Ravi ki duniya

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Thursday, May 1, 2025

व्यंग्य: जैसी करनी-वैसी भरनी

     

 

     बचपन में हम जब सालाना प्रदर्शनी (नुमाइश) देखने जाते थे या फिर किसी मेले में जाते थे तो एक टेंट में 'जैसी करनी वैसी भरनी' के बैनर/पोस्टर लगे होते थे। इन बैनर/पोस्टर्स में किसी को सींग वाले डरावने दैत्याकार लोग खौलते कढ़ाह में चमचे से हिला रहे हैं। किसी को आग पर भूना जा रहा है। किसी को कोई दैत्यनुमा आदमी कुल्हाड़ी से  काट रहा है या आरे से चीर रहा है। पता चला ये लोगों को बताने को था  आप सदाचार से रहें, कोई चोरी-चकारी, कोई अपराध नहीं करें, कोई पाप न करें नहीं तो ऊपर जाकर आपके लिये नरक में इसी किस्म की यातनाएं आरक्षित हैं। यह कुछ इसी तरह का था जैसे बचपन में हमें हमारे बुजुर्ग कहते थे  झूठ मत बोला करो नहीं तो कान पक जाएँगे। या फिर झूठ बोले कौवा काटे।

 

     हम लोग जानते हैं कि ऐसा कुछ भी नहीं है। ना तो झूठ बोलने से कौवा काटता है ना ही कान पकते हैं और तो और ये कढ़ाही वाली बात भी मुझे  झूठ ही लगती है, मगर वो तो मरने के बाद नरक जाने पर ही पता चले। इसका 'सोबरिंग' प्रभाव ये पड़ता था कि लोग बाग एक बार को तो सोचेंगे "यार ! कहीं कढ़ाही में डालने वाले तैयार न बैठे हों और बैठे बैठे सब हिसाब लगा रखा हो

 

 

नेता जी ने कहा है कि ये जो आतंकवादी हैं ना इनको इनकी कल्पना से भी ज्यादा बड़ी सज़ा मिलेगी। इनकी रूह काँप जाएगी वगैरा वगैरा। धीरे-धीरे वक़्त बीतता गया। नेता जी ने सोचा लोग भूल जाएँगे। पब्लिक मेमोरी कमजोर होती है। उसकी उम्र सिर्फ दूसरी घटना तक की होती है। मेरे एक मित्र थे उनको ये ताज्जुब होता था कि मुझको इतने जोक्स कैसे याद रहते हैं। उनका कहना था कि उनकी मेमोरी जोक्स के मामले में केवल एक जोक तक सीमित है। जैसी ही कोई नया जोक सुनते हैं, पुराना भूल जाते हैं।

 

 

कुछ यही हाल पब्लिक मेमोरी का है। जब बहुत दिनों तक कोई घटना नहीं हुई तो पब्लिक मेमोरी में पिछली वाली घटना रह-रह कर कौंधने लगी। इस को चैनलवाले, यू ट्यूब वाले और विपक्ष ले उड़ा और बार-बार यही सवाल दिन-रात करने लगा। आजकल पुरानी क्लिप चला-चला कर अलग पागल किये रहते हैं। इसी से नेता जी को ख्याल आ गया! क्या बोलते हैं आइडिया आया। उन्होने तुरंत से पहले प्रैस काॅन्फरेंस कर के देशवासियों को बताया मैंने कहा था इनको सज़ा मिलेगी, इनकी कल्पना से भी ज्यादा भयावह सज़ा मिलेगी। मैं आज भी अपने बयान पर कायम हूं। इसमें मैंने ये कब कहा कि ये सज़ा हम देंगे ? हम सज़ा देने वाले कौन होते हैं? सज़ा देने वाला तो वो सबका मालिक ऊपरवाला है। भगवान बोलो, श्रीराम बोलो, हनुमान बोलो भले आप फिर अल्लाह ही क्यों ना बोलो। हम ऊपरवाले के काम में दखल देने वाले कौन हैं ? क्या ये हमें शोभा देता है? हम युद्ध नहीं बुद्ध के देश वाले हैं।

 

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