कैप्टेन
डॉ अंशुमान सिंह की दुखद मृत्यु के बाद पता चलता है कि कैप्टेन के पिता दुखी है कारण कि उनकी बहू (कैप्टेन की पत्नी) ने
सभी ड्यूज लिए हैं और उनका कहना है कि न केवल उन्हें कुछ नहीं मिला बल्कि समारोह और कीर्ति चक्र से भी उन्हें अलग रखा गया। प्रसंगवश
कीर्ति चक्र के साथ साथ 9,000/- मासिक
राशि भी होती है। 5 महीने से विवाहित पत्नी
का कहना है कि वे चाहते थे कि वह अपने देवर से विवाह कर ले ताकि सभी रुपया-पैसा घर
के घर में रहे ।
मुझे एक 35 साल पहले का केस
याद हो आया। रेलवे में इस प्रकार ड्यूटी पर मृत्यु होने पर सभी फंड्स आदि के
अतिरिक्त नौकारी का भी प्रावधान है। यह नौकरी सामान्यतः कर्मचारी की विधवा अथवा
आश्रित बच्चों को दी जाती है पर अपवादस्वरूप
यह (नौकरी) देवर को भी दी जा सकती है। पर इसके
लिए विधवा की लिखित सहमति आवश्यक है। आखिर सभी का उद्देश्य एक ही है कि परिवार
पुनर्स्थापित हो सके, उनका जीवन पुनः पटरी पर आ सके। विधवा
के पुनः शादी कर लेने पर नौकरी वापिस नहीं ले ली जाती क्यों कि उद्देश्य पुनर्वास
ही है। परिवार की परिभाषा में पति-पत्नी और संतान ही आती है। पेरेंट्स नहीं। हाँ रेल
कर्मी की विधवा माँ भी परिवार का हिस्सा मानी जाती है। नोट करें विधवा माँ। अर्थात
जब तक पिता जीवित है माँ पिता की आश्रित है न कि रेल कर्मी संतान की।
एक दुर्घटना में एक रेल कर्मी की
मौत के कुछ दिनों के बाद मृतक का पिता ऑफिस में आया और उसने बताया कि यह नौकरी
देवर को दी जाये कारण कि उनकी खानदान में महिलाएं नौकरी नहीं करतीं हैं। और इसके
लिए आवश्यक सहमति वह मृतक की पत्नी से लाकर दे देगा। मुझे उसके हाव-भाव से कुछ शक
हुआ। तिस पर वह एडवोकेट का कोट पहने आया था और बातों का उस्ताद मालूम दे रहा था। मैंने अपने एक
होशियार इंस्पेक्टर को इसकी तहक़ीक़ात को लगाया। वो चार दिन में ही विधवा का आवेदन
पत्र ले कर आया जिसमें लिखा था कि वह चाहती है कि ये नौकरी उसे मिले न कि उसके
देवर को।
पता ये चला (जैसा विधवा ने
बताया) मैं तो शोक में दुखी बैठी थी। मेरे ससुर साब आए बोले फंड्स आदि के पैसे के
लिए और ऑफिस की जरूरी औपचारिकताए पूरी करने, प्रार्थना पत्र जमा करने हैं और यह कह कर उन्होने 4-5 सफ़ेद कागज आर मुझ
से साइन ले लिए थे। मुझे तो यह भी नहीं पता कि कोई नौकरी भी मिलती है और यदि नौकरी
मिलती है तो मैं खुद लेना चाहूंगी। मैं
हाई स्कूल पास हूँ। और इस तरह से नौकरी मृतक की पत्नी को दी गई। इस केस में देवर
पहले से ही शादीशुदा था, जो नहीं बताया गया था अर्थात बहू के
पुनर्वास का भी कोई मतलब/संभावना नहीं थी।
कैप्टेन के केस में यह डुअल
जियोपार्डी है। एक तो इमोशनल दूसरी वित्तीय। कोई पैसा आदि तो ना ही मिला बहू भी
क्यों कि 5 महीने पुरानी ही शादी थी अतः कोई इमोशनल बॉन्ड बन या डवलप नहीं होने
पाया था। तिस पर लव-मैरिज थी। पेरेंट्स कीर्ति चक्र सेरेमनी में आते तो उन्हें
गर्व होता खुशी होती। पर 5 महीने का विवाहित जीवन कैसा तो भी रहा होगा जो इतनी
सारी कटुता इतने कम समय में दोनों पार्टीज़ में भर गई थी। सो न तो पैसा ही मिला, न सम्मान और बेटे से भी गए।
नियम यही है शादी से पहले सभी विरासत
पेरेंट्स की और शादी के बाद पत्नी की। अब यह दोनों पत्नी और सास-ससुर के बीच की
सामाजिक समस्या है ।
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