Ravi ki duniya

Ravi ki duniya

Saturday, January 4, 2025

व्यंग्य: मेरे स्कूल के नीचे मन्दिर है

 

 

                 यूं तो स्कूल को अपने आप में एक मन्दिर कहा जाता है। बाल मन्दिर, विद्या मन्दिर, सरस्वती मन्दिर आदि। किन्तु इससे तो स्कूल की बस वो निर्धारित छुट्टियाँ ही मिल पातीं हैं। आजकल क्या टीचर, क्या विद्यार्थी दोनों ही पार्टी परेशान हैं। सिर्फ और सिर्फ एक ही पार्टी खुश है और वो हैं प्राइवेट स्कूल के संचालक/मालिकान।

 

                 अब देखो मुझे स्कूल की आधी छुट्टी और पूरी छुट्टी की घंटी, जो है सो किसी मन्दिर की घंटी से कम नहीं लगती। स्कूल की असेंबली में तो प्रार्थना होती ही है। प्रार्थना क्या अब तो पूरा-पूरा कीर्तन सा ही होता है। इससे मेरा विश्वास और गहराता जा रहा है कि हो न हो स्कूल के नीचे जरूर कोई ना कोई मन्दिर है। हमारे टीचर पढ़ाने से ज्यादा इस बात के उपदेश देते हैं कि हमें अपने माता-पिता का गुरुजन का आदर सम्मान करना चाहिए। उनकी हर आज्ञा का पालन करना चाहिए आदि आदि। यूं वो ये सब इसीलिए करते हैं कि हम उनसे ट्यूशन पढ़ने लग जाएँ। सबने किसी न किसी रूप में कोचिंग खोल रखी है। कोई प्रैक्टिकल में ज्यादा नम्बर दे सकता है तो कोई पिकनिक का मास्टर है। आजकल पढ़ने के अलावा और ना जाने क्या क्या सिलेबस में आ गया है। अब भगवान जाने सिलेबस में है या ये भी स्कूल वालों की कोई चाल है। कभी कूढ़ा बिनवाते हैं कहते हैं सफाई रखनी चाहिए, कभी ताल-तलैय्या, कभी यमुना के किनारे साफ कराने ले जाते हैं कि नदियां हमारी माता हैं उनको साफ रखना जरूरी है। भई ! तो उनसे साफ कराओ ना जो इसे दूषित करते हैं ले दे कर हम को ही पकड़ लेते हैं। इस सब में हमारे मास्टर लोग भी पीड़ित हैं जनगणना का काम हो, चुनाव का काम हो (जो आजकल आए दिन होते रहते हैं, कभी विधान सभा के, कभी लोक सभा के) या फिर पोलियो की दवा पिलानी हो हमारे मास्टर जी ही सब में जोत दिये जाते हैं।

 

               खैर ये विषय से भटकना होगा। आजकल जब जगह-जगह खुदाई हो रही है और खुदाई में कुछ ना कुछ निकल भी रहा है तो मुझे पक्का यक़ीन है कि हमारे स्कूल के नीचे भी प्राचीन मन्दिर है। हम लोग जितना भगवान को याद करते हैं खासकर परीक्षा के दिनों में उतना तो मन्दिर के श्रद्धालु भी भगवान कि सुधि नहीं लेते होंगे। दूसरे रिजल्ट वाले दिन हम भगवान को बहुत ही याद करते हैं। मेरा इस फील्ड में लगे लोगों से, पुरातत्व वालों से और एन.जी.ओ. से निवेदन है कि प्लीज आकर मेरे स्कूल का चप्पा-चप्पा खोद डालें। कुछ ना कुछ मन्दिर के अवशेष जरूर निकलेंगे। जब तक खुदाई चले दो-चार साल तब तक पढ़ाई मुल्तवी। पढ़ाई ज्यादा जरूरी है या अपनी राष्ट्रीय धरोहर का रखरखाव? यूनेस्को वालो ! सुन रहे हो ? जल्दी आओ और इस इलाके को अपने कब्जे में ले लो। उसके बाद इसमें अनाॅथराइज्ड लोगों जैसे मास्टर, प्रिंसिपल आदि की एंट्री पर फुल-फुल बैन लगा दिया जाये। खबरदार ! जो इस इलाके के आसपास भी फटके। जहां तक हमारी पढ़ाई का सवाल है आप टेंशन ना लें। हम घर पर ऑन लाइन पढ़-पढ़ा लेंगे और नहीं भी पढ़े तो हरकत नहीं। कौन सी नौकरी या नौकरी की परीक्षा हमारी वेट कर रही हैं। मैंने तो अपना आई.पी.ओ. खोल लेना है। नहीं समझे ? इंटरनेशनल पकौड़ा ऑर्गनाइजेशन।

 

No comments:

Post a Comment