सोनपुर नामक जगह पर बिहार में सालाना पशु
मेला लगता है। इसमें देश के कोने-कोने से लोग जुटते हैं, दोनों, बेचने वाले भी और
खरीदने वाले भी। एक से एक हृष्ट-पुष्ट पशु आपको इस मेले में देखने को मिलेंगे। एक
नेता जी ने कुछ अर्सा पहले कहा था “....गधे खा रहे च्यवनप्राश”। पर ये केस तो उससे
आगे की स्टेज का है जहां घोडा ड्राई फ्रूट खाता है। पता चला है कि इस घोड़े को इसके
मालिक ने दो साल पहले लुधियाना के मेले से पाँच लाख में खरीदा था। तब इसका नाम
सुल्तान था। पर इसकी रफ्तार देख कर मालिक ने अब इसका पूरा नाम 'राजधानी एक्स्प्रेस
सुल्तान' रखा है। कहते हैं मेले में इसने सबका मन मोह लिया। सुल्तान अब तक 32 मेडल जीत चुका है।
भाईसाब ! घोड़ा क्या है पूरा चैम्पियन है।
बस यही आत्मविश्वास आदमियों में चाहिए। एक हमारा पैट-डॉग है। दिन भर खाना-सोना और
कोई काम ही नहीं। वह भौंकता भी रस्म अदायगी के तौर पर नपे-तुले अंदाज़ में है। एक
तरह से प्रतीकात्मक। बस ये टोकन भर है ताकि उसकी हमारे घर में पूछ होती रहे। और तो
और वह थोड़ी-थोड़ी देर में हमें देखता रहता है एप्रूवल के तौर पर 'ठीक कर रहा हूँ न मैं ?' वह आरामपसंद नहीं है।
प्लेन सिम्पल आलसी है जी! नखरे देखने लायक हैं उसके।
एक यह सुल्तान है। ड्राई फ्रूट खाता है तो
क्या, फुल-फुल उसका हक़ अदा कर रहा है। तेज़ दौड़ता है, बोले तो राजधानी
एक्स्प्रेस तभी न नाम रखा है। पता नहीं मालिक ने 'वंदे भारत' नाम क्यों नहीं रखा ? दूसरे, वह अपने वर्ग में
ब्यूटी कन्टैस्ट जीतने का काॅन्फ़िडेंस रखता है। बोले तो 'प्रूवन एबिलिटी' वाला है। 32 मेडल जीत चुका है इससे
ज्यादा प्रूफ क्या चाहिए। बात ये है कि हमारे देश में मिड-डे मील में किस प्रकार
का भोजन मिलता है हम सबको पता है। इतना घपला है जिसकी कोई थाह नहीं। मिड-डे मील का
छोड़ भी दें तो आम हिन्दुस्तानी को क्या खाने को मिलता है? जो मिल रहा है वो सब
मिलावटी है, नकली है। अब हमें यह मांग करनी चाहिए भुला दो आदमी क्या खाता है, आप तो हमें जो घोड़ा
खाता है उसी तरह का कुछ दे दें तो हम तर जाएँगे। भारतीय कितने कुपोषण का शिकार
हैं। अब सवाल ये है कि इस सुल्तान को बोले तो राजधानी एक्सप्रेस सुल्तान को
खरीदेगा कौन ? जो खरीदेगा सोचो वो खुद क्या खाता होगा ? क्यों कि जब उसने अपने
इस घोड़े को ड्राई फ्रूट खिलाने हैं। अब ड्राई फ्रूट कोई वो पाँच बादाम या सात काजू
तो खाता नहीं होगा, सुल्तान है तो सुल्तान की तरह ही उसके भोजन का खर्चा होगा। दूसरे शब्दों में
उसकी औसत बैलेन्स डाइट डेफ़िनिटली इंसान की औसत बैलेन्स डाइट से कहीं अधिक होगी।
मुझे घोड़े से कोई शिकायत नहीं। मैं तो ये सोच रहा हूँ कि यदि यह घोड़ा ऐसे मालिकान
के पास होता जो ड्राई फ्रूट एफोर्ड नहीं कर सकते थे तो वो क्या खाता। आई मीन! उसकी
डाइट क्या होती। यूं सुना है घोड़े को चने आदि खिलाया जाता है। कहीं कहीं सुनने में
आया है कि घोड़ा ड्रिंक भी करता है। आदमी ने घोड़े को लेकर बहुत सारे मुहावरे और
कहावतें भी बनाई हैं। मसलन घोड़े की पिछाड़ी नहीं होना चाहिए, बूढ़ी घोड़ी लाल लगाम, गिरते हैं घुड़सवार ही
मैदान-ए-जंग में आदि आदि। पशु-पक्षियों के अधिकारों की रक्षा का दावा करने वाली
संस्थाएं ऐसे मेले में नहीं जातीं हैं। उनका पहला निशाना ऐसी वारदातें होतीं हैं
जिनमें उनका सम्मान हो, घोड़े से ज्यादा वो खबर में रहें, घोड़ा महज़ सेकंडरी रहे। बोले तो हाई प्रोफाइल केस। आखिर ऐसे मेलों में पशु
क्या पालने के लाये जाते हैं ? अब घोड़े की सवारी बंद है। घोड़ों को तांगे में नहीं जोत सकते। उनको 'जॉय राइड' के लिए बच्चों के लिए
भी इस्तेमाल नहीं कर सकते। यूं घोड़ों को 'ब्रीड' करने का काम हुआ या
फिर रेस के लिए घोड़ों को तैयार करना/पालना एक बहुत सम्पन्न बिजनिस है। वो वक़्त दूर
नहीं जब ये पशु अधिकार रक्षा समिति वाले घर-घर
इन्कम टैक्स की तरह जाकर छापे मारा
करेंगे। आपने कोई घोड़ा, कोई तोता कोई चिड़िया, कुत्ता-बिल्ली तो नहीं पाला हुआ ? अगर इनमें से कोई भी है तो आप पर जुर्माना लगाया जाएगा। हो सकता है सज़ा भी
मिले। फिर खाते रहना ड्राई फ्रूट।
वैसे सोचने वाली बात ये है कि बेचारे
वो मदारी, वो सर्कस वाले वो सँपेरे, वो भालू वाले न जाने कहाँ लुप्त हो गए। लुप्त क्या जब उनके पशु जिन्हें वो
अपने बच्चे जैसा रखते थे जब वो ही ज़ब्त कर लिए तो ये बेचारे क्या करें ? अब क्या बंदर? क्या भालू ? क्या मदारी ? ड्राई फ्रूट तो दूर, दो जून की रोटी को तरस
गए हैं।
No comments:
Post a Comment