Ravi ki duniya

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Thursday, August 29, 2024

व्यंग्य: अटूट जोड़ सास-दामाद दोनों चोर

 

                                              

                

                                                      


(मुंबई में एक सास-दामाद की जोड़ी पकड़ी गयी है। दामाद गहने चोरी करता था सास उन गहने को ठिकाने लगाती थी)

 

 

                              ये 36 गुण मिलाने वाले कभी ये नहीं बताते कि ये 36 गुण वो लड़के-लड़की के मिला रहे हैं या इसमें सास-ससुर के गुण भी शामिल हैं। अगर शामिल हैं तो उनके कितने गुण-अवगुण मिलते हैं। प्रभु जी मेरे अवगुन चित्त न धरो। मुंबई में एक ऐसे ही टू-मेम्बर गेंग का पता चला है जिसमें दामादश्री गहने लूटने का काम करते थे जबकि सासु माँ उन गहने को ठिकाने लगाने का काम करती थी। देखिये यह है सिनर्जी, काम का आदर्श बंटवारा, बोले तो 'डिवीजन ऑफ लेबर'। कुँवर साब अपने गले में रुमाल बांधे गए चाकू, तमंचा या फिर कट्टा जैसा कुछ लहराते और आराम से गहने लूट लाये।  उधर सासु माँ सुबह से इंतज़ार कर रही हैं। आ गए बेटा ! आज कितने की दिहाड़ी बनी। अब समझा मैं दिहाड़ी का मतलब। जो इन्कम दिन- दहाड़े की जाये वो दिहाड़ी कहलाती है। गहने देख सासु माँ की बांछे खिल जाती होंगी। बरबस ही उनके हाथ दुआ में उठ जाते होंगे। भगवान ऐसा लायक दामाद सब को दे।

       

             इस सब में पत्नी का क्या रोल है पता नहीं चला। हो सकता है वो बेचारी मात्र सुघड़ गृहिणी हो, पहले उसे हाउस वाइफ बोलते थे, आजकल  'होम-मेकर' कहते हैं। वो सुबह-सुबह टिफ़िन तैयार कर के देती हो। सास अलग रूट पर जाती होगी। जावई राजा अलग कमाने निकलते होंगे।

 

                             शुरू करो चोरी-चकारी

                            लेकर प्रभु का नाम  

 

         पत्नी ताकीद भी करती होगी, सारा खाना खत्म करके जल्दी आ जाना। पूरा खाना नहीं खाओगे तो लूटने की ताकत कैसे आएगी। अच्छे पति खाना नहीं बचाते। सास के साथ तो एकदम प्रोफेशनल संबंध होगा। कल कितने के गहने थे ? कितने के बिके ? पैसे खाते में क्रेडिट हो गए ? ओनरशिप कंपनी। तीन पार्टनर। पत्नी मेनेजिंग डाइरेक्टर कम चेयरमेन। दामाद डाइरेक्टर (ऑपरेशन) और सास जी डाइरेक्टर (डिस्पोज़ल-कम-फाइनेंस) रब ने बना दी जोड़ी। ऐसे घराने यूं ही नहीं मिल जाया करते। बहुत भाग्य से मिलते हैं। तीनों का लग्नेश कितना ज़ोर मार रहा होगा तब कहीं जाकर बरसों वाला ये नक्षत्र आया होगा। आप भले कितने ही विज्ञापन दे लें ऐसा मुहूर्त विरला ही मिल पाता है। हाँ यूं जब-तब कोई एक पार्टी ऐसी मिल जाती है तो वो इतनी बेसब्री होती है कि घर वालों को ही लूट कर ये जा वो जा। ऐसी पार्टनरशिप में कोई विज़न नहीं होता। कोई पार्टनरशिप डीड नहीं, कोई मिशन स्टेटमेंट नहीं। कोई लॉन्ग टर्म ऑब्जेक्टिव नहीं। अतः पार्टनरशिप लॉन्ग लास्टिंंग नहीं होती और टूट जाती है।

                सासु माँ का तो पता नहीं पर जमाई बाबू को तो रात की पाली में भी काम करना पड़ता होगा। तब जागे रहने के लिए थर्मस में चाय-कॉफी अलग ले जानी पड़ती होगी। बहुत कठिन काम है ये। दिन में जगह-जगह रेकी करो, फिर शाम को प्लान इम्प्लीमेंट करो। एकदम एलर्ट और प्रिसीजन चाहिए। जरा सी चूक और सारा प्लान चौपट। हाई प्रॉफ़िट-हाई रिस्क बिजनिस मॉडल है। एंट्रोप्रेन्युरशिप के ऐसे अनूठे उदाहरण कम ही मिलते हैं। मैं चाहता हूँ कि इनको बतौर 'विजिटिंग फेकल्टी' मेनेजमेंट स्कूलों में बुलाया जाये जहां ये अपने उद्दम के 'डूज एंड डोंट्स' पर नई पीढ़ी का मार्गदर्शन करें। सिलेबस में फेमिली बिजनिस वाले चैप्टर में इनको जगह मिलनी ही चाहिए। ताकि आप भी कह सकें वाह ! क्या चैप्टर है।            

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