बचपन में जब भी मेरे कम मार्क्स आते थे
घर में माता-पिता और स्कूल में टीचर दोनों एक सुर में कहते थे इसके दिमाग में तो
ना जाने कौन घुसा हुआ है ? ना जाने दिमाग में क्या है ? कहाँ ध्यान रहता है ? घर में माता-पिता थोड़ा 'स्पेसिफिक' डांटते और बताते जाते इसकी खोपड़ी में गोबर भरा हुआ है अथवा भूसा घुसा हुआ है।
मैंने तभी से ये वाक्य रट लिया था और पूरे जतन से उनको यक़ीन दिलाने की कोशिश करता
ना कोई घुसा है, ना कोई घुसा हुआ है।
टीनएज आते-आते जब कविता-वविता लिखने लगा
तो घरवालों को पूरा-पूरा शक पड़ना शुरू हो गया कि हो ना हो वो पड़ोस की लड़की मेरे
दिलो दिमाग में घुसी हुई है और जब तलक वो नहीं निकलेगी मेरा कुछ भी नहीं हो सकता।
मैं फिर उनको कहता- ना कोई घुसा है ना कोई घुसा हुआ है। पर मेरे माता-पिता भी आजकल
के देशवासियों की तरह ही थे उनको इस बात पर कतई विश्वास ना होता। अब इससे ज्यादा
मैं क्या कर सकता था।
फिर और बड़े हुए और नौकरी करने लगे तो सब
पूछते कितनी सेलेरी मिलती है मैं बताता तो बहुतों को वो बहुत ज्यादा मालूम देती।
वो कहते ये ना जाने अपने आप को क्या समझता है इतने ऊंचे-ऊंचे ख्वाब देखता है। इसके
अंदर ना जाने किसका भूत घुसा हुआ है। मैं कहता ना कोई घुसा है ना कोई घुसा हुआ है।
पर वो मेरी इस बात पर हँस देते। यक़ीन हरगिज़ नहीं करते। अब बताओ मैं ऐसे में क्या
कर सकता था ? मेरे को तो ऐसी बातें नकारनी ही थीं।
पर फिर मेरे आलस में भी ऐसी ही
कुछ बातें आने लग पड़ीं जैसे घर वाले कहते लगता है घर में चूहा है, रसोई से आवाजें आ रही
थीं। मैं उन्हें यक़ीन दिलाता हो ही नहीं सकता ना कोई घुसा है... अब कोई मेरे से
इस तरह की बातें करता मैं ये रटा रटाया
जवाब देने लग गया। एक स्टेज ऐसी आई कि लोगों ने, क्या घर, क्या बाहर मुझसे सवाल
ही करना छोड़ दिया। ना ही वो किसी काम की उम्मीद मुझसे करते। मैं अब एक तरह से केयर
फ्री हो गया। कोई दफ्तर में कहता आपकी मेज पर फाइलों का ढेर लगा है और ना जाने
कितनी ही जरूरी और अरजेंट फाइल तुम्हारी अलमारी में घुसी हुई हैं। बस ये सुनते ही
मुझे याद हो आता और मैं शुरू हो जाता ना कोई घुसा है....
पर फिर ये एक सेंटेन्स मुझे कब तक ढाल बनके
बचाता। धीरे धीरे मेरी कलई खुलने लगी। मेरे अलमारी में वे सब फाइलें निकल आयीं जो
मिल नहीं रही थीं। घर में एक आध नहीं चूहों की पूरी की पूरी कॉलोनी निकल आई और तो
और मेरी पुरानी गर्ल फ्रेंड का भी बीवी को पता लग गया। अब मैं यह कह ही नहीं सकता
था कि ना कोई घुसा ... मैं एक तरह से, क्या कहते हैं उसे, रंगे हाथों पकड़ा गया था। लोग मेरे मुंह पर तो कुछ नहीं बोलते पर वो समझ गए थे
कि मैं जो कहता हूं उसका उल्टा सच होता है। एक मशहूर शायर का शेर है:
मांगा करेंगे दुआ अबसे हिज़्रे यार की
आखिर तो दुश्मनी है दुआ को अमल के साथ
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