भारत ने मुसीबत की घड़ी में मुंहतोड़ करारा जवाब दिया है। इस तरह के 'सिनोरियो' में एक एक करके दुनियाँ के तमाम देश ‘विक्टिम’ देश की ‘मॉरल’ सपोर्ट में आ जाते हैं। पर अफसोस ! हमारे दुनियाँ को ये बताने के बाद भी कि ‘वी हैव ए सिचुएशन’ कोई नहीं आया। भारत विश्वगुरु हो गएला है। हमने खुशियां मनाईं थीं। इतने सुंदर, मन-लुभावन फोटो हमे देखने को मिलते थे। दुनियाँ के देशों के बड़े-बड़े नेता हमसे मिल कर अपने को धन्य धन्य महसूस करते। फोटो पर फोटो खिंचाते अघाते नहीं थे। आज जब ज़रूरत आन पड़ी तो सिवाय तालिबान के कोई आगे नहीं आया। ये भी न हुआ कि हमारे हक़ में दो मीठे बोल ही बोल देते।
निकला था सफर पर
मैं
पा के हमसफर
इतने सारे
एक मोड़ पर देखा
जो पीछे मुड़ कर
साथ मेरे
गुबार-ए-कारवाँ भी न था
तब ऐसे में हम क्या करते ? हमारे पास विकल्प ही क्या छोड़ा था? अतः हमने ये ठान लिया कि हम अपने ही चन्द शिष्ट मण्डल कंट्री-कंट्री
काॅन्टीनेंट-काॅन्टीनेंट भेजेंगे। हम दुश्मन को दुनियाँ के सामने एक्सपोज़ कर
देंगे। । अतः आनन-फानन में शिष्टमंडल के कंपोज़ीशन बनाये जाने लगे। ये अपने वाले तो
किसी काम के हैं नहीं। ना अंग्रेज़ी बोल सकते हैं ना आर्टीकुलेट कर सकते हैं और
कन्विन्सिंग तो लगते ही नहीं हैं। अतः यह तय पाया गया कि क्यों ना ऑल पार्टी कंपोज़ीशन का गठन किया जाये। देश की
एकता के नाम पर, टीम
इंडिया के नाम पर कौन मना करेगा ? सब आ जाएँगे। आखिर सरकारी खर्चे पर विदेश यात्रा को कौन मना करेगा?
अब बड़ा सवाल ये है कि ये लोग जिन-जिन
देशों में जाएँगे वहाँ बात किससे करेंगे ? किसको कन्विन्स करेंगे? क्या वे सिर्फ भाषण देंगे या पाॅवर
पॉइंट प्रेजेंटेशन देंगे? या कि फिर कुछ घटना स्थल की फिल्में दिखाएंगे? माॅडस ऑपरेंडी अभी तय नहीं पाई गई है।
अब इतना हाई पाॅवर डेलीगेशन है कोई वहाँ जाकर नुक्कड़ नाटक या नुक्कड़ सभा तो करेंगे
नहीं। पता नहीं वहाँ एलाऊ भी है या नहीं ? कहीं शिष्ट मण्डल के ही लेने के देने ना पड़
जाएँ। बहरहाल अभी तक मुझे समझ नहीं लग रहा है कि ये कोई आम सभा रखेंगे या फिर उन
देशों के शहर-शहर जाएँगे वहाँ के लोगों को कहीं पार्क में या ऑडिटोरियम में 'इनवाइट' करेंगे? क्या वहां भी लोग इतने 'वेले' हैं कि आप बुलाएँगे और वे आ जाएँगे। क्या वहाँ
भी बेरोजगारी है अतः डेली-वेजेज़ टाइप लोग का आना तो पक्का है ? वहाँ तो ऐसा भी नहीं होगा कि आप कोई
लेटेस्ट फिल्म दिखाने के बहाने लोगों को इकट्ठा कर लें या फिर फ्री डिनर-काॅकटेल
के लालच में आ जाएँ। कहीं आ भी गए तो मान कर चलें कि वे दूसरे के प्रोग्राम में भी
उतनी ही निष्ठा से जाएँगे।
हम यार किसके ?
दारू-डिनर दे
उसके
कुछ देश तो इतने छोटे-छोटे हैं कि आप
एक जीप या टेम्पो में लाउड स्पीकर लगा कर हाफ डे में पूरा चक्कर लगा सकते हैं कोई
फिल्मी गीत चलता रहे बीच बीच में आप एडवरटाइज़मेंट की तरह बताते रहें कि हमने
मानवता बचाने को क्या-क्या नहीं किया? एक दुश्मन देश है जो मानवता का दुश्मन है। मैं
ऐसा क्यों कह रहा हूँ ? अब ये देश हमारी गुहार पर अपनी संसद का विशेष अधिवेशन तो बुलाने से
रहे। हाँ एक और प्लेटफॉर्म मिल सकता है- आप सी-बीच पर चले जाएँ और वहाँ लाउड
स्पीकर पर बताते रहें। उसके बाद अपनी थकान मिटाने शिष्टमंडल के सदस्य वहीं 'सन बाथ' ले लें, फोटो खिंचाएं।
हाँ अपने बरमूडा और अन्य बीच-वेयर ले
जाना ना भूलना।
No comments:
Post a Comment