ये कोई अखबार वाली खबर नहीं थी मगर
आजकल इस ब्रेकिंग न्यूज और घंटे-घंटे न्यूज के ढाई सौ चेनल के चलते ये रोजमर्रा की
रूटीन बातें भी खबर बन कर अखबार में आने लग पड़ी हैं। खबर है कि हापुड़ के बहादुरगढ़ में
पुलिस थाने के मुंशी ने एक इंसान की मोबाइल खो जाने की रिपोर्ट पर रबर सील (मुहर)
लगाने के एवज़ में महज़ एक किलो जलेबी क्या मांग ली, बावेला ही मच गया। हंगामा हो गया। हालांकि मुंशी जी ने चॉइस दी थी अगर
जलेबी न मिले तो बालूशाही ले आए। अब क्यों कि मोबाइल की कीमत एक किलो जलेबी या
बालूशाही से अधिक थी अतः उसने चुपचाप जलेबी लाकर दे दी और अपनी रपट पर थाने की
मुहर लगवाने में सफल रहा। शीश तजि प्रभु मिले, सौदा सस्ता
जानि।
देखिये पुलिस और जलेबी का अभिन्न
रिश्ता है। पुलिस के कामकाजी तरीके भी जलेबी की तरह ही टेढ़े-मेढ़े, गोल-गोल होते हैं। इस प्रक्रिया में ही उनको जलेबी के रस की
और मिठास की प्राप्ति होती है। आपके हाथ रह जाती है सूखी मरियल जलेबी उसी को आप
जंगल-जलेबी की तरह अपना हासिल समझ संतोष कर लेते हैं। दूसरी फरमाइश मुंशी जी ने
बालूशाही की, की थी। अब देखिये ! यह बालूशाही मात्र बालूशाही
नहीं, ज़िंदगी का फलसफा है। ये दुनियाँ,
ये मेरा मोबाइल, ये तेरी जलेबी, सब बालू
की तरह टेम्परेरी हैं। इनको बालू की तरह ढह जाना है। सब फ़ानी है। शाही, ऑफ कोर्स पुलिसिया अंदाज़ है, फितरत है। आखिर आप अभी
कुछ साल पहले तक शाही कोतवाल थे। इंगलेंड में भी पुलिस शाही पुलिस कहलाती है। हमने
अपनी तमाम चीज़ें इंगलेंड से ही ली हैं।
अतः ये खबर कोई खबर नहीं कि मुंशी जी ने एक किलो जलेबी ले ली। भई वो मुंशी हैं तो
शुकर करो एक किलो से ही मान गए। आप और ऊपर जाते तो आप क्या समझते हो एक किलो जलेबी
से ही काम चल जाता। हरगिज़ नहीं। वहाँ जलेबी नहीं, आप से काजू-कतली
ली जाती और वो भी एक किलो नहीं बल्कि एक-एक किलो के 50 डिब्बे लिए जाते। हो सकता
है पेटी या खोखा लिया जाता। आप खुश हो कर देते भी। फर्ज़ करो आप रिपोर्ट लिखाने गए
और अगले ने आपको ही थाम लिया और हवालात में बंद कर दिया कि एक शातिर चोर या यूं
कहिए शातिर मोबाईल चोरों के गिरोह का सरगना पकड़ा गया। रात भर, आपकी इतनी खातिर की जाती कि आप सुबह हाथ-पैर पकड़ कर खुशी-खुशी पेटी-खोखा
दे देते और जलेबी अलग से।
मैं तो मुंशी जी की भारतीयता का कायल
हूँ हालांकि वो पीज़ा, मोमोज या अन्य
कोई विदेशी चॉकलेट मांग सकते थे। पर नहीं मुंशी जी विशुद्ध भारतीय है अतः भारतीय
पारंपरिक मिठाई ही मांगी। बस अब कोई ये पता लगाए कि ये जलेबी की दुकान कहीं मुंशी
जी की ही तो नहीं है ?
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