आजकल शहरों के नाम बदलने का फैशन चल रहा है। जहां ध्यान नहीं जाता वहाँ बिना रुके जागरूक नागरिक, जब सब सोते हैं वो जागकर कालिख पोत आते हैं। यह बहुत पुरानी परंपरा है। यहाँ तक कि दिल्ली ही न जाने कितनी बार बसी है और हर बार नए नाम से। जो कभी कर्ज़न रोड था अब कस्तूरबा गांधी मार्ग हो गया। जो कभी किचनर रोड था वह सरदार पटेल मार्ग बनी दिया गया। इतना ही नहीं हार्डिंग ब्रिज और मिंटो ब्रिज भी तिलक ब्रिज और शिवाजी ब्रिज बना दिये। सबसे सस्ता सौदा यही है। ना हींग लगे न फिटकरी। बस कागज पर ही लिखना/बदलना है और अपने कर्तव्य की इतिश्री हो जाती है। यह हमारा तरीका है अपने महापुरुषों को सम्मानित करने का। जब नाम बदलने मात्र से लोग खुश हो जाते हैं तो निर्माण के झमेले में कौन पड़े। यह खर्चीला पड़ता है और फिर वो क्वालिटी आने से रही।
हमारे पुल आपने देखे हैं उनकी लाइफ दो-चार महीने या हद से हद दो-चार साल होती है। हम जीवन ‘दर्शन’ से परिचित हैं। ये जीवन क्षण भंगुर है। शायर कह-कह के मर गए 'ये ज़िंदगी चार दिन की है'। जब ये ज़िंदगी चार दिन की है तो ऐसी चीज़ बनाने से क्या लाभ जिसकी आयु चार दिन से ज्यादा हो। उस हिसाब से देखो तो ये पुल, ये पुतले, ये सड़क लंबे चल गए।
हर जगह का नाम बदलना प्रैक्टिकल नहीं। कहीं कुछ झमेला, कहीं कुछ और। अतः इसका भी एक नायाब तरीका खोज निकाला गया है। सच ही कहा है ज़रूरत ईज़ाद की माँ है। अब आप बिना नाम बदले अपने दिल के अरमान निकाल सकते हैं और पब्लिक में ये संदेश भेज सकते हैं कि आप कितने पब्लिक स्पिरिटड हैं। बस शहर के नाम के आगे श्री लगा दीजिये। जहां नाम के आगे ‘श्री’ लगाना संभव ना हो (जैसे नाम अगर स्त्रीलिंग हो, वैसे तो श्रीदेवी है ही) तो नाम के पीछे ‘जी’ लगा दीजिये। लो जी ! सुना है कभी इससे सस्ता, सुंदर और टिकाऊ तरीका। अब शेक्सपियर महोदय से पूछिए उन्हें यह पता नहीं होगा कि हम भारतीय नाम से कितना बड़ा टूर्नामेंट खेल सकते हैं। ना केवल खेल सकते हैं बल्कि पीढ़ी दर पीढ़ी जनता जनार्दन को 'खिला' भी सकते हैं। यह बात अगले को अगर पता होती तो वह कभी नहीं लिखता ‘वाट्स इन नेम....’
अब अगर मुझे बयान करना हो तो मैं कहूँगा मैं नई दिल्लीजी का रहने वाला हूँ। मैंने श्री बंगलोर सॉरी श्रीबंगुलुरु में शिक्षा ग्रहण की है। मैं हैदराबादजी में रहा। श्रीनासिक में भी फिर वापिस नई दिल्लीजी में आ गया। श्रीरतलाम में मेरे पहली पोस्टिंग थी तत्पश्चात मैं कोटाजी और श्रीभावनगर रहा फिर श्रीजयपुर आ गया और मुंबईजी में भी बरसों रहा। श्रीवडोदरा और सिकन्दराबादजी में भी रहा हूँ।
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