देखिये टीचर, जो है सो, समाज को दिशा देता है।
वह कितने सारे काम पढ़ाई के अलावा करता है, कोई हिसाब नहीं है।
सोचो जनगणना करानी हो, इलेक्शन कराना हो, बच्चों को टीके लगवाने हों या पोलियो की दवा पिलानी हो। टीचर ही इन सब कामों
को सम्पन्न कराते हैं। ये उन कामों से इतर हैं जो स्कूल उनको सौंपता है। स्कूल
वाले पढ़ाई के सिवाय भी दुनियाँ भर के काम
इन्हीं टीचर से कराते हैं। लेकिन हद तो तब हो गई जब एक सूबे की सरकार ने अब इन
टीचर को कुत्ते भगाने का काम भी दे दिया है। सोचा होगा बच्चू ! बच्चे तो बहुत भगा
लिए अब कुत्ते भगाने के काम में लग जाओ।
यूं देखा जाये तो टीचर को तजुर्बा
होता है। ऐसा क्या कहा जाये कि सब 'डिस्पर्स' हो जाएँ। इस मामले में वो चाहें तो घंटी भी बजा सकते हैं जैसे कि पूरी छुट्टी
हो गयी हो। क्या पता कुत्ते उसे सुन कर दौड़ जाएँ। प्रयोग के तौर पर वो टैडी बेयर
की तरह शेर के रूई भरे पुतले लेकर निकलें। शेर की दहाड़ या तो अपने मुंह से खुद
निकालें या फिर मोबाइल में रिकॉर्ड कर लें ज्योग्राफिक चैनल से। आप इसे मज़ाक ना
समझें मैं तो आपका काम आसान कर रहा हूँ।
हो न हो सरकार ने सोचा होगा ये टीचर लोग शरारती आवारा बच्चों को लाइन पर ले
आते हैं ये तो सीधे सादे कुत्ते हैं। भले थोड़े आवारा ही सही मगर अधिक दिक्कत पैदा
नहीं करेंगे। टीचर चाहें तो उनमें से ही किसी को मॉनिटर बना सकते हैं। या फिर सब
को कान पकड़ कर फुटपाथ पर खड़ा करने की सज़ा दे सकते हैं। अब वो पहले से ही बेचारे
कुत्ते हैं सो उन्हें मुर्गा बनने की सज़ा तो दी नहीं जा सकती।
सरकार भी ना जाने क्या सोचती है कि ये
टीचर ही एक फालतू क़ौम है हिंदुस्तान में। अब उन्हें कौन समझाये कि सभी टीचर ट्यूशन
की दुकान नहीं चलाते। बहुत हैं जो ईमानदारी से स्कूल में पढ़ाते हैं। अब आपका दिया
ये काम भी वो पूरी ईमानदारी से करेंगे। मगर ये कोई वन टाइम काम तो है नहीं। नई-नई
नस्ल नई- नई पीढ़ी आती रहेंगी। ये क्या परमानेंट काम उनके जिम्मे आ गया है। यदि ऐसा
है तो उनको 'डॉग-एलाउंस' मिलना चाहिए। और एक लाठी भी एलाॅट करनी चाहिए। अब इसकी खरीद में कोई लाठी
घोटाला मत कर देना। मेरे भारत की उर्वरा भूमि पर पहले ही क्या घोटालों की कमी है।
एक घोटाला कुत्ते का नाम भी सही। यूं अभी तक उनके नाम कोई कायदे का घोटाला आया भी
नहीं है। सिवाय उनकी नसबंदी के नाम पर मिलने वाली राशि में हेरफेर के। एक बात और
है, इसका भी खुलासा अभी हो
जाये तो ठीक है, देसी कुत्ते भगाने का काम जहां सरकारी स्कूल के टीचर को मिलेगा वहीं जो विदेशी
नस्ल के कुत्ते आई मीन डाॅगीज़ हैं उनको पब्लिक स्कूल /इंग्लिश स्कूल के टीचर ही
हटाएँगे। वे उनको इंग्लिश में अच्छे से समझा पाएंगे। "नो डाॅगी ! गुड डाॅगी ! डोंट डू दिस" टाइप। जहां तक
देसी कुत्तों की बात है वो तो पिट कर ही भागेंगे। बैड मैनर्स वाले जो होते हैं।
बातों से कहाँ मानने वाले हैं।
कुत्ता इंसान का वफादार दोस्त है। वह
ज़रूर इंसान की मजबूरी समझेगा और पूरा-पूरा सहयोग करेगा। चाहे तितर-बितर होना हो या
फिर घोटाला करना हो।
टीचर-टाॅमी एकता ज़िंदाबाद!
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