यह प्रकरण खबर में आया है। जब बारात पहुंची तो दुल्हन ने शादी से साफ-साफ मना कर दिया। कारण – दुल्हन का कहना है कि वह ग्रेजुएट है जबकि दूल्हे महाराज मात्र दसवीं फेल हैं। दुल्हन यहीं नहीं रुकी बल्कि उसने यह भी उजागर किया है कि दूल्हा मंदबुद्धि है। अब प्रश्न यह है कि ये बात खुली तो खुली कैसे ? फिर जब खुल ही गई थी तो दुल्हन बारात आने तक रुकी क्यों रही। तभी संदेशा क्यों नहीं भिजवा दिया कि यहाँ तशरीफ लाने की ज़रूरत नहीं।
एक बात है दुल्हन को यह कैसे पता चला कि दूल्हा मंदबुद्धि है। कोई आई.क्यू. टेस्ट लिया गया है क्या ? या फिर बातचीत के आधार पर ही यह पता चल गया कि वह मंदबुद्धि है। बुद्धि का जहां तक सवाल है यह एक तुलनात्मक इंडेक्स है। ‘क’ ‘ख’ से तीव्र बुद्धि हो सकता है या फिर ‘ख’ ‘क’ की अपेक्षा मंद बुद्धि है। यूं देखा जाये तो हम सभी अपनी अपनी पत्नी के सामने मंदबुद्धि तो हैं हीं। ये शादी पक्की किसने की ? क्या कोई बात इस पूरे प्रकरण में छिपाई गई है ? यह बात पता कब चली ?
एक बात और जो समझ में नहीं आती वह है कि यह क्यों ज़रूरी है कि दुल्हन जो है सो पति से कम या बराबर की पढ़ी लिखी हो। दूल्हा जो है सो पत्नी से अधिक या बराबर का पढ़ा लिखा हो। हमारे पुरुष प्रधान समाज में यह धारणा बना दी गई है और मजबूत कर दी गई है कि दुल्हन को कम पढ़ा लिखा होना है या हद से हद बराबर का होना है। उसी तरह से पति देव को दुल्हन से अधिक पढ़ा-लिखा होना चाहिए। अब सवाल यह है कि क्या ये ही सब कंडीशन्स सब समाज में होती हैं क्या ? चलो अपने-अपने प्रमाण पत्र दिखाओ ? डिग्री दिखाओ ? और वो भी असली वाली। फिर उन्हें किसी दसवीं पास पुलिस वाले से वैरीफाई कराया जाये। फिर ये बात भी आ सकती है कि ये तो थर्ड डिवीजन है जबकि मैं हाई सेकंड डिवीजन हूँ। तब क्या होगा ? यह बराबरी का कांसेप्ट क्या है ? हमने तो पढ़ा था ढाई आखर प्रेम का पढे सो पंडित होय। यूं लगता है कि ये सब कहने की बात थी। पढ़ा लिखा होना ज़रूरी है और वो भी पत्नी से ज्यादा या बराबर। यहाँ कमाने की, आय की तो बात अभी आई ही नहीं। शारीरिक बल अथवा ज़मीन जायदाद, कैरियर की कोई बात ही नहीं हुई। यहाँ तो दसवीं पर ही बात अटक गई। अटक गई बोलो पलट गई बोलो। लौट गई बोलो या कहो लौटा दी। अब दुल्हन की हिम्मत की चर्चा होगी जगह जगह। और लोग बाग इसे महिला सशक्तिकरण से जोड़ देंगे। एक बात बताइये क्या आपने सुना है कि दुल्हन अगर नौकरी लगी हुई है तो कभी ऐसा हुआ कि उसने बेरोजगार लड़के से शादी करी हो। लगता है शादी के लिए दसवीं करना बहुत ज़रूरी है । इसीलिए यह बोर्ड की परीक्षा कहलाती है। यहाँ तक कि इस पर एक दसवीं नामक फिल्म भी बनाई गई है जिसमें नायक जेल में रह कर दसवीं करता है। अतः: मेरा दूल्हे मियां से आग्रह है कि वह मन लगा कर पढ़ाई करे और दसवीं पास करे, बारहवीं करे ग्रेजुएट बने पोस्ट ग्रेजुएट बने। शादी बाद में भी हो सकती है। इस बात को दिल से नहीं लगाना है। जो बात दिल पर लगानी वह है कि आगे पढ़ाई करनी है। खूब तरक्की करनी है आप इसे ऐसे भी ले सकते हो कि उस दुल्हन की किस्मत में आप थे ही नहीं। वरना ऐसे पति किस्मतवालियों को ही मिल पाता है जो बीवी से कमतर हो और कमतर ही रहे। पत्नी का कितना सशक्तिकरण होता वह यह नुक्ता चूक गई। खैर भूल चूक लेनी देनी। आप तो 'बैक टू स्कूल' योजना बनाएँ और मन लगा कर पढ़ाई करें। दुल्हन को दूल्हे बहुत हैं तो ये जानें आपको भी दुल्हन बहुत मिल जाएंगी। मगर ईमानदारी बड़ी चीज है। उसका दामन नहीं छोड़ना है। आप दसवीं फिल्म देखें और प्रेरणा लें। एक बात और यदि आप मंदबुद्धि वाकई हैं जैसा कि आरोप है तो लग कर इलाज़ कराएं।
शादी पर बुलाना मत भूलना !
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