Ravi ki duniya

Ravi ki duniya

Thursday, July 25, 2024

व्यंग्य: बिकास ही बिकास

 पॉलिटिकल पार्टीज़ खासकर विपक्ष को ये आदत सी लग गई है कि गाहे-बगाहे चिल्लपों मचाते रहो। बात-बात में बल्कि यूं कहिए हर बात में शोर मचाना है। अब कहते फिर रहे हैं कि सरकार ने बजट में सारे के सारे पैसे आंध्र प्रदेश और बिहार पर लुटा दिये हैं। बाकी राज्य मुंह ताकते रह गए। सारे प्रोजेक्ट इन्हीं दो राज्यों को दिये जा रहे हैं। सारी सुविधा, सारी सड़क सारे पुल इन्हीं दो राज्यों को दिये जा रहे हैं वो बात दीगर है कि बिहार में पुल धड़ाधड़ एक के बाद एक गिर रहे हैं। यह भी एक कारण हो सकता है इस बार इतने पैसे दे दो कि सबके कमीशन काट कर इतने तो बचे रहें कि एक ठीक-ठाक सा पुल बन जाये, जो दो-चार बरस तो चले। ये क्या कि अभी उदघाटन भी नहीं हुआ और पुल चल बसे। असल में जो टेंडर पुल-पुश से लिया जाये वो पुल जरा से पुश से चल बसे तो किम आश्चर्यम ?

 

               देखिये ये संसार नश्वर है। क्या मैं, क्या तुम, हम सब नाशवान हैं। जीवन क्षण भंगुर है। उस हिसाब से तो पुल महीनों चल गए। अब उनका इतना ही जीवन था। प्रभु की लीला। अब आप ही बताओ ऐसे में पुल की क्या बिसात है। नश्वर मनुष्य द्वारा बनाई गई वस्तु अमर कैसे हो सकती है वह भी तो नश्वर होनी है । अतः ये पुल, ये सड़क, ये परीक्षा के प्रश्न पत्र, ये परीक्षाओं के रिजल्ट, सब नश्वर है। नाशवान है।

              

 

               अब आइये देखते हैं कि आंध्रप्रदेश और बिहार को जो सुविधा दी गई हैं या प्रोजेक्ट गए हैं उनका उपभोग भी तो सभी आम भारतीय ही करेंगे। बिहार वाले या आंध्र वाले क्या इन प्रोजेक्ट को अपने साथ ले जाएँगे। ये दौलत ये संपत्ति सब यहीं रह जानी है। फर्ज़ करो आप मुंबई वाले कभी आंध्र प्रदेश जाएँ या भगवान न करे आपको बिहार जाना पड़े ( इसलिए कि बिहार तो बिहार वाले खुद जा कर राज़ी नहीं, वो सभी अपनी अपनी पोस्टिंग मुंबई दिल्ली में चाहते हैं न कि नालंदा, पटना में) तो वहाँ की सब सुविधाओं का लाभ आप पर-प्रांतीय ही तो उठायङ्गे। अतः यह बहुत ही नावाजिब और नामाकूल धारणा है कि केवल दो राज्यों को सब सुविधाएं दे दी गई हैं। अरे बवालो ! हाथी के पाँव में सबका पाँव। इतनी सी बात नहीं समझते। केंद्र मजबूत बना रहे, अगली बार आपके राज्य, आपके शहर, आपके गाँव की बारी भी आ जाएगी। सिर सलामत रहे टोपी हज़ार। अब अपने मुंह अपनी तारीफ क्या करें मगर.... हें...हें...हें अब तक तो आप जान ही गए होगे कि गले का पट्टा (गमछा) हो या टोपी दोनों को पहनाने में हमारा कोई सानी नहीं।

 

              बिकास ही बिकास एक बार मिल तो लें । 


                  

No comments:

Post a Comment