हमारे भारत महान में वसुधैव कुटुम्बकम के अनूठे दृश्य दिखाई देते हैं। पूरे विश्व में ऐसा कोई उदाहरण नहीं मिलेगा। आप तो नाम लो ! हमारे यहाँ मेंढक का मंदिर है, चूहों का मंदिर है, साँप का मंदिर है, भेड़िये का मंदिर है, नंदी बैल का है तो गाय को भी पूजा जाता है। एक सूबे में तो मैंने वीज़ा मंदिर भी देखा है। आपका अगर वीज़ा न लग रहा हो तो वहाँ जाकर अरदास मांगें और मनचाहे देश का वीज़ा पाएँ।
हमारे देश में जितना प्रकृति प्रेम का ज़िक्र और दिखावा है उतना कहीं देखने में नहीं आता है। साथ ही जितनी प्रकृति की अवहेलना है वैसी भी कहीं नहीं। यूं हम नदियों को माता मानते हैं। देख लीजिये क्या हाल किया है हमने सभी नदियों का। हम पेड़ों की पूजा करते हैं। दीप जलाते हैं। पेड़ों के चक्कर लगाते हैं। जैसे ही अवसर मिलता है उसे काट देते हैं और चूल्हे में जला देते हैं अथवा अपने घर के लिए या कारोबार के लिए फर्नीचर बनवा लेते हैं।
यह हमारे अंदर का एक विरोधाभास है जो हम सबके मिजाज में है। माता-पिता के रोज़ सुबह पैर छूते हैं और पहले अवसर पर उन्हें घर से बाहर कर देते हैं। अब घर से बाहर करने की बात पुरानी हो गई है अब तो उनको रास्ते से हटा देने के कुचक्र रचे जाते हैं। जीवन साथी के लिए सुपारी दी जाने लगी है। सरकार तो अपने कर्मचारियों को 30 साल की सर्विस के बाद ‘एक्स’ कर देती है आजकल हम लोग अपने ‘बाबू’ अपनी ‘बेबी’ को 30 दिन में ही ‘एक्स’ कर देते हैं। यह एक्स..वाई... ज़ेड हमें कहाँ ले जाकर छोड़ेगा?
पूजा में एक काल सर्प दोष बताया जाता है। उसके उपाय स्वरूप आपको चांदी के साँप को पूजा में उपयोग करते हुए दान किया जाता है। सुना है इस छिपकली के मंदिर में सोने की छिपकली है। लोग उसे स्पर्श कर प्रणाम करते हैं और अपनी मनौती मांगते हैं। वही छिपकली घर में दिख जाये तो हँगामा मचा देते हैं। सब उसके पीछे पड़ जाते हैं। घर से बाहर निकाल कर ही दम लेते हैं।
इसी तरह चूहे का जो मंदिर है वहां चूहे निर्बाध रूप से विचरण करते हैं। वही चूहा अगर घर में घुस आए तो तुरंत चूहेदानी लगा दी जाती है। यूं लोग बिल्ली को भी पवित्र मानते हैं और उसे दूध-मलाई खिलाते हैं। इसमें साँप का उदाहरण विशेष रूप से उल्लेखनीय है। आप नाग पंचमी पर देखें कैसे साँप की ढूंढाई होती है। पीता नहीं है फिर भी जगह-जगह आपको कटोरा भर दूध रखा हुआ मिल जाएगा। ऐसे में कोई साँप दिख जाये तो बल्ले बल्ले! ऐसा लोग समझते हैं कि अब सब काम सफल हो जाएँगे। वही साँप अगर पड़ोस में भी निकल आए तो हम सहम जाते हैं और अपने दरवाजे-खिड़कियों की जांच करने लगते हैं।
हम कितने भोले-भाले थे मोर पंख नोटबुक में रख कर निश्चिंत हो जाते थे कि हम पढ़ें ना पढ़ें विद्यारानी अपना काम करेंगी और हमारी जर्जर नैया पार उतारेंगी। मुझे ज्ञात नहीं, क्या हमारे समाज में कहीं बिच्छू, रीछ, साँप की मौसी, नेवले और गिरगिट की पूजा भी की जाती है क्या ? करनी चाहिए उनके साथ ही ये भेदभाव क्यों? आखिर पौराणिक कथाओं में जाम्बवंत के योगदान का वर्णन है। बंदर तो हनुमानजी का साक्षात रूप है ही।
लब्बोलुआब ये है कि बच के रहना रे बाबा...बच के रहना रे ! हम आपको तिखाल में बैठा कर मार देते हैं। हम आपका दिन मनाने लगें, जयंती मनाने लगें तो आपको सावधान होने की ज़रूरत है। यदि आपकी पूजा हो रही है और आपको आत्याधिक आदर-सम्मान मिलने लगे तो आपको घबराना चाहिए क्यों कि हम आपको ‘डिरेल’ करने वाले हैं। नाग-पंचमी तो एक ही दिन आती है बाकी 364 दिन तो हमारे हैं। हम पढ़ते आए हैं कि गरुड़ ने सीता जी का पता श्री राम को दिया था। उस हिसाब से गरुड़ हमारा आदरणीय होना चाहिए मगर देखिये हमने उसे अपने कारनामों से विलुप्त प्रायः कर दिया है। अतः यह बात आप गांठ बांध लीजिये हम दिखावा ज्यादा करते है और मन ही मन प्लान कर रहे होते हैं कि इससे क्या फायदा मिल सकता है? क्या लाभ लिया जा सकता है? इसकी खाल बेचें ? या इसकी मूंछ या इसके पंजे ?
छिपकली दीदी आप यह सोच कर खुश मत होना कि आपका मंदिर है या अपको सोने में ढाल कर मंदिर में स्थापित कर दिया गया है। गौतम बुद्ध मूर्ति पूजा के खिलाफ थे लोगों ने उनके जाने के बाद उनकी ही मूर्ति ढाल दी और हर धातु, हर लकड़ी, हर मिट्टी में ढाल दी। अभी वक़्त है छिपकली दीदी आप तो अपनी पूंछ छोड़, समय रहते निकल लो पतली दरार से। इससे पहले कि गुठखा बनाने वाले किसी सौदागर की नज़र आप पर पड़े।
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