हैं 272 के लाले पड़ जाएँगे।

 

         भाई साहब! अगर दोनों पक्ष सूबे की 80 की 80 सीटें जीत रहे हैं तो ज़ाहिर है एक पार्टी झूठा दावा कर रही है। बस अपने कारकुनों का मुराल हाई कर रहे हैं। उसी तरह समझ नहीं आ रहा कि 400 पार कैसे होगा। मगर कहना ये है कि 400 कह दिया तो 400 जीतेंगे। 401 हो सकता है 399 नहीं होगा। नहीं होगा बस !

 

           अब ज्यादा 3-5 नहीं करने का। पल में तोला पल में माशा बोले तो पल में हीरो पल में 0

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