एक खबर है कि भारत के एक सूबे में संविधान दिवस पर कार्यक्रम में छात्राओं ने ठुमके लगाए। आलोचकों को आपत्ति ये है कि इस दिन छात्र-छात्राओं को संविधान बनाने की कहानी सुनानी चाहिए थी। अब इन आलोचकों से पूछो भई ! ये आजकल के टाइम में कहानी सुनने-सुनाने में किस की रुचि होगी। सबसे बढ़िया मैथड है ऑडियो-विजुअल। इन आलोचकों को इस बात का भी आघात लगा है कि छात्राओं के साथ शिक्षक/शिक्षिकाएँ भी ठुमके लगा रही थीं। अब इसमें क्या बात हो गई ? नहीं लगाओ तो कहते हैं "...'इनवाॅल्व' नहीं होते। आपको डूब जाना चाहिए।..." डूबो तो कहते हैं आपको नहीं डूबना चाहिए था।
देखिये संविधान 26 नवंबर 1949 को बन कर तैयार हो गया था और 26 जनवरी 1950 से लागू हो गया। बस ये दो लफ्जों की कहानी है। इसमें कोई क्या कहानी बना लेगा ? क्या कहानी सुना लेगा ? डांस भी सपना चौधरी का था। वही वाला 'तेरी आंख्यां का यो काजल...' इस गाने पर कोई पत्थर दिल ही होगा जिसका ठुमके लगाने का दिल नहीं करेगा। बच्चे सुकोमल होते हैं। शिक्षक/शिक्षिकाओं ने सही किया। देखिये इस डांस के बल पर भी वे बहुत कुछ सीख सकते हैं जैसे कि संविधान दिवस कब मनाया जाता है वही जब 'तेरी आंख्यां का यो काजल' गीत बाज्या था। जिस पर पचास साला मैडम भी कतई दिल खोल कर नाचीं थीं यानि कि 26 नवंबर को।
बच्चे जो नाच-गाने से सीख सकते हैं वह कितनी भी क्लास में कहानी सुना लो नहीं सीख पाते हैं। यह बात प्रूव हो चुकी है। अब इधर-उधर अखबार में छप जाने से और ऑबजेक्शन लेने से और भी ये दिन यादगार बन गया है। क्या स्टूडेंट, क्या शिक्षक सभी को ये दिन याद रहेगा। और उसी के साथ सपना चौधरी जी भी। अब ठुमके लगाने पर कोई क्या आपत्ति कर सकता है ? बिना ठुमके नृत्य हो ही नहीं सकता। संविधान में भी मौलिक अधिकारों में ये वर्णन है कि नागरिकों को सांस्कृतिक अधिकार है। वे संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए कदम उठा सकते हैं। अब कदम खुदबखुद डांस पर थिरकने लग जाएँ तो क्या करे कोई ? आखिर सपना चौधरी कोई ग़ैर संवैधानिक डांस तो करेंगी नहीं। लोगों को तो बात का बत्तंगड़ बनाना है। उससे होने वाली 'लर्निंग' की तरफ ध्यान ही नहीं जाता। आवरण को देख चिल्ल पौं मचा रहे हैं उसके निहितार्थ संदेश को कतई नहीं देख रहे। ऐसे ही लोग ना तो संविधान को समझते हैं न सपना चौधरी जी को ना उनके डांस को। ठुमके के तो जन्मजात खिलाफ ही होते हैं ऐसे लोग। एकदम ड्राई ड्राई। इनसे क्या ही तो उम्मीद करे कोई ? आप 26 जनवरी पर दुनियाँ भर के लोक नृत्य, दिन-दहाड़े इंडिया गेट पर, पूरे देश के सामने राजपथ बोले तो कर्तव्य पथ पर कर सकते हैं तो यह आपका मौलिक कर्तव्य है कि आप स्कूल, कॉलेज, यूनिवर्सिटी, गली-चौराहों शादी ब्याहों, जन्मदिन सब पर डांस करें। डांस एक वर्जिश भी है। डांस एक 'फिटनेस मंत्रा' भी है। दुनियाँ भर के डांस शो चल रहे हैं। लोग संसार में सांस्कृतिक आदान-प्रदान के अंतर्गत अपनी कला का प्रदर्शन कर रहे हैं। इनाम-इकराम तो भारत सरकार ही देती है। खुद सपना चौधरी ना जाने कितने देशों में अपनी कला का प्रदर्शन कर वाह वाही लूट चुकी हैं। सम्पन्न तो वह हैं ही। कहानी लिखने वालों की दुर्दशा आपने-हमने- सबने देखी है। प्रेम चंद कैसी विपन्न अवस्था में रहे। यूं कहने को उन्होने तीन सौ से ऊपर कहानियाँ लिखीं। एक के बाद एक 'मानसरोवर' की झड़ी लगा दी मगर खुद धन की छींटों के लिए भी तरस गए।
मेरा शिक्षा जगत के विद्वानों से आग्रह है कि आपका फोकस लर्निंग पर होना चाहिए उसके तरीके सेकंडरी है। कहानियां डालना अब आउट ऑफ फैशन हो गया है। सब समझ जाते हैं कि अगला कहानियाँ डाल रहा है। कहानियाँ डालना एक निगेटिव कंसेप्ट है। जबकि नृत्य, नाटिका, स्किट, से सदा के लिए मॉरल मिलता है। अतः संविधान की शिक्षा के लिए शिक्षक जगत से मेरा निवेदन है कि उसे आसान बनाएँ। हँसते-खेलते उसको पढ़ाएँ। संविधान आधारित नृत्य- नाटिकाएं डवलप करें। बच्चे जल्दी समझेंगे और देर तक भूलेंगे नहीं। जिस-जिस ने भी उस दिन ठुमके लगाएँ हैं ना तो वो ठुमकों को भूल सकते हैं ना संविधान को।
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