अब वक़्त आ गया है कि तुरंत अखिल
भारतीय जुगाड़ एजेंसी (शाॅर्ट में आ जा) का गठन किया जाये। यह अखिल भारतीय लेवल का
संगठन होगा। जहां पूरे देश में कहीं पेपर हो, लीक कराने की जिम्मेवारी रहेगी। हर छोटी-बड़ी परीक्षा वह चाहे शिक्षा से
संबन्धित हो या रोजगार से। एजेंसी की सफलता का पैमाना यही रहेगा कि वर्ष भर में
कुल कितनी परीक्षाएँ घोषित हुईं और उनमें से कितनी परीक्षाओं के पेपर लीक कराए गए।
यह अपनी स्थापना के प्रथम वर्ष से ही नवरत्न कंपनी बन जाएगी। एजेंसी को यहीं नहीं
रुकना है बल्कि देश का नाम पूरे विश्व मे रोशन हो हम इस मामले में विश्व गुरु बनें
उसके लिए ज़रूरी है कि यह एजेंसी ग्लोबल बने। संसार मे जहां परीक्षा वहाँ 'आ जा'। हमारी टैग
लाइन होगी "जहां परीक्षा वहां आ जा"।
बाॅलीवुड ने हमारी फुल पब्लिसिटी करनी है। हर दूसरे गीत में हमारा जिक्र
है। 'आजा...आजा मैॅ हूं प्यार तेरा' हो या 'आजा अब तो आजा' से लेकर 'आजा रे अब मेरा दिल पुकारे' तक। पूरे जोश से यह उपक्रम चलेगा। मुनाफा ही मुनाफा बरसेगा। शेयर के भाव आकाश
छुएंगे।
देखिये अब टेकनॉलॉजी इतनी एडवांस हो चली है
कि ये चिट, ये फर्रे अब काम नहीं आते।
अब तो आप पूरी की पूरी किताब रख लें तो भी 720 में से 720 नहीं ला पाएंगे। भारत की
पावन भूमि पर अब तक साल में इक्का-दुक्का
केस ही ऐसे आते थे जिसमें बच्चे 720 में से 720 अंक पाये। देखिये आप ‘परीक्षा-योद्धा’ हैं बोले तो
‘एक़्जाम-वॉरियर’। अब योद्धा का तो काम, बल्कि धर्म है, वह लड़े, दांव-पेंच इस्तेमाल करे। आपका गोल क्या है ? परीक्षा हॉल है ! परीक्षा हॉल आपका कुरुक्षेत्र है। परीक्षा
में पास होना है, महज़ पास ही
नहीं होना है बल्कि पुरानी हिन्दी फिल्मों के हीरो की तरह पूरे ज़िले में, सूबे में अव्वल आना है।
‘एव्रीथिंग इज फेयर इन लव एंड वार’। अतः सभी तरह की युक्ति और तिकड़म लगानी
होती है। आप अगर अभी से हार जाओगे तो आगे अच्छे और कामयाब डॉक्टर, प्रशासक कैसे बनोगे। बे-फालतू के टेस्ट कैसे कराओगे ? फी फाइल फी कैसे लोगे। इस एजेंसी को एकदम ‘ग्रास रूट’ से
काम करना है। मसलन ‘स्लीपर्स’ देश के सभी
भर्ती बोर्ड और पब्लिक सर्विस में घुसाने हैं। पोस्ट मायने नहीं रखती। अपना एक
बंदा वहाँ होना चाहिए, जो अंदर की
खबर दे सके। पेपर कौन सेट कर रहा है ? जो सेट कर रहा है वो कहाँ रहता है ? उसकी लाइक - डिसलाइक क्या हैं ? उसकी स्ट्रेंथ क्या हैं ? वीकनेस क्या
हैं ? बीवी बच्चों
के क्या शौक हैं ? ये सब डाटा
अपनी डाटा-बेंक मे हार्ड डिस्क मे सुरक्षित रखना है।
शहर में आबादी से दूर कुछ होटल में
परमानेंट बुकिंग रखनी है। पेपर कहीं भी बन रहा हो आपकी ये मौलिक ड्यूटी है कि उसको
लीक कराया जाये। ‘लीक-मेव जयते’। यूं देखा जाये तो ये काम ऐसा मुश्किल भी नहीं।
क्या बाबू, क्या बड़े अफसर सभी तैयार
बैठे हैं लीक करने को। अगर दाम सही मिल जाये। वो ए.एम.सी. के माफिक ए.एल.सी. को भी तैयार हैं बोले तो एनुअल लीक
कॉन्ट्रेक्ट। उसके बाद नौकरी से वी.आर.एस. ही ले लेंगे। ये जा वो जा। किसी दूसरे देश मे जा रहेंगे। ये
देश यूं भी अब शरीफों के रहने लायक नहीं रह गया है। कोई चैन से, ईमानदारी से दो रोटी नहीं कमा खा सकता। एनट्रेप्युनरशिप की
तो क़दर ही नहीं है।
प्रेस में अपनी पहुँच होनी चाहिए
बिलकुल खोजी पत्रकार के माफिक, पूरा डाटा
अपने पास दर्ज़ रहने को मांगता। उस को समय-समय पर अपडेट भी करना है। कोशिश अपना ही
एक प्रेस खोलने की हो। सभी भर्ती बोर्ड्स
को कहें आप फ्री में ही छाप देंगे। इसके
लिये मिलने वाले फंड्स को वे आपस में बांट लें। वांदा नहीं। उम्मीदवारों के मोबाइल
नंबर निकलवा लें। दफ्तर में एजेंसी वाले एम.टी.एस. या संविदा लिपिक इसके लिए तैयार
हो जाएँगे। कम दर पर काम हो जाएगा।
अब कस्टमर, बोले तो उम्मीदवार से कम्युनिकेशन आसान हो जाएगा। पैसों को
लेकर मच-मच नहीं करनी है। ई.एम.आई. बेंक
लोन जैसी सुविधाएं भी ‘हेंडी’ रखें। एस.सी./एस.टी./ओ.बी.सी. आदि के लिए फीस में
कन्सेशन देना है। अपुन को बिलकुल गौरमिंट की तरह काम करना है। गौरमिंट नहीं तो
समझो कॉर्पोरेट की तरह तो होना ही है।
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