सर
आदमजी पीरभाई (13 अगस्त1845-11अगस्त1913) एक भारतीय उद्योगपति थे। वे व्यापार के
साथ-साथ एक परोपकारी और सार्वजनिक कल्याण में रुचि रखने वाले इंसान थे। ब्रिटिशकालीन
मुंबई का दाऊदी बोहरा समाज उन्हें एक महान सुधारक की दृष्टि से देखता रहा है ।
आदमजी पीरभाई का जन्म सन 1845 ई में
गुजरात के गोंडल रियासत के धोराजी नामक स्थान पर दाऊदी बोहरा समाज में हुआ था। उनके
पिता कादिर भाई और माता सकीना बानू पीरभाई गरीबी में गुजर बसर कर रहे थे। आदमजी ने
13 वर्ष की उम्र से मुंबई की सड़कों पर माचिस-डिबिया बेचने से अपने जीवन की शुरूआत
की। सेठ लुक़मानजी और ब्रिटिश लेफ्टिनेंट स्मिथ ने उनकी बहुत मदद की। 19वीं सदी
आते-आते आदमजी की बड़े और धनाढ्य कपास उत्पादकों में गिनती होने लगी थी। उनकी कॉटन
मिल में 15000 लोग काम करते थे। वे टेंट और ब्रिटिश सिपाहियों की खाकी वर्दी लिए
कैनवस सप्लाई का काम करते थे। द्वितीय बोअर युद्ध के समय उनकी अनेक फेक्टरियाँ, हजारों टेंट और सिपाहियों के जूतों का निर्माण कर रहीं थीं।
वे अब तक वेस्टर्न इंडियन टेनरीज़ के भी मालिक बन चुके थे। जिसकी एशिया की सबसे बड़ी
टेनरीज़ में गिनती होती थी। ऐसा कहा जाता है कि आदमजी ने जल-पोत निर्माण में बहुत
धन अर्जित किया था और उसके बाद वे अन्य वाणिज्यिक गतिविधियों में हिस्सा लेने लगे।
आदमजी की कीर्ति और यश यहाँ तक फैला कि वे 1897 ई में मुंबई शहर के प्रथम भारतीय शेरिफ़ और जस्टिस ऑफ पीस बने। वे मुस्लिम लीग के अध्यक्ष बने और दिसंबर 1907 में मुस्लिम लीग के पहले कराची अधिवेशन की अध्यक्षता आदमजी ने ही की थी।
1900 में
उन्हे कैसर-ए-हिन्द के टाइटल से नवाजा गया। 1907 में ब्रिटिश सरकार ने उन्हे नाइट-हुड
मिला अब वे ‘सर’ आदमजी हो गए थे।
यद्यपि पारंपरिक दृष्टि से देखें तो वे अल्प शिक्षित थे किन्तु उनकी व्यापारिक बुद्धि अत्यंत प्रखर थी। ‘मोहम्मडन एजुकेशन कॉन्फ्रेंस’ ने भी उनको
सम्मान देते हुए अपना प्रथम अध्यक्ष बनाया। बोहरा समाज ने उनको ‘रफीउद्दीन’ की उपाधि से अलंकृत किया यह सम्मान 49
वीं सैय्यदना मुहम्मद बुरहानुद्दीन ने उन्हें प्रदान की थी।
1884 आते-आते आदमजी पीरभाई ने अनेक संस्थाओं और सार्वजनिक उपयोग के लिए
भवनों का निर्माण किया। यथा मस्जिद, सेनोटेरियम, कब्रिस्तान तथा अमनबाई चेरिटेबल हॉस्पिटल (अब सैफी
हॉस्पिटल) चर्नी रोड (रेलवे स्टेशन के सामने) इसका निर्माण ज़रूरतमन्द और निर्धन
लोगों के इलाज़ के लिए की गई।
1892 में मुंबई में प्लेग का
प्रकोप हुआ। आदमजी पीरभाई ने विदेश से टीके, दवाई की
व्यवस्था की और पब्लिक को अमनबाई चेरिटेबल अस्पताल में मुफ्त इलाज़ उपलब्ध कराया।
गुजरात में 1877,1897 के भीषण सूखे के
दौरान बड़े पैमाने पर अनाज का वितरण किया। 1866 में बुरहानपुर से लेकर यमन तक रिलीफ़
कार्य किया। मक्का-मदीना में विश्राम स्थलों का निर्माण, काठियावाड़ में अनाथालय से लेकर 27 स्कूलों की स्थापना की।
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में प्रिंस ऑफ वेल्स विज्ञान संस्थान की स्थापना की।
पीरभाई ने अपने पुत्र अब्दुल
हुसेन पीरभाई के कंस्ट्रक्शन बिजनिस में पैसा लगाया और नेरल से माथेरान तक पटरी बिछाने
और रेल चलाने का काम किया। नेरोगेज़ के इस 21 कि.मी. लंबे रूट को बनाने में16 लाख
रुपये खर्च हुए और 1904-1907 काल में यह बन कर तैयार हो गयी। माथेरान हिल रेलवे (M.H.R) आज युनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज सूची में शामिल है। नेरल से
चल कर टोय ट्रेन, जुमापट्टी स्टेशन आती है उसके बाद ‘वाटर-पाइप’ स्टेशन और ‘अमन लॉज’ स्टेशन होते हुए यह लगभग दो घंटे बीस मिनट में माथेरान पहुचती है। आज़ादी
के बाद इस रेलवे सिस्टम और इससे जुड़े समस्त असेट्स का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया।
वर्तमान में यह मध्य रेलवे के अंतर्गत आता है।
इस रेलवे सिस्टम को बनाना कितना दुरूह और दुष्कर रहा होगा
इसका अंदाज़ा आप इस बात से लगा सकते हैं कि तब न तो हवाई सर्वे मुमकिन थे, न आधुनिक जे.सी.बी. होती थी। कारीगरों और मज़दूरो ने अपने
हाथों से काट-काट कर इस रेलवे का निर्माण किया।
माथेरान में टूरिस्ट की सुविधा और ठहरने के लिए समुचित व्यवस्था न थी तब आदमजी ने दो चार नहीं, छोटी बड़ी पूरी 105 सराय, डोरमेट्री, विश्रामस्थलो का निर्माण किया। अमन लॉज स्टेशन दरअसल आदमजी की माता जी के नाम अमनबाई के नाम पर रखा गया है। 1912 में एक बोहरा टूरिस्ट की अकस्मात मृत्यु होने पर माथेरान में आदमजी ने 30 हज़ार फीट के क्षेत्र में कब्रिस्तान का निर्माण किया। आज माथेरान में आपको एक चहल पहल भरा बाज़ार, रेस्तरां, होटल, और आपको घुमाने के लिए गाइड तथा घोड़ों की भरपूर व्यवस्था है। माथेरान भारत का इकलौता हिल स्टेशन है जहां वाहन (मोटर कार आदि) ले जाने की अनुमति नहीं है।
आदमजी पीरभाई के वंशजों को
इस बात का दुख है कि उनकी इतनी बड़ी रेलवे सरकार ने ले ली और उनकी छोटी सी इच्छा
पूरी नही की। वे चाहते थे और अब भी चाहते हैं कि माथेरान स्टेशन का नाम उनके
पूर्वज और इस रेलवे के जनक आदमजी पीरभाई के नाम पर रखा जाये, उनको फ्री टोकन पास दिया जाये माथेरान में अन्य भवनों के नाम
उनके नाम पर रखे जाएँ। अभी तक उनकी सुनवाई नहीं हुई है हांलाकि रेलवे स्टेशन पर
अब्दुल हुसैन पीरभाई का एक बड़ा तैल चित्र लगा है।
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