Ravi ki duniya

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Tuesday, August 27, 2024

व्यंग्य: शिवाजी का पुतला और एफ.आई.आर.

 


 

         शिवाजी महाराज का पुतला जिसके उदघाटन को अभी साल भी पूरा नहीं हुआ था ढह गया है। यह पुतला सिंधु दुर्ग के प्रांगण में स्थित था। जबकि सिंधु दुर्ग और उसकी दीवारें ज्यों की त्यों 500 साल से खड़ी हैं। पुतले के टूट कर गिरने से पता चला आजकल की अन्य अनेक घोषणाओं और योजनाओं के माफिक पुतला भी अंदर से पोला यानि खोखला था। पोल (चुनाव) के चलते जो चीज़ बनी हो उसने पोला तो होना ही था। पोल में जय इसका उद्देश्य है। यूं आप देखें तो जय तो हुई ही। हमारी भी जय-जय तुम्हारी भी जय-जय। नेता भी जीते, ठेकेदार भी जीते।


           इससे आप ये न सोचें कि सरकार चुप बैठे देखती रहेगी। तुरंत इसका संज्ञान लिया गया और एफ.आई.आर. करा दी गई है। आपने अगर भारतेन्दु हरिश्चन्द जी का अंधेर नगरी पढ़ा हो तो बकरी के मरने पर किस-किस को न नापा गया जैसे दीवार को, मिस्त्री को, चूने वाले को, पानी वाले भिश्ती को, बड़ी मसक बनाने वाले कसाई को, बड़ी भेड़ बेचने वाले गड़रिये को और शहर कोतवाल को जिसकी सवारी इतने ज़ोर-शोर से निकली की गड़रिये को छोटी-बड़ी भेड़ का ध्यान ही न रहा। इसी तर्ज़ पर आर्किटेक्ट और ठेकेदार के खिलाफ एफ.आई.आर. की बात हो रही है। लेकिन इस बीच नेताजी ने घोषणा कर दी है कि ये हवा के चलने से हुआ है। ये हवा को क्या हक़ है कि 45 मील प्रति घंटे की रफ्तार से चले और हमारे पुतलों को गिराती फिरे। असल में एफ.आई.आर. तो हवा के खिलाफ बनती है। वह किसके कहने पर, किसके बहकावे में इतनी तेज़ चली। उसके निशाने पर और क्या-क्या था। अब मुंबई में तो अनेक बड़ी-बड़ी ऊंची इमारतें हैं, टावर हैं, वो क्यों बची रह गईं। शिवाजी के पुतले को तो अभी उदघाटन करे एक साल भी पूरा न हुआ था और ये हवा है कि इसने बिना आगा-पीछा देखे, लेबर लॉ की तरह लास्ट कम-फ़र्स्ट गो के सिद्धान्त पर हमारे शिवाजी महाराज के पुतले को ही चुना।

 

                हवा हवा ऐ हवा तू इतना बता दे...

               तुझे किसने भेजा है उसका पता दे

 

           अब ये इनवेस्टिगेटिव जर्नलिज्म का विषय है। ये हवा पहले से ही 45 मील फी घंटे के हिसाब से चलती रही है या ये हालिया ट्रेंड है। इसके पीछे किसका हाथ है। क्या इसके लिए विपक्ष या नेहरू को ज़िम्मेवार नहीं ठहराया जा सकता। हो न हो इसमें कोई विदेशी हाथ हो। जैसे एक जगह से ज्यादा पानी छोड़ दो तो दूसरी जगह बाढ़ आ जाती है। इसी तरह बहुत संभव है कि किसी दुश्मन देश ने हमसे विश्वगुरु का दर्जा छीनने के लिए ये प्रपंच रचा हो और अचानक से इतनी सारी हवा एक साथ छोड़ दी कि शिवाजी महाराज का पुतला भरभरा के गिर गया।

 

   ये मात्र पुतले को नहीं, हमारी सरकार को गिराने का षड्यंत्र है। इसे हम हरगिज़-हरगिज़ नहीं सहेंगे। अगली बार के अमरीका, रूस, इटली और आस्ट्रेलिया दौरे के लिए इस आइटम को अजेंडा में डालो जी। हम इसे हर अंतराष्ट्रीय फोरम पर उठाएंगे और इस हवा को रुकवाएंगे।

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